नाशिक व पुणे में दलित विरोधी अत्याचारों के ख़िलाफ़ मुम्बई में प्रदर्शन
बिगुल संवाददाता
महाराष्ट्र में पिछले कुछ हफ्तों से लगातार दलितों के विरुद्ध एक हिंसक वातावरण तैयार किया जा रहा है। इसकी शुरुआत अहमदनगर के कोपर्डी में एक लड़की के बलात्कार के बाद से हुई। इस बलात्कार काण्ड के आरोपी दलित थे। इसी बहाने सभी मुख्य चुनावी पार्टियों व संगठनों ने ज़मीनी स्तर पर मराठा आबादी को संगठित करना शुरू किया व बेरोज़गारी व खेती के संकट से बदहाल मराठा आबादी अजा/जजा अत्याचार विरोधी क़ानून को रद्द करने व अपने लिए आरक्षण की माँग को लेकर शहर-शहर में सड़कों पर उतरने लगी। इस आन्दोलन को मराठा मूक मोर्चा का नाम तो दिया गया पर इसकी हकीकत जल्दी ही नाशिक में सामने आ गयी। एक नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ के मामले को लेकर दलित बस्तियों को चुन चुनकर टार्गेट किया गया। वाहनों पर स्टीकर देख-देखकर जलाया गया। आठ गाँवों में दलितों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हिंसा हुई जिसमें 30 से ज़्यादा लोग घायल हुए। कई गम्भीर रूप से घायल लोग अभी भी मुम्बई व नाशिक के अस्पतालों में भर्ती हैं। इस पूरे मसले पर पुलिस व प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। राज्य के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस को नरेन्द्र महाराज के जन्मदिन में जाने का समय मिल गया पर घायलों से मिलने का नहीं। उल्टा उन्होंने ये कहकर कि “धर्मसत्ता राज्यसत्ता से बढ़कर है व उसकी मार्गदर्शक है” बतला दिया कि वो जाति व्यवस्था के कितने बड़े समर्थक हैं।
इसी घटना के विरोध में 17 अक्टूबर को अखिल भारतीय जाति विरोधी मंच व नौजवान भारत सभा ने लल्लू्भाई कम्पाउंड मानखुर्द के मुख्य चौक पर एक निषेध सभा का आयोजन किया। सभा के दौरान अभाजाविम के बबन ठोके ने बात रखते हुए कहा कि ये ‘मराठा मूक मोर्चा’ खेती के बढ़ते संकट व पूँजीवादी आर्थिक संकट से जन्मी बेरोज़गारी का नतीजा है। मराठा युवाओं की एक बड़ी आबादी आज बेरोज़गार घूम रही है व उसे इस बात पर बरगलाना बहुत आसान है कि उनकी हिस्से की नौकरियाँ दलित ले जा रहे हैं। हकीकत असल में उल्टी है। मराठा ग़रीब आबादी (खेतिहर मज़दूर, छोटे किसान आदि) व ग़रीब दलित आबादी दोनों को ही आज गाँवों के सम्पन्न मराठा किसान व उद्योगपति लूट रहे हैं। साथ ही सरकारी नीतियों के कारण लगातार बेरोज़गारी बढ़ी है। इस परिस्थिति से उपजे ग़ुस्से को ही आज सभी चुनावी पार्टियाँ भुना रही हैं व पूरे महाराष्ट्र में हर जिले में मराठा आबादी के लाखों की संख्या में मोर्चे निकाले जा रहे हैं। नाशिक व पुणे में हुई हिंसा सतह के नीचे किये जा रहे कुख्यात प्रचार का ही नतीजा है।
नौजवान भारत सभा के नारायण खराडे ने कहा कि दलित अत्याचार विरोधी क़ानून में संशोधन की माँग करने वालों की असली मंशा समझने की ज़रूरत है। आज महाराष्ट्र के हर जिले में दलितों के विरुद्ध भयंकर अत्याचार अंजाम दिये जा रहे हैं व ऐसे ज़्यादातर केसों में अत्याचार विरोधी क़ानून के तहत मामला दर्ज होने के बावजूद भी सज़ा की दर काफी कम (दोष सिद्धि दर 10 प्रतिशत से भी कम) रहती है। ऐसे में इस क़ानून को और ज़्यादा प्रभावी बनाने की ज़रूरत है। नारायण ने बात रखते हुए कहा कि आज मराठा युवाओं को भी इस चीज़ को समझने की ज़रूरत है कि उनके असली दुश्मन दलित नहीं बल्कि अमीर किसान व उद्योगपति हैं जो सबको लूट रहे हैं। महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि पूरे देश में इस समय अमीरों की एक छोटी सी आबादी बहुसंख्यक जनता को लूट रही है व उसका ध्यान बंटाने के लिए जाति, धर्म, क्षेत्र के झगडे खड़े कर रही है। आज अगर हम ये चीज़ नहीं समझेंगे तो कल बहुत देर हो जायेगी। आज ये जिस मराठा आक्रोश को दलितों के विरुद्ध खड़ा कर रहे हैं, कल को वो इसे मुसलमानों के विरुद्ध भी इस्तेमाल करेंगे, मज़दूर आन्दोलनों के विरुद्ध भी इस्तेमाल करेंगे। इसलिए हमें आज ग़रीब मेहनतकश जनता को उसकी अस्मिताओं के आधार पर नहीं बल्कि वर्गीय आधार पर एकजुट करना होगा। जाति के विरुद्ध आन्दोलन भी वर्गीय गोलबन्दी के साथ ही खड़ा किया जा सकता है।
मज़दूर बिगुल, अक्टूबर-नवम्बर 2016
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन