फिलिस्तीन के साथ एकजुटता कन्वेंशन की रिपोर्ट
नरेन्द्र मोदी के प्रस्तावित इजरायल दौरे को रद्द करने और जायनवादी राज्य का पूरी तरह से बॉयकाट करने की माँग को लेकर अभियान शुरू

कविता कृष्णपल्लवी

फिलिस्तीन पर इजरायली कब्जे़ और लगातार जारी नरसंहारक मुहिम के ख़िलाफ़ जारी फिलिस्तीनी जनता के प्रतिरोध के प्रति भारतीय जन की एकजुटता दर्शाने के लिए नई दिल्ली के गालिब संस्थान में 22-23 अगस्त को दो-दिवसीय कन्वेंशन आयोजित किया गया। कन्वेंशन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रस्तावित इजरायल यात्र को रद्द करने एवं भारत के कूटनीतिक, सैन्य एवं व्यापार संबन्धों को तोड़ने की माँग को लेकर एक हस्ताक्षर अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया। यह कन्वेंशन गाजा पर इजरायली हमले की पहली बरसी के मौके पर ‘फ़ि‍लिस्तीन के साथ एजिुट भारतीय जन’ की ओर से आयोजित किया गया था। इस हमले में 502 बच्चों सहित 2200 से भी ज़्यादा लोग मारे गए थे।

palestine seminarशनिवार एवं रविवार के दो सत्रों में ‘जायनवाद और फिलिस्तीनी प्रतिरोधः ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य, चुनौतियां और संभावनाएं’ एवं ‘मध्य-पूर्व का नया साम्राज्यवादी खाका और फिलिस्तीनी मुक्ति का सवाल’ विषयों पर कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने इजरायल की नस्लभेदी नीतियों एवं उसके द्वारा फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जे की कोशिशों की कठोरशब्दों में भर्त्सना की । कन्वेंशन में यह भी महसूस किया गया कि भारतीय सरकार ने फिलिस्तीनियों के लक्ष्य के साथ विश्वासघात किया है और वह अब जायनवादी राज्य की सबसे बड़ी समर्थक बन चुकी है जिसने सभी अन्तरराष्ट्रीय कानूनों को धता बातते हुए रखकर फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ अपना पागलपन भरा जनसंहारक अभियान जारी रखा है।

फिलिस्तीन में भारत के पूर्व राजदूत प्रो. ज़िक्रउर रहमान, वरिष्ठ पत्रकार सुकुमार मुरलीधारन, लेखिका पेग्गी मोहन, जेएनयू के प्रो. कमल मित्र चिनॉय, दिल्ली साइंस फोरम के कार्यकर्ता एन. डी. जयप्रकाश, फिलिस्तीन सॉलिडैरिटी कमेटी के फिरोज मिठीबोरवाला, कवि पंकज सिंह, नीलाभ अश्क तथा कात्यायनी, फिलिस्तीनी कार्यकर्ता नासिर बराक, मज़दूर बिगुल के सम्पादक अभिनव सिन्हा एवं नौभास से जुड़े आनन्द सिंह एवं कई अन्य लोगों ने फिलिस्तीन-इजरायल विवाद के इतिहास एवं राजनीति के बारे में विस्तार से बातें की और कहा कि पश्चिम एशिया में तब तक अमन नहीं कायम हो सकता जब तक कि फिलिस्तीनियों को उनके अधिकार न मिलें और एक एकीकृत धार्मनिरपेक्ष फिलिस्तीनी राज्य का निर्माण न हो।

फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष से भारत के एतिहासिक संबन्धों का जिक्र करते हुए प्रो. रहमान ने कहा कि भारत की सरकार की इजरायल से हालिया करीबी भारत के मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने कब्जे की परिस्थिति में जी रहे फिलिस्तीनियों की भयानक सूरते-हाल का ब्यौरा दिया और कहा कि अन्ततः फिलिस्तीनी लोग अपनी मुक्ति के संघर्ष में जीतेंगे और हम अभी से ही इजरायल के किले में दरारें देख सकते हैं।

सुकुमार मुरलीधरन ने कहा कि गाजा में पिछले साल की गई इजरायली बमबारी तथाकथित आतंक के खिलाफ वैश्विक युद्ध छेड़ने के बाद से चौथा खुलेआम सैन्य हमला था। कई विस्तृत तथ्यों के जरिये यह दिखाया कि अपराधी इजरायली राज्य को अमेरिका की पूरी शह है और इराक युद्ध का एक लक्ष्य इराक को इजरायलियों के लिए हथियाना था ताकि वे फिलिस्तीनियों को इराक की जमीन पर स्थानांतरित कर सकें और फिलिस्तीन की बची हुई जमीन को भी हड़प लें। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनियों के प्रतिरोध की अमर कथा तमाम बाधाओं के बावजूद जारी और उन्होंने यह उम्मीद भी जाहिर की कि एक दिन यह विवाद सुलझ जाएगा।

लेखिका पेग्गी मोहन ने कहा कि हमें जायनवाद और यहूदी धर्म में ठीक उसी तरह से फर्क करना होगा जैसे कि हम हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म के बीच करते हैं। उन्होंने कहा कि परवर्ती पूँजीवाद एक खूंख्वार जानवर की शक्ल अख्तियार कर चुका है और जायनवाद इस जानवर का सबसे आगे का डंक है। आज इजरायल मध्य-पूर्व में अमेरिकी साम्राज्यवाद की एक चौकी है जिसके प्राकृतिक संसाधनों को यह जानवर लीले जा रहा है। उन्होंने कहा कि फिलिस्तीनियों का प्रतिरोध हमें यह उम्मीद जगाता है कि लूट और शोषण पर टिकी मौजूदा विश्व व्यवस्था बदली जा सकती है।

फिरोज मिठीबोरवाला ने कहा कि खासकर पिछले वर्ष गाजा पर हुए बर्बर हमले के बाद से दुनियाभर में जनमत इजरायल के खिलाफ हो चुका है और बहिष्कार, विनिवेश और प्रतिबंधा के वैश्विक आंदोलन के कारण इजरायल पर दबाव बढ़ रहा है। उन्होंने अनेक तस्वीरों और आंकड़ों के जरिए यह भी दिखाया कि किस तरह इस्लामिक स्टेट (आईएस) को अमेरिका और इजरायल से फंडिंग और समर्थन मिल रहा है।

मज़दूर बिगुल के संपादक अभिनव सिन्हा ने कहा कि साम्राज्यवादी ताकतों ने जायनवादी परियोजना को इसलिए समर्थन दिया था क्योंकि मध्यपूर्व के प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण की उनकी मुहिम में फिलिस्तीन की धरती का रणनीतिक महत्व था और इजरायल आज भी वहां साम्राज्यवाद के लठैत का काम कर रहा है। मध्यपूर्व आज साम्राज्यवादी अंतरविरोधों की एक गांठ बन चुका है जिसे अब राष्ट्रीय मुक्ति की परियोजना के जरिए नहीं बल्कि केवल मजदूर क्रान्ति के द्वारा ही हल किया जा सकता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि फिलिस्तीनी समस्या के लिए दो-राज्यों का समाधान आज व्यावहारिक नहीं है और एकमात्र समाधान एक एकीकृत सेकुलर राज्य की स्थापना है जो केवल एक समाजवादी परियोजना के तहत ही यथार्थ में बदल सकता है।

प्रो. कमल मित्र चिनॉय ने कहा कि इजरायल संयुक्त राष्ट्र के 77 प्रस्तावों का उल्लंघन कर चुका है और योजनाबद्ध ढंग से जनसंहार में लिप्त है लेकिन उसके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की गयी है। उन्होंने कहा कि इजरायल परोक्ष रूप से अमेरिका के माध्यम से पाकिस्तान को भी हथियार दे रहा है।

फिलिस्तीनी लोगों और भोपाल गैस पीड़ितों के अधिकारों के लिए लंबे समय से अभियान चला रहे एनडी जयप्रकाश ने पश्चिमी तट और गाजा पट्टी में इजरायली कब्जे की असलियत के बारे में विस्तार से बताया जहां फिलिस्तीनी लोगों के मूलभूत नागरिक और मानवीय अधिकार भी इजरायली कब्जावरों ने छीन लिये हैं।

प्रसिद्ध हिंदी कवियों पंकज सिंह, नीलाभ अश्क और कात्यायनी ने कहा कि शासकों ने भले ही पाला बदल लिया है लेकिन भारत की जनता अपने फिलिस्तीनी भाई-बहनों के साथ खड़ी है।

फिलिस्तीनी एक्टिविस्ट नासिर बराकात ने फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष में समर्थन के लिए भारतीय जनता को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि मीडिया फिलिस्तीन के सवाल को गलत ढंग से मजहबी संघर्ष के रूप में पेश करता है। फिलिस्तीनी लोग यहूदियों के खिलाफ नहीं हैं बल्कि वे अपनी धरती पर इजरायली कब्जे के खिलाफ लड़ रहे हैं।

‘फिलिस्तीन के साथ एकजुट भारतीय जन’ के आनन्द सिंह ने कह कि जायनवाद आज न सिर्फ अमेरिका बल्कि अरब दुनिया के शासकों के समर्थन से भी टिका हुआ है जो अपने देशों में जनविद्रोह की आशंका से घबराये हुए हैं। इन शासकों ने फिलिस्तीन की जनता के साथ बार-बार गद्दारी की है। भारत की सभी चुनावी पार्टियां भी फिलिस्तीनी जनता के संघर्ष के साथ विश्वासघात कर चुकी हैं।

kavitaपहले दिन फिलिस्तीन पर केंद्रित कविता सत्र में पंकज सिंह, नीलाभ, कात्यायनी और कविता कृष्णपल्लवी ने फिलिस्तीन पर अपनी कविताएं पढ़ीं। इस मौके के लिए भेजी गई बद्री रैना की दो कविताओं और नित्यानंद गायेन की ताजा कविता का पाठ किया गया। अलीगढ़ से आये तंजील अहमद ने भी अपनी कविता पढ़ी। नीलाभ, सत्यम, अभिनव, तपीश मैंदोला, शुजात अली और फाइज ने महमूद दरवेश, समी अल-कासिम, मोइन बिसेसो, तौफीक जय्याद तथा अन्य फिलिस्तीनी कवियों की कविताओं का पाठ किया। इस मौके पर प्रकाशित फिलिस्तीनी कविताओं के द्विभाषी संकलन ‘लोहू और इस्पात से फूटता गुलाब’ का लोकार्पण भी किया गया।

कन्वेंशन में दो डॉक्युमेंट्री फिल्मों का भी प्रदर्शन किया गया। ‘टियर्स ऑफ गाजा’ गाजा में हमलों के बीच जी रहे लोगों की त्रसदी का मार्मिक चित्रण करती है जबकि ‘फाइव ब्रोकन कैमराज़’ पश्चिमी तट में एक फिलिस्तीनी गांव के लोगों द्वारा अपने गांव के पास इजरायल द्वारा एक विशाल बाड़ के प्रतिरोध को बेहद प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है।

विहान सांस्कृतिक मंच ने कुछ फिलिस्तीनी गीत और फिलिस्तीनी संघर्ष के समर्थन में कुछ गीत पेश किये। इस अवसर पर पेंटिंग्स, पोस्टर, कविता पोस्टर, कार्टून तथा कैरिकेचरों की प्रदर्शनी भी आयोजित की गई। बड़ी संख्या में छात्रों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और विभिन्न क्षेत्रों के नागरिकों ने कन्वेंशन में भागीदारी की।

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2015


 

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