नाज़ी जर्मनी के चार चित्र
हिटलर काल के जर्मनी पर बेर्टोल्ट ब्रेष्ट के लघु नाटकों की श्रृंखला ‘ख़ौफ़ की परछाइयाँ’ से।
अनुवाद : अमृत राय
[मज़दूर की कोठरी। एक औरत जिसके दो बच्चे हैं। एक नौजवान मज़दूर दम्पति जो मिलने आये हैं। औरत रोती है। सीढ़ी पर पैरों की आवाज़ सुन पड़ती है। दरवाज़ा खुला है।]
औरत : उसने सिर्फ़ इतना ही तो कहा था कि हम लोगों को इतनी कम मज़दूरी मिलती है कि हमेशा भूखों मरने की नौबत आयी रहती है। और बिल्कुल ठीक ही तो कहा उसने। इस बुढ़िया को फेफड़े की बीमारी है और हम लोग इसके लिए दूध तक नहीं ख़रीद सकते। कहीं उन्होंने उसे कुछ कर तो नहीं दिया?
[नाज़ी सैनिक एक बड़ा-सा बक्सा लाते हैं और उसे फ़र्श पर रख देते हैं।]
नाज़ी सैनिक : देखो, किसी क़िस्म का गुल-गपाड़ा मचाने की कोशिश मत करना। निमोनिया किसी को भी हो सकता है। ये रहे तुम्हारे काग़ज़ात। काग़ज़ात बिल्कुल ठीक हैं। समझाये देता हूँ, कोई बेवक़ूफ़ी का काम न कर बैठना।
[नाज़ी सैनिक चला जाता है।]
बच्चा : अम्मा, बाबू इसके अन्दर हैं क्या?
मज़दूर : [बक्से को इधर-उधर देखते हुए] टीन का है।
बच्चा : इसे हम खोल नहीं सकते क्या?
मज़दूर : [ग़ुस्से में] हाँ, हाँ, क्यों नहीं। औज़ारों वाला बक्सा कहाँ है?
[औज़ार ढूँढ़ता है। उसकी जवान पत्नी उसे रोकती है।]
पत्नी : मत खोलो, हांस! सब तुम्हें भी पकड़ लेंगे, बस।
मज़दूर : मैं देखना चाहता हूँ कि उन्होंने उसके साथ क्या किया है। वे डरते हैं कि कोई देख न ले, नहीं यों टीन के बकस में बन्द करके न लाते। मुझे छोड़ दो, मैं देखूँगा।
पत्नी : मैं तुम्हें नहीं खोलने दूँगी। तुमने सुना नहीं, वे क्या कह रहे थे।
मज़दूर : उसे देख तो लें हम लोग, कम से कम। तुम क्या कहती हो?
औरत : [अपने बच्चे का हाथ पकड़े टीन के बक्से तक जाती है] हांस, अभी मेरा एक भाई ज़िन्दा है जिसे वे पकड़ सकते हैं। वे तुम्हें भी पकड़ सकते हैं। बक्सा बन्द ही रहने दो। हमें देखने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उसे भूलेंगे नहीं।
2
[यातना शिविर। बैरक की दीवारों के बीच थोड़ी-सी खुली जगह। अभी रोशनी नहीं हुई है। किसी को कोड़े मारे जाने की आवाज़ सुन पड़ती है। फिर एक नाज़ी सैनिक एक क़ैदी को कोड़े मारता दिखायी पड़ता है। नाज़ी सैनिकों का दल-नायक कोड़े मारने वाले की ओर पीठ किये खड़ा सिगरेट पी रहा है। फिर वह चला जाता है।]
नाज़ी सैनिक : [थककर एक पीपे पर बैठ जाता है] अब शुरू करो काम! [क़ैदी ज़मीन पर से उठता है और अस्थिर शरीर से शौचालय साफ़ करने लग जाता है।]
नाज़ी सैनिक : सूअर, जब तुमसे सवाल किया जाता है तो यह कहने में तुम्हारा क्या जाता है कि मैं कम्युनिस्ट नहीं हूँ। तुम्हारी ठोंकाई होती है और मेरा पास छिन जाता है। यह कोई नहीं देखता कि मैं किस बुरी तरह थका हुआ हूँ। वे क्लापरोट को यह काम क्यों नहीं सौंप देते? उसे तो इसमें बड़ा मज़ा आता है। अगर वह बदमाश रण्डीबाज़ फिर बाहर आये [कान लगाकार सुनता है] तो तुम कोड़ा लेकर उससे ज़मीन को पीटने लग जाना। समझे?
क़ैदी : जी।
नाज़ी सैनिक : और यह सब सिर्फ़ इसलिए कि मैं तुम कुत्तों को कोड़े मारते-मारते थक गया हूँ, मेरा मन ख़राब हो गया है। समझे?
क़ैदी : जी!
नाज़ी सैनिक : देखो!
[बाहर पैरों की आवाज़ सुन पड़ती है और नाज़ी सैनिक कोड़े की ओर इशारा करता है। क़ैदी उसे उठा लेता है और ज़मीन को पीटने लग जाता है। चूँकि कोड़ों की फटकार असली मार की तरह नहीं है, इसलिए नाज़ी सैनिक पास पड़ी हुई टोकरी की ओर सुस्ती से इशारा करता है, और क़ैदी उसी को पीटने लग जाता है। बाहर पैर की आवाज़ थम जाती है। नाज़ी सैनिक घबड़ाकर झटपट उठ खड़ा होता है, क़ैदी के हाथ से कोड़ा छीनकर उसे मारना शुरू कर देता है।]
क़ैदी : [धीमी आवाज़ में] पेट पर नहीं।
[नाज़ी सैनिक उसे कूल्हों पर मारता है। उसका दलनायक अन्दर झाँकता है।]
दलनायक : पेट पर मारो।
[नाज़ी सैनिक क़ैदी को पेट पर मारता है।]
3
[दो नाज़ी सैनिक जाड़े की इमदादी चीज़ों का एक पैकेट लेकर एक बुढ़िया के मकान में आते हैं। बुढ़िया और उसकी लड़की एक मेज़ के पास खड़े हैं।]
पहला सैनिक : यह लो माँ, फ़्यूहरर (हिटलर) ने तुम्हारे लिए भेजा है।
दूसरा सैनिक : अब तुम यह नहीं कह सकती कि उसे तुम्हारी फ़िक्र नहीं है।
बुढ़िया : शुक्रिया, एर्ना, इसमें आलू हैं। और एक ऊनी जम्पर। और सेब।
पहला सैनिक : और फ़्यूहरर की ओर से एक ख़त जिसमें कुछ रखा है, खोल के देखो तो ज़रा!
बुढ़िया : [चिट्ठी खोलती है] पाँच मार्क! अब कहो एर्ना?
पहला सैनिक : जाड़े की सहायता!
बुढ़िया : अब तुम्हें मेरे हाथ से एक सेब खाना ही पड़ेगा बेटा, और तुम्हें भी। क्योंकि तुम्हीं तो तमाम सीढ़ियाँ चढ़कर हमारे लिए ये चीज़ें लाये। बात यह है कि तुम्हें खिलाने को मेरे पास और कुछ नहीं है। आओ यह साथ-साथ खायें।
[वह एक सेब में मुँह मारती है। लड़की को छोड़कर और सब सेब खाते हैं।]
बुढ़िया : तुम क्यों नहीं खाती एर्ना, और देखो वैसी रोनी सूरत बनाकर मत खड़ी रहो! देख ही रही हो कि अब वैसा बुरा हाल नहीं है, जैसा कि तुम्हारा आदमी कहता है।
पहला सैनिक : वह क्या कहता है।
लड़की : वह कुछ नहीं कहता। बुढ़िया फ़िज़ूल बक रही है।
बुढ़िया : हाँ, कोई ख़ास बुरी बात नहीं है। बस यही कहता है, जैसा कि सभी कहते हैं, किे चीज़ें इधर ज़रा महँगी हो गयी हैं। [सेब से लड़की की ओर इशारा करती है] और इसने ख़र्चे की कापी से हिसाब लगाकर पता चलाया कि पिछले साल के मुक़ाबले में इस साल खाने की चीज़ों पर उसे एक सौ तेईस मार्क अधिक ख़र्च करने पड़े। क्यों ठीक है न, एर्ना! [देखती है कि नाज़ी सैनिक उसकी बात पर कुछ नाराज़-से दिखायी पड़ते हैं।] मगर इसके लिए आख़िर किया भी क्या जा सकता है जब कि तमाम गोला-बारूद तैयार करना हो, है न? क्यों? मैंने कोई बुरी बात कह दी क्या?
पहला सैनिक : औरत, तू अपने ख़र्चें की कापी कहाँ रखती है?
दूसरा सैनिक : और किन-किन लोगों को दिखाती है?
लड़की : मैं उसे हमेशा घर ही पर रखती हूँ। मैं उसे किसी को नहीं दिखाती।
बुढ़िया : ख़र्चे की कापी रखना तो कोई गुनाह नहीं है।
पहला सैनिक : और जो वह तरह-तरह की भयानक कहानियाँ फैलाया करती है, वह भी तो कोई गुनाह नहीं है न?
दूसरा सैनिक : और यह भी तो है कि जब हम लोग अन्दर आये तो मैंने उसको बहुत ख़ुश होकर ‘हेल हिटलर’ कहते नहीं सुना। क्यों, तुमने सुना?
बुढ़िया : मगर उसने हेल हिटलर कहा और मैं भी कहती हूँ – हेल हिटलर!
दूसरा सैनिक : यह कम्युनिस्टों का अच्छा-ख़ासा अड्डा मालूम पड़ता है, क्यों ऐलबर्ट? हमें उस हिसाब की कापी को एक बार ज़रा देखना है और इसलिए तुम ज़रा हमारे साथ तो चलो अपने मकान तक। [वह लड़की की बाँह पकड़ लेता है।]
बुढ़िया : मगर उसका तीसरा महीना है। तुम्हारी इच्छा… तुम उसके साथ? इतने पर भी कि तुम वह पैकेट लाये और हमने तुमसे सेब लिये? फिर भी? मैं तुम्हें बतला रही हूँ कि उसने हेल हिटलर कहा। हाय परमेश्वर, अब मैं क्या करूँ! हेल हिटलर। हेल हिटलर!
[सेब उगल देती है। नाज़ी सैनिक लड़की को ले जाते हैं।]
बुढ़िया : [अब भी कै करते हुए] हेल हिटलर!
4
[खेत। रात का समय। सूअर के बाड़े के सामने खड़े होकर किसान अपनी पत्नी और दो बच्चों से कहता है।]
किसान : मैं तुम्हें कभी इसमें नहीं घसीटना चाहता था, मगर तुम चिपकी रही और अब तुम्हें अपना मुँह बन्द रखना होगा, नहीं तो तुम्हारा बाप लैंड्सबर्ग जेल पहुँच जायेगा और तमाम ज़िन्दगी वहीं सड़ेगा। अपने जानवर को भूख लगने पर हम उसे खाना देते हैं तो कुछ बुरा तो नहीं करते। परमात्मा भी तो नहीं चाहता कि उसकी सृष्टि में कोई भूखा रहे। इसे भूख लगी नहीं कि लगती है चिल्लाने और मुझे बर्दाश्त नहीं कि मेरी सुअरिया भूख के मारे खेत में चिल्लाये। और वे हैं कि मुझे उसको खिलाने नहीं देते। क़ानून इसके ख़िलाफ़ है। मगर तब भी मैं उसे खिलाऊँगा, क्योंकि अगर मैं उसे खिलाता नहीं तो वह भी मर जायेगी और मुझी को इसका नुक़सान सहना पड़ेगा।
पत्नी : वही तो मैं भी कहती हूँ। हमारा दूध हमारा है और हम उसका क्या करें, क्या न करें, यह बताने वाले ये साले कौन हैं? यहूदियों को तो उन्होंने खोज-खोज कर निकाल बाहर किया। पर सरकार तो सबसे बड़ी यहूदी है और पादरी हाइन्ज ने हम लोगों से कहा भी तो था : जो बैल तुम्हारे लिए अनाज उपजाता है उसे मारना मत। उन्होंने एक तरह से इशारा किया कि चौपायों को खाना देते रहना चाहिए। कोई हमने तो उनकी चार-साला योजना बनायी नहीं और न किसी ने हमसे उसके बारे में पूछा ही।
किसान : बिल्कुल ठीक। न वे किसानों के लिए हैं और न किसान उनके लिए। यह भी अच्छी रही, मैं अपना अनाज उनके हवाले कर दूँ और फिर चारे के लिए ख़ुद ही बढ़ी हुई क़ीमत दूँ और यह सब सिर्फ़ इसलिए कि गुण्डे तोपें ख़रीद सकें।
पत्नी : पादरी हाइन्ज कहते हैं : शान्ति से रहो, किताब में यही लिखा है।
किसान : टोनी, तुम ज़रा वहाँ तारों के पास तो खड़े हो जाओ। और मेरी, तुम चरागाह में निकल जाओ। [और फिर अपने चारों ओर देखता हुआ डरता-डरता आगे की ओर जाता है। उसकी पत्नी भी डरी हुई, चारों तरफ़ देखती है।]
किसान : [सूअर के आगे सानी पटकते हुए] तुम मज़े में खाओ लीता। हेल हिटलर! भाड़ में जाये ऐसी सरकार जिसमें जानवर भूखे रहें।
मज़दूर बिगुल, फ़रवरी 2021
‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्यता लें!
वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये
पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये
आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये
आर्थिक सहयोग भी करें!
बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन