शहीद मेले में अव्यवस्था फैलाने, लूटपाट और मारपीट करने की धार्मिक कट्टरपंथी फासिस्टों और उनके गुण्डा गिरोहों की हरकतें
कविता
उत्तर-पश्चिम दिल्ली के शाहाबाद डेयरी में शहीद मेला का आयोजन ‘नौजवान भारत सभा’ के वालंटियर्स की जुझारू मुस्तैदी और इलाके की आम मजदूर आबादी के सहयोग से सफलतापूर्वक सम्पन्न हो गया, लेकिन पूरे आयोजन को डिस्टर्ब करने के लिए धार्मिक कट्टरपंथी तत्वों और उनकी शह पाये हुए बस्ती के लम्पट गिरोहों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। स्थानीय पुलिस प्रशासन की भी उनसे पूरी मिलीभगत थी।
मेले के प्रचार के दौरान और प्रभातफेरियों में नौभास की टोलियाँ लगातार धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ नारे लगाती थीं और प्रचार करती थीं। इससे विहिप और संघ के लोगों में काफी बौखलाहट थी। कुछ लोगों ने समर्थक मजदूर आबादी को यह कहकर भी भड़काने की कोशिश की कि इन लोगों के साथ मुसलमानों के लड़के भी सक्रिय हैं, इसलिए अपने घरों के नौजवानों को इनके साथ मत भेजो, लेकिन इस प्रचार का कोई असर नहीं पड़ा। मेले के पहले दिन से ही असामाजिक तत्व गिरोह बनाकर तोड़फोड़ करने, अराजकता फैलाने, मेला स्थल के कैम्पों से सामान लेकर भागने की कोशिशें करते रहे। कई ऐसे तत्वों को कार्यकर्ताओं ने पकड़कर बाहर भगाया। गुण्डे बार-बार बाहर “देख लेने” और स्त्री कार्यकर्ताओं पर तेजाब फेंक देने की धमकी देकर गये। तीसरे दिन गुण्डों ने मेला स्थल के बाहर नौभास के कार्यकर्ता श्रवण को अकेले पाकर लाठी-डण्डों से हमला किया। काफी चोट खाने के बावजूद श्रवण ने उनमें से कई की अच्छी धुनाई की। संचालक को मंच से यह घोषणा करनी पड़ी कि हम भी गुण्डागर्दी करने वालों को तबाह करने देने की हिम्मत और औकात रखते हैं, यदि क्रांतिकारी राजनीति की बात करते हैं और भगतसिंह का नाम लेते हैं तो हर अंजाम के लिए तैयार होकर ही मैदान में उतरे हैं। इसके बाद बस्ती के मजदूरों, स्त्रियों और नौजवानों ने मुस्तैदी से ऐसे तत्वों पर निगाह रखनी शुरू कर दी।
अब कुछ और तथ्यों पर निगाह डालें। पहले दिन से ही आयोजकों ने कई बार स्थानीय पुलिस को जाकर और फिर फोन से सम्पर्क करके कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए मेला स्थल के बाहर तैनाती के लिए कहा, लेकिन वह नहीं आयी। लेकिन अव्यवस्था फैलाने वाले एक तत्व को जब आयोजकों ने धक्के मारकर बाहर किया, तो उसके फोन करने पर तुरंत पुलिस आ गयी। पुलिस ने जब वालंटियर्स पर धौंस जमाने की कोशिश की, तो उसे दो टूक शब्दों में बता दिया गया कि हमलोग सारी मिलीभगत समझते हैं और यहाँ अब हम यह सब नहीं चलने देंगे।
मेला के दूसरे दिन सुबह उसी जगह पर कुछ लोगों ने आकर शाखा लगायी। फिर तीसरे दिन प्रभातफेरी के बाद पैंतीस-चालीस लोगों ने आकर बड़ी शाखा लगायी, और कुछ देर मीटिंग करते रहे। (मेला रोज चार बजे से शुरू होता था)। इन लोगों में से कई लोग स्थानीय नहीं थे।
यह सब कुछ अप्रत्याशित नहीं है। बवाना और होलम्बी में साम्प्रदायिक तनाव भड़काने की घटनाओं से सभी वाकिफ हैं। मजदूर बस्तियों में जो लम्पट नशेड़ी-गँजेड़ी अपराधी गिरोह मौजूद हैं, वे मौका पड़ने पर किन लोगों द्वारा इस्तेमाल किये जाते हैं, यह सभी जानते हैं? इन्हीं बस्तियों में ठेकेदारों, दलालों, सूदखोरों, दुकानदारों की एक ऐसी आबादी भी रहती है, जो गरीब मेहनतकशों को संगठित करने की हर कार्रवाई से नफरत करती है। इसके पहले भी ‘शहीद भगतसिंह पुस्तकालय’ पर ढेले-पत्थर फेंकने, पुस्तकालय का बोर्ड उतारने और पोस्टर फाड़ने की घटनाएँ घट चुकी हैं।
इतना तय है कि ऐसे तमाम प्रतिक्रियावादियों से सड़कों पर मोर्चा लेकर ही काम किया जा सकता है। इनसे भिडंत तो होगी ही। जिसमें यह साहस होगा वही भगतसिंह की राजनीतिक परम्परा की बात करने का हक़दार है, वर्ना गोष्ठियों-सेमिनारों में बौद्धिक बतरस तो बहुतेरे कर लेते हैं।
सभी प्रगतिकामी बुद्धिजीवियों और नौजवानों को समझना होगा कि साम्प्रदायिक फासिस्टों और उनकी गुण्डा वाहिनियों के खिलाफ जुझारू एकजुटता बनानी होगी और इनका मुकाबला करना होगा। हर जगह यह कोशिश होनी चाहिए। पास्टर निमोलर की कविता हमें जो चेतावनी देती है, आज हम उसके रूबरू खड़े हैं।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2015
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन