चीन में मुनाफ़े की भेंट चढ़े 118 मज़दूर
जेल रूपी कारख़ानों में काम करते चीन के मज़दूर

गजेन्द्र, दिल्ली

अमानवीय एवं शोषणकारी पूँजीवादी व्यवस्था के मुनाफे की हवस के चलते 25 मई को चीन के जिलिन प्रांत के देहई के मुर्गी बूचड़खाने में एक दर्दनाक घटना के दौरान आग लगने तथा अमोनिया गैस के रिसाव से 118 से अधिक मज़दूरों ने जान गवाँ दी। इस बूचड़खाने का मालिक चीन की एक बड़ी चिकन उत्पादक कम्पनी बाओयुआनफेंग के पास था, जिसमें तीन सौ से अधिक मज़दूर काम करते थे। बूचड़खाने में श्रम कानूनों सिर्फ़ काग़ज़ों पर दर्ज़ थे। हद तो यह कि दुघर्टना के समय कारख़ानों के सभी दरवाजे भी बन्द थे जिस कारण मज़दूरों के पास निकलने का कोई रास्ता नहीं था। जिस बूचड़खाने में ये दुर्घटना हुई वह भी मज़दूरों की काम की परिस्थिति और भवन की हालात ज़र्ज़र थी जहाँ आग लगने की स्थिति में मज़दूरों को बचाने के लिए न तो सुरक्षा उपकरण थे न ही भवन से निकलने के लिए रास्ता था। साफ़ है कि सुरक्षा उपकरण की अनदेखी का कारण कम से कम मज़दूरी लागत पर अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाना है।

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वैसे भी चीन में मज़दूरों के साथ हुई ये कोई अकेली दर्दनाक घटना नहीं है इससे पहले भी लगातार मज़दूर मुनाफे की बलि चढ़ते रहे हैं अगर हम पिछले बीस साल बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं पर नज़र डालें तो 2008 में कोयला खदान में विस्फोट होने से 281 मज़दूरों की जान गई थी, 2000 में लुओयांग में एक चार मंजिला शॉपिंग सेंटर में आग लगने से 309 लोग मारे गए थे, वहीं 1993 में दक्षिण चीन के खिलौना कारख़ानों के 87 मज़दूरों की मौत हुई। इन दुघर्टना को या कहें हत्या के लिए निजी उद्योगपतियों की आपसी होड़ ज़िम्मेदार है वैसे भी दक्षिण चीन के समुद्र तट पर बसे ज़्यादातर कारख़ानों में स्पेशल एक्सपोर्टिग जोन (सेज) के अन्तर्गत आते हैं जहाँ उत्पादन का मुख्य उद्देश्य निर्यात होता है। वही इन सेज के औद्योगिक क्षेत्र में श्रम कानून काफ़ी ढीले ढाले होते है और जो होते भी है वो सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही शोभा देते हैं दूसरा चीन में गाँव देहात से करोड़ों बेरोजगार नौजवान इन औद्योगिक क्षेत्र में बेहद कम मज़दूरी में 10-12 घण्टे खटने को मज़बूर हैं इसी कारण आज चीन के तटीय शहरों में अमेरिका, जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान की ढेर सारी कम्पनियों का जाल बिछ चुका है साफ़ तौर पर ‘‘बाज़ार समाजवाद’’ में विकास की जो तस्वीर दुनिया में पेश की जाती है उसके पीछे करोड़ों मज़दूरों का नारकीय जीवन जीना है। और चीन विकास की मीनारों के नीचे हर साल केवल खदान दुर्घटनाओं में 5000 से अधिक मज़दूर मारे जाते हैं।

APTOPIX China Deadly Fire

वैसे आज नामधारी ‘‘कम्युनिस्ट’’ चीन के मज़दूरों के हालात भी विश्व भर के मज़दूरों से अलग नहीं। अभी हाल में बांगलादेश, पाकिस्तान से लेकर भारत तक में सैकड़ों मज़दूर जेलरूपी कारख़ानों में मौत के मुँह में समाये हुए हैं। अकेले भारत में सरकारी आँकड़े बताते हैं कि हर साल दो लाख मज़दूर औद्योगिक दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। वैसे भी माओ की मृत्यु (1976) के बाद से चीन में क़ाबिज़ कम्युनिस्ट पार्टी के शासक  मज़दूर वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करता बल्कि नये पैदा हुये पूँजीपति वर्ग की चाकरी में लगे हुए हैं। तभी आज चीन में मज़दूरों के काम परिस्थितियों और सुरक्षा उपकरण के मानक की खुलेआम अनदेखी की जा रही। ऐसे में ये बात समझने के लिए जरूरी है कि आज चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के चोलों के पीछे खुली पूँजीवादी नीतियाँ लागू हो रही हैं जिसके कारण आज चीन के बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी का जीवन स्तर जो माओकालीन चीन में बेहतर था। लेकिन विगत 37 वर्ष में बदतर हालात में पहुँच गया।

 

मज़दूर बिगुलजून  2013

 


 

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