जन्मदिवस (14 जून) के अवसर पर क्यूबा की क्रान्ति के नायक चे ग्वेरा को याद करते हुए कुछ कविताएँ

चे कमांडेंट

– निकोलस गिएन
(1902-1989), क्यूबा के राष्ट्रकवि

यद्यपि बुझा दिया है तुमने अपना आलोक
तब भी म्लान नहीं हुआ वह थोड़ा-सा भी।
एक अग्नि अश्व ने सम्भाल रखा है
तुम्हारी गुरिल्ला प्रस्तर-प्रतिमा को
सिएरा की हवाओं और मेघों के बीच में।
हालाँकि अब भी मौन नहीं हो तुम
भले ही वे जलाते हैं तुमको
दफ़्न कर देते हैं ज़मीन के अन्दर,
वे छिपा देते हैं तुम्हें
किसी क़ब्रिस्तान में, जंगल में, पठारों में,
पर वे रोक नहीं पाते तुम्हें ढूँढने से हमें
चे कमांडेंट, दोस्त!

जहाँ तक उनकी सोच
कभी नहीं जायेगी

– इलीसिओ दिएगो
(1920-1994), क्यूबा, 1993 के जुआन रुल्फ़ो पुरस्कार विजेता कवि

आज ही हमें बताया गया है
कि तुम सचमुच मर चुके हो,
कि तुम जा चुके हो वहाँ
अन्ततः जहाँ ले जाना चाहते थे वे तुम्हें
वे भूल कर रहे हैं
हमसे कहीं ज़्यादा, यह मानकर
कि तुम एक धड़ हो शुद्ध संगमरमर के
जड़ीभूत इतिहास में,
जहाँ कोई भी
खोज सकता है तुम्हें।
जबकि तुम
कभी कुछ भी नहीं थे सिवाय आग के
सिवाय प्रकाश के, हवा के सिवाय,
अमेरिकी महाद्वीप की स्वाधीनता के सिवाय
हर कहीं के लिए प्रेरणा-पुंज
जहाँ तक उनकी सोच
कभी जा ही नहीं सकती, चे ग्वेरा

चे ग्वेरा की अन्तिम यात्रा

– विसेन्ट अलेक्सान्द्रे
(1898-1984), स्पेन, 1977 के नोबेल पुरस्कार विजेता कवि

कौन
हिलाता है
मरु
छायाओं को?
हवाएँ धधकती हैं।
चाँद
लाल भभूका,
प्रसिद्ध
रात
प्रकाशहीन अब भी
अपलक दृष्टि
अन्तिम है।
सुन्दर हैं आँखें।
चेहरा,
निद्रामग्न
वह बहता है
निर्मल से होकर
ले जाता हुआ विस्तार को
कितना विस्तृत और सुदीर्घ…!

एक नायक की मौत पर अफ़सोस

– पाब्लो नेरूदा
(चीले, 1904-1973), 1971 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि

वे जिन्होंने जिया इस वृत्तान्त को,
इस मौत और शोकाकुल आशा के पुनरुत्थान को,
वे जिन्होंने चुना संग्राम को
और देखा परचम का उत्कर्ष,
हमने जाना कि सबसे अधिक शान्त
हमारे वे नायक ही थे
और कि फ़तह के बाद
आ गये थे चिल्लाने वाले
भरे थे मुँह जिनके
दम्भ और लार में लिपटी शेख़ियों से।
लोगों ने झुका दिये थे अपने शीश :
और नायक लौट गया था अपनी ख़ामोशी में।
किन्तु यह ख़ामोशी
लिपटी हुई थी शोक में
तब तक डूबे रहे हम सन्ताप में,
जब तक कि ख़ाक नहीं हो गये पहाड़
ग्वेरा की शानदार आग में।

चे ग्वेरा के एक चित्र पर संक्षिप्त चिन्तन

– होसे सारामागो
(1922-2010), पुर्तगाल, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि

चे ग्वेरा,
काश यह कहना मुमकिन होता,
वह मौजूद था पैदा होने से पहले भी,
चे ग्वेरा,
काश इसकी पुष्टि हो पाती कि
वह ज़िन्दा ही रहा अपनी मौत के बाद भी।
क्योंकि चे ग्वेरा महज़ एक और नाम है
उस मनुष्यता का जो सबसे अधिक
सच्ची और गुणसम्पन्न है
अक्सर सुप्त पड़ी रहती है हमारे भीतर जो
जिसे जानने के लिये हमें जागना ही चाहिये
और जानने के लिये ख़ुद को भी :
ताकि बढ़ सकें मिलकर क़दम हमारे
समष्टि के हित की ओर।

मेरा एक भाई

– जूलियो कोर्तज़र
(1914-1984), बेल्जियम, ‘हॉप्स्कॉच’ के रचयिता

हमने नहीं देखा कभी एक-दूसरे को
पर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
मेरा एक भाई था
जो ख़ाक़ छान रहा था पहाड़ों की
जब सोया पड़ा था मैं।

(अंग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र)

मज़दूर बिगुल, जून 2021


 

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