कब तक अमीरों की अय्याशी का बोझ हम मज़दूर-मेहनतकश उठायेंगे!

भारत

बीते 8-9-10 सितम्बर को दिल्ली पूरी तरह छावनी में तब्दील हो गयी थी। यह इस वजह से हुआ क्योंकि भारत इस बार जी-20 का प्रतिनिधित्व कर रहा था। कुछ लोग इसपर सोच सकते हैं कि देश का नाम हो रहा है, मोदीजी के आने के बाद पहली बार देश में जी-20 का सम्मेलन हो रहा है, तो इसमें थोड़ा दुःख तो सह ही सकते थे। पहले तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि यह कोई मोदी सरकार के दम पर नहीं हो रहा। असल में हर बार के सम्मेलन में किसी एक देश को इसकी अध्यक्षता दी जाती है और अगला सम्मेलन अध्यक्ष देश के मेज़बानी में उसी देश में होता है। यह मौका चक्रीय क्रम से इस समूह में शामिल सब देशों को मिलता ही है। अबकी बार भारत की बारी आयी थी, तो यह कोई महान उपलब्धि नहीं है। भारत में नरेन्द्र मोदी की जगह कोई चमगादड़ दास या कद्दू प्रसाद नाम का व्यक्ति भी सरकार का प्रमुख होता तो भी यह सम्मेलन भारत में ही होता। इस शिखर सम्मेलन का भारत में आयोजन होने में मोदी सरकार का कोई योगदान नहीं है।

दूसरा यह भी समझना चाहिए कि ऐसे सम्मेलनों से हम मज़दूर-मेहनतकशों को कुछ भी हासिल नहीं होगा। जी-20 में शामिल प्रत्येक सदस्य देश के शासक वर्ग यानी कि पूँजीपतियों की नुमाइन्दगी करने वाली सरकार के प्रमुख अपने-अपने देश के शासक वर्ग के हितों के हिसाब से जी-20 के मंच का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रकार के मंचों का इस्तेमाल विभिन्न देशों के पूँजीपति वर्ग मेहनत की लूट की होड़, सस्ते कच्चे मालों पर कब्ज़े तथा व्यापारिक सौदेबाज़ी में अधिक से अधिक हिस्सा प्राप्त करने के लिए करते हैं। जी-20 समूह के सभी देशों के वित्त मन्त्री और केन्द्रीय बैंकों के गवर्नर सामंजस्य बैठाकर काम करते हैं, हर किसी की कोशिश यही होती है कि अपने देश के पूँजीपतियों को अधिक से अधिक लाभ दिला सके। मोदी सरकार भी इसी मक़सद से इसमें भागीदारी कर रही है कि टाटा-बिड़ला-अदाणी-अम्बानी और देश के पूँजीपतियों को अधिक मुनाफ़ा देने का इन्तज़ाम करे और विदेशी पूँजीपतियों को भारत में मज़दूरों का शोषण करने के लिए आमंत्रित करे। इस दौरान सभी देशों में आम सहमति बनाकर सभी देशों ने हस्ताक्षर किया। मोदी सरकार ने इसे भी एक जीत के तौर पर पेश किया। पर इसके पीछे की जो चालाकी थी, वह अलग से एक लेख की माँग करता है, पर संक्षेप में यह कह सकते हैं कि गोल-मोल भाषा का प्रयोग कर, रूस-यूक्रेन युद्ध में किसी को निशाना बनाए बिना सभी देशों की सहमति बना ली गयी। साथ ही भारत के पूँजीपतियों के लिए व्यापार का एक बेहतर रूट यानी इण्डिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर का भी ऐलान किया गया।

अब आते हैं असल सवाल पर कि इस पूरी अय्याशी में आख़िर ख़र्च कितना हुआ और वह किसने उठाया?

दिल्ली पुलिस, पी.डब्ल्यू.डी, एम.सी.डी, डी.डी.ए, और एन.एच.ए.आई– सहित दिल्ली सरकार और केन्द्र की विभिन्न एजेंसियों ने मिलकर राजधानी में जी-20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों पर तक़रीबन 4,100 करोड़ रुपये ख़र्च किया गया। केन्द्रीय राज्य मन्त्री की तरफ से पेश किये गये एक दस्तावेज़ के मुताबिक वाणिज्य और उद्योग मन्त्रालय के अन्तर्गत आने वाले इण्डिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गेनाइजेशन (ITPO) ने सबसे ज़्यादा 3,500 करोड़ रुपया ख़र्च किया, इसके बाद 340 करोड़ रुपये का ख़र्च दिल्ली पुलिस ने किया। दिल्ली में आयोजन स्थलों और सड़कों को 6.75 लाख फूलों वाले पौधों और झाड़ियों से सजाया गया। जिन देशों ने पहले जी-20 की अध्यक्षता की है, उन्होंने भी इसकी तैयारी पर अच्छी-खासी रकम ख़र्च की है, पर मोदी सरकार ने ख़र्चों के मामले में सारे पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिये। उदाहरण के लिए टोरण्टो यूनिवर्सिटी के एक रिसर्च पेपर के अनुसार अर्जेंटीना ने शिखर सम्मेलन के दौरान 11.20 करोड़ डॉलर (लगभग 931.59 करोड़ रुपये) ख़र्च किये, जबकि जर्मनी ने 2017 हैम्बर्ग शिखर सम्मेलन के लिए 7.22 करोड़ यूरो (लगभग 643.47 करोड़ रुपये) ख़र्च किये थे।

अब सवाल यह उठता है कि यह पैसा आख़िर किसका है?

इस सम्मेलन में ख़र्च होने वाला एक-एक पैसा भारत की आम जनता का है। हमारे-आपके द्वारा दिये गये टैक्स के पैसों से ही पूरी दुनिया के पूँजीपतियों के लिए अय्याशी के इन्तज़ाम किये थे। इस सम्मेलन का सारा बोझ मज़दूर-मेहनतकश आबादी पर ही पड़ा है। दिल्ली में शिखर सम्मेलन की तैयारियों में मोदी सरकार ने खज़ाना ही खोल दिया था। जनता से वसूले गये टैक्स के पैसों को जमकर ख़र्च किया गया। सरकार की वाहवाही करते हुए विज्ञापन निकाले गये। दिल्ली में तो जी-20 के थीम पर एक नये पार्क का निर्माण भी हुआ। कई स्थानों पर अतिक्रमण हटाने के नाम पर सड़क किनारे रेहड़ी-पटरी लगाकर या छोटी दुकान चलाने वाले मेहनतकश लोगों का माल ज़ब्त कर लिया गया तथा उनसे जगह छीन ली गयी।

अब आते हैं अगले सवाल पर कि इस पूरे आयोजन में दिल्ली की जनता के साथ मोदी सरकार ने क्या किया?

जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले दिल्ली में हरे रंग के पर्दे और फ्लेक्स को झुग्गी-झोपड़ियों के सामने लगा दिया गया ताकि भारत की ग़रीबी पर पर्दा डाला जा सके। लेकिन जी-20 के लिए दिल्ली में जो ‘सौंदर्यीकरण’ का अभियान चला, उसके तहत ये सब होना केवल एक ही पहलू है जिससे झुग्गी में रहने वाले लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। मोदी सरकार ने जी-20 के नाम पर ग़रीबों के ख़िलाफ़ खुलकर काम किया। दिल्ली में ही कई सारी झुग्गी बस्तियों को तोड़ दिया गया। इस दौरान धौला कुआँ, मूलचन्द बस्ती, यमुना बढ़ क्षेत्र के आस-पास की झुग्गियों, महरौली, तुगलकाबाद के इलाक़े में झुग्गियों को तोड़ा गया। इससे क़रीब 2 लाख 61 हज़ार लोग प्रभावित हुए। साथ ही जिन झुग्गियों को तोड़ नहीं पाये, उन्हें हरे पर्दे से ढक दिया गया, ताकि जी-20 के प्रतिनिधियों को भारत की ग़रीबी न दिखे।

मोदी सरकार के आदर सत्कार के सभी आयामों को तोड़ दिया और सोने-चांदी के बर्तन में प्रतिनिधियों को खाना खिलाया गया। पर इन सबके पीछे मोदी सरकार का मक़सद क्या था? इन सबके पीछे का कारण है 2024 का चुनाव। मोदी सरकार जानती है कि आगामी चुनाव में उसका जीतना मुश्किल है। देश की आम जनता, महँगाई, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार से परेशान है। वहीं आरएसएस, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद द्वारा दंगे भड़काने की कोशिशें भी असफल हो रही है, मोदी सरकार के पक्ष में किसी भी तरह से माहौल नहीं बन पा रहा। इसी वजह से मोदी सरकार ने जी-20 के आयोजन को बड़े स्तर पर अपने प्रचार के लिए इस्तेमाल किया, ताकि जनता को लगे कि मोदी जी के कारण देश का दुनिया में नाम हो रहा है। पर असल में सच्चाई इसके उल्ट है। ऐसे में हमें मोदी सरकार से सवाल करना चाहिए कि अमीरज़ादों की अय्याशी का ख़र्चा हम अपनी ज़ेब व ज़िन्दगी काट कर क्यों दें? कब तक हम अमीरों की तरक्की को देश की तरक्की समझते रहेंगे?

 

मज़दूर बिगुल, अक्टूबर 2023


 

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