लोकसभा चुनाव-2024 के नतीजों में हुई थी हेरा-फेरी- एडीआर और वोट फ़ॉर डेमोक्रेसी की रिपोर्ट
ईवीएम और चुनाव आयोग द्वारा नतीजों में धाँधली से ही सत्ता में आया भाजपा-नीत गठबन्धन

योगेश

हमने मज़दूर बिगुल, मई 2024 के सम्पादकीय अग्रलेख में ही यह बात कही थी कि लोकसभा चुनाव-2024 में ईवीएम में गड़बड़ी और चुनाव आयोग की धाँधली के बदौलत ही भाजपा या उसका एनडीए गठबन्धन सत्ता तक पहुँच पायेगा। इसका मुख्य कारण है कि पिछले 10 सालों में फासीवादी मोदी सरकार की नीतियों ने आम मेहनतकश आबादी ज़िन्दगी बद से बदतर बना दी है। ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसी जुमलेबाजी करते हुए असल में पूँजीपतियों की ही सेवा की है। 4 जून, 2024 को आये लोकसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा गठबन्धन के सहारे सत्ता में पहुँच पाई तो यह ईवीएम और केन्द्रीय चुनाव आयोग यानी केंचुआ द्वारा चुनाव परिणाम में की गई धाँधली से ही हो पाया है। अब पिछले दिनों दो अलग-अलग संस्थाओं — एडीआर और वोट फॉर डेमोक्रेसी द्वारा जारी रिपोर्ट से हमारी कही बात ओर पुख़्ता हो गई है।

पिछले माह जुलाई में एडीआर और वोट फॉर डेमोक्रेसी की आई रिपोर्ट लोकसभा चुनाव -2024 के चुनाव में आये नतीजों पर सवाल खड़ा करता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट की 538 सीटों में पड़े कुल वोटों और गिने गए वोटों की संख्या में लगभग छह लाख वोटों का अन्तर था। रिपोर्ट के मुताबिक, अमरेली, अहिंगल, लक्षद्वीप, दादरा नगर हवेली एवं दमन दीव को छोड़कर 538 सीटों पर डाले गए कुल वोटों और गिने गए वोटो की संख्या अलग-अलग है। सूरत सीट पर मतदान नहीं हुआ था। एडीआर के संस्थापक जगदीप छोकर के मुताबिक़ चुनाव में वोटिंग प्रतिशत देर से जारी करने और निर्वाचन क्षेत्रवार तथा मतदान केन्द्रवार आँकड़े उप्लब्ध न होने को लेकर सवाल है। एडीआर की रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव आयोग काउण्टिंग के आखिरी और प्रमाणिक डेटा अब तक जारी नहीं कर पाया और ईवीएम में डाले गए वोट और गिने गए वोट में अन्तर पर जवाब नहीं दे पाया। मत प्रतिशत में वृद्धि कैसे हुई इसके बारे में भी अभी तक नहीं बता पाया। मतदान प्रतिशत जारी करने में इतनी देरी कैसे हुई, केचुआ द्वारा अपनी वेबसाइट से कुछ डेटा उन्होंने क्यों हटाया? एडीआर  की रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव आयोग काउण्टिंग का आखिरी और ऑथेन्टिक डेटा अब तक जारी नहीं कर पाया।

एक दूसरी संस्था  वोट फॉर डेमोक्रेसी की रिपोर्ट के मुताबिक केचुआ द्वारा सात चरणों में प्रारम्भिक मतदान आँकड़ों से लेकर अन्तिम मतदान आँकड़ों तक लगभग 5 करोड़ (4,65,46,885 करोड़) वोट चुनाव आयोग ने बढ़ाए। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वोटों में बढ़ोतरी के माध्यम से 15 राज्यों में कम से कम 79 सीटों पर एनडीए/बीजेपी को जीत दिलवाई गई यदि ऐसा न होता तो यह तय था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबन्धन के सहारे भी सरकार नहीं बना पाती। साथ ही केचुआ द्वारा पूरे 7 चरणों में अन्तिम मतदान प्रतिशत के जारी करने में देरी की गई, वह स्पष्ट संशय पैदा करता है कि चुनाव नतीजों में हेरफेर की गई है। इतने सब तथ्यों के बाद कोई मोदी भक्त या दिमागी रूप से अंपग को छोड़कर कोई भी समझ जायेगा कि भाजपा इस बार ईवीएम और केचुआ की धाँधली से ही सत्ता में आई। चुनाव आयोग ने पूरे 7 चरणों में अन्तिम मतदान प्रतिशत के प्रकाशन में देरी की,  वो पूरी चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है। रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में 11 सीट, पश्चिम बंगाल में 10 सीट, आन्ध्र प्रदेश में 7 सीट, कर्नाटक में 6 सीट, छत्तीसगढ़ में 5 सीट, राजस्थान में 5 सीट, बिहार में 3 सीट, हरियाणा में 3 सीट, मध्य प्रदेश में 3 सीट, तेलंगाना में 3 सीट, असम में 2 सीट, और अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, केरल में 1-1 सीट बढ़ाई गई है। यानी कुल 79 सीटें बीजेपी व उनके गठबन्धन को जिताने के लिए बढ़ायी गयीं। इन 79 सीटों को बढ़ाने से लगभग 5 लाख वोटों का फायदा बीजेपी व उनके गठबन्धन को हुआ। फ़ासीवाद ने पूँजीवादी चुनावों की पूरी प्रक्रिया को ही बिगाड़कर रख दिया है। आम मेहनतकश जनता को इस बारे में चौकस रहना चाहिए। चुनाव का पूँजीवादी जनवादी हक़ हमारे लिए ज़रूरी है। यह भविष्य के क्रान्तिकारी वर्ग संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए हमारे लिए आवश्यक है। हम अपने मज़दूर वर्गीय दूरगामी राजनीतिक संघर्ष को सीमित पूँजीवादी जनवादी अधिकारों के रहते हुए अधिक तेज़ी से आगे बढ़ा सकते हैं। चुनने और चुने जाने का अधिकार पूँजीवादी जनवाद का सबसे बुनियादी अधिकार है। हालाँकि मज़दूर वर्ग के लिए ‘चुने जाने के अधिकार’ में इतनी बाधाएँ खड़ी कर दी जाती हैं, कि वह आम तौर पर चुनाव में इस अधिकार का उपयोग ही नहीं कर पाता है। इस अधिकार को पूर्ण बनाने के लिए भी संघर्ष किया जाना चाहिए और इसे बचाने के लिए भी। आज जब चोर दरवाज़े से इस अधिकार को फ़ासिस्ट मोदी सरकार नष्ट कर रही है, तो हमें सड़कों पर उतरकर इसके लिए संघर्ष करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2024


 

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