भगतसिंह के जन्मदिवस के दिन लखनऊ में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान ने दी पहली दस्तक

बिगुल संवाददाता

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बिगड़ती हालत पर सरकार का ध्यान खींचने के इरादे से प्रदेशभर के छात्रों-युवाओं और नागरिकों ने शहीदेआज़म भगतसिंह के जन्मदिवस के अवसर पर 28 सितम्बर को राजधानी लखनऊ में सरकार के दरवाज़े पर दस्तक दी।

नौजवान भारत सभा, दिशा छात्र संगठन और जागरूक नागरिक मंच की ओर से चलाये जा रहे शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान के 10 सूत्री माँगपत्रक को प्रदेशभर से जुटाये गये हज़ारों हस्ताक्षरों के साथ उपज़ि‍लाधिकारी के माध्यम से मुख्यमन्त्री को सौंपा गया। शिक्षा एवं रोज़गार से जुड़े सवालों पर प्रदेश में आन्दोलनरत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर प्रदर्शन में शामिल हुए और सरकार को चेतावनी दी कि बेरोज़गारी के प्रति सरकारी उपेक्षा एवं दमन का रवैया प्रदेश में एक विस्फोटक स्थिति को जन्म दे सकता है।

लखनऊ के अलावा इलाहाबाद, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, अम्बेडकरनगर, मऊ, बलिया, चित्रकूट, उरई, ग़ाज़ीपुर, वाराणसी, ग़ाज़ियाबाद सहित प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से आये सैकड़ों छात्रों-युवाओं, मज़दूरों एवं आम नागरिकों ने इस अवसर पर संकल्प लिया कि हर बच्चेे और युवा को शिक्षा और हर हाथ को काम देने से जुड़े सवालों पर एक व्यापक आन्दोलन खड़ा किया जायेगा।

इको गार्डन में हुए इस प्रदर्शन के लिए सुबह से ही विभिन्न ज़ि‍लों से आये प्रदर्शनकारी जुटने शुरू हो गये थे। चित्रकूट, अम्बेडकरनगर आदि से आने वाले छात्र-युवा भोर में 3 या 4 बजे ही गाड़ियों से रवाना हो गये थे, ताकि ख़राब सड़कों और पुलिस की टोका-टाकी के बावजूद समय से प्रदर्शन में पहुँज सकें।

सभा के दौरान बात रखते हुए इलाहाबाद से आए नौजवान भारत सभा के प्रसेन ने प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में चलाये गये अभियानों के दौरान अनुभव साझा किया। उन्होंने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होना अब आम बात हो चुकी है। पर्चा लीक करने वाले आम लोग नहीं हैं, वे बड़े-बड़े माफि़या हैं जिनके पीछे धनिकों की ताक़त होती है। नौकरियों के जो थोड़े-बहुत अवसर मिलते हैं, वो भी आम नौजवानों की पहुँच से बाहर होते हैं। हमारे समाज में जैसे ही बच्चा स्कूल जाने लायक़ होता है, उसके सामने रुपयों की दीवार खड़ी कर दी जाती है, वह किस तरह के स्कूल में पढ़ेगा, यह इस बात से तय होता है कि उसके माँ-बाप के पास कितना पैसा है। जो बच्चे चाँदी के चम्मच मुँह में लेकर आते हैं उन्हें तो अच्छी शिक्षा मिल जाती है लेकिन बाक़ी बच्चों को घटिया शिक्षा ही नसीब होती है और उनमें से अधिकांश तो खेतों और फ़ैक्टरियों में खटने के लिए ही अभिशप्त होते हैं। प्रसेन ने यह भी कहा कि आजकल बच्चों और युवाओं में अवसाद भयंकर रूप ले चुका है। 2014 से 2016 के बीच 26 हज़ार से अधिक छात्रों ने आत्महत्या कर ली। कुकुरमुत्तोंं की तरह खुल रहे निजी कॉलेजों में योग्य शिक्षक तक नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि अगर ये लोकतन्त्र है तो सबको शिक्षा-सबको रोज़गार का अधिकार देना ही होगा।

दिशा छात्र संगठन के अंगद ने सभा के दौरान बात रखते हुए कहा कि हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में एसएससी पर्चा लीक और बीएड तथा बीटीसी अभ्यर्थियों व शिक्षामित्रों के कई आन्दोलन हुए। लेकिन इन सभी आन्दोलनों की कमजोरी ये रही कि वे निहायत ही संकीर्ण ढंग से केवल अपनी-अपनी माँगों तक सीमित रहे और इन आन्दोलनों की कड़ि‍यों को एक सूत्र में पिरोकर एक व्यापक आन्दोलन खड़ा करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। 68500 शिक्षकों की भर्ती को लेकर चल रहे आन्दोेलन ने बीएड और बीटीसी के अन्य अभ्यर्थियों के आन्दोलनों के साथ एकजुटता की कोई कोशिश नहीं की। एसएससी पर्चा लीक के खि़लाफ़ चल रहा आन्दोेलन तो कोचिंग सेण्टर वालों के क़ब्जे़ में आकर दिग्भ्रमित हो गया। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि ऐसे सभी आन्दोलनों को सबको एकसमान शिक्षा और रोज़गार की गारण्टी के व्यापक आन्दोलन के तहत जोड़ा जाये।

बिगुल मज़दूर दस्ता के तपीश मैन्दोला ने सबको एकसमान शिक्षा की माँग के महत्व पर बल देते हुए कहा कि यह माँग जीवन के अधिकार से जुड़ी माँग है क्योंकि आज के युग में शिक्षा के बिना इंसानी जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंेने बताया कि भारत में आज़ादी के बाद जिस तरीक़े़ से पूँजीवाद का विकास हुआ, उसकी वजह से बहुत बड़ी आबादी बुनियादी शिक्षा से ही वंचित हो गयी। 1980 के दशक में नयी शिक्षा नीति और 1990 के दशक की शुरुआत में निजीकरण, उदारीकरण और भूमण्डलीकरण की नीतियों के बाद तो शिक्षा एक बिकाऊ माल बन गयी और उसकी गुणवत्ता का स्तर लोगों की आर्थिक हैसियत के हिसाब से तय होने लगा। जिस अनुपात में आर्थिक ग़ैर-बराबरी लगातार बढ़ रही है, उसी अनुपात में शिक्षा तक पहुँच के अवसरों में भी ग़ैर-बराबरी बढ़ रही है। ऐसे में समान शिक्षा की माँग का महत्व और भी बढ़ जाता है।

नौजवान भारत सभा के आनन्द सिंह ने आरक्षण के मुद्दे पर बात रखते हुए कहा कि जहाँ एक ओर देश में यह मुहिम चलायी जा रही है कि आरक्षण ख़त्म कर दिया जाये तो बेरोज़गारी ख़त्म हो जायेगी, वहीं दूसरी ओर आरक्षण को और विस्तारित करके नयी जातियों और उपजातियों को उसके दायरे में लाने की कवायदें की जा रही हैं। आरक्षण को ख़त्म करने की बात करने वाले कभी उस आरक्षण की बात नहीं करते जो इस देश में धनिकों को मिला हुआ है। आज पैसे वालों को अच्छी शिक्षा और अच्छा रोज़गार मिलना ग़रीबों की तुलना में बेहद आसान है। लेकिन कोई भी राजनीतिक दल इस आरक्षण पर सवाल नहीं उठाता। दूसरी ओर जो लोग आरक्षण के दायरे को बढ़ाने या नयी जातियों को उसके दायरे को लेकर जातिगत समीकरणों की राजनीति कर रहे हैं, वे भी यह सवाल नहीं उठाते कि देश में नौकरियों की संख्या और रोज़गार सृजन की दर ही इतनी कम है कि कुछ लोगों को आरक्षण का लाभ मिल भी जाये तो व्यापक आम आबादी को उससे कोई लाभ नहीं मिलने वाला। ऐसे में आरक्षण के पक्ष या विपक्ष की राजनीति के चंगुल में फँसने की बजाय तीसरे कि़स्म की राजनीति की शुरुआत करने की ज़रूरत है, जिसकी माँग सबको एकसमान शिक्षा और रोज़गार की गारण्टी होनी चाहिए।

सभा का संचालन करते हुए जागरूक नागरिक मंच के सत्यम ने कहा कि राज्य के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के पौने तीन लाख पद बरसों से ख़ाली पड़े हैं, जो थोड़ी-बहुत भर्तियाँ हो भी रही हैं, उनको तरह-तरह के हथकण्डोंे से टाला जा रहा है और भर्ती की पूरी प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक अन्धाधुन्ध निजीकरण ने शिक्षा का ऐसा बाज़ार बना दिया है, जहाँ आम घरों के बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा पाना नामुमकिन होता जा रहा है। रोज़गार विभाग के अधिकारियों के अनुसार उत्तर प्रदेश में बेरोज़गारों की संख्या एक करोड़ तक पहुँच चुकी है, जबकि अर्द्धबेरोज़गारों को जोड़ लें तो यह आँकड़ा 4 करोड़ से ऊपर चला जायेगा। नये रोज़गार पैदा करना तो दूर, पहले से ख़ाली लाखों पदों पर भी भर्तियाँ नहीं हो रही हैं। सरकारी आँकड़ों के अनुसार यहाँ बेरोज़गारी की दर 6.5 प्रतिशत है, जोकि राष्ट्रीय दर 5.8 प्रतिशत से काफ़ी ज़्यादा है। 18 से 29 वर्ष के लोगों में हर 1000 व्यक्तियों पर प्रदेश में 148 बेरोज़गार हैं, यानी रोज़गार तलाशने की उम्र में लगभग हर छठा व्यक्ति बेरोज़गार है।

सभी सरकारें शिक्षा की उपेक्षा करती रही हैं और इसका बजट बढ़ने की बजाय लगातार कम होता जा रहा है। स्कूल जाने वाले प्रदेश के क़रीब 2.74 करोड़ बच्चों में से आधे से अधिक बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते हैं जिनकी दशा बेहद ख़राब है। 10,187 प्राथमिक और 4895 उच्चतर प्राथमिक स्कूल तो ऐसे हैं, जो केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। 55 प्रतिशत विद्यार्थी स्कूल जाते ही नहीं। स्कूलों की हालत सुधारने के बजाय वर्तमान सरकार अब हज़ारों सरकारी स्कूलों को ही बन्द करने की कोशिश कर रही है। अधिकांश प्राइवेट स्कूलों में भारी फ़ीस चुकाने के बाद भी बच्चों को ढंग की शिक्षा नहीं मिल पाती। कुकुरमुत्ते की तरह खुल रहे निजी मेडिकल-डेण्टल, इंजीनियरिंग और मैनेजमेण्ट कॉलेज मोटी फ़ीस वसूलने के बाद भी ऐसी घटिया शिक्षा देते हैं, जो किसी काम की नहीं होती। इतनी बुरी स्थिति के बावजूद प्रदेश में शिक्षा पर व्यय में लगातार कटौती की जाती रही है।

मुख्यमन्त्री को सौंपे गये ज्ञापन में अभियान की ओर से यह प्रमुख माँग उठायी गयी है कि ‘हरेक काम करने योग्य नागरिक को स्थायी रोज़गार व सभी को समान एवं निःशुल्क शिक्षा’ के अधिकार को संवैधानिक संशोधन करके मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाये। प्रदेश सरकार इस बाबत विधानसभा में प्रस्ताव पारित करके केन्द्र को भेजे। प्रदेश में शहरी और ग्रामीण बेरोज़गारों के पंजीकरण की व्यवस्था की जाये और रोज़गार नहीं मिलने तक कम-से-कम 10,000 रुपये बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये। इसे सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश सरकार ‘भगतसिंह रोज़गार गारण्टी क़ानून’ पारित करे। ज्ञातव्य है कि नौजवान भारत सभा तथा अन्य संगठनों की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर भी इस क़ानून को पारित करने की माँग उठायी जा रही है।

ज्ञापन में भर्ती परीक्षाओं में पास उम्मीदवारों को तत्काल नियुक्ति देने, विभिन्न विभागों में ख़ाली पड़े लाखों पदों को भरने की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू करने, सरकारी विभागों में ठेका प्रथा खत्म करके नियमित नियुक्ति देने, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के सभी पदों को भरने तथा निजी स्कूलों-कॉलेजों, मेडिकल-डेण्टल, इंजीनियरिंग व मैनेजमेण्ट कॉलेजों में फ़ीस, सुविधाएँ और शिक्षकों के वेतन के मानक तय करने के लिए क़ानून बनाने की माँग की गयी है। इसके साथ ही नौकरियों के लिए आवेदन के भारी शुल्कों को ख़त्म करने और साक्षात्कार तथा परीक्षा के लिए यात्रा को निःशुल्क करने, प्राइवेट ट्यूशन और कोचिंग सेण्टरों की मनमानी और लूट को रोकने के लिए नियमावली बनाने तथा प्रदेश में रोज़गार और ख़ाली पदों की स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की माँग भी की गयी है।

सभा को दिशा छात्र संगठन के अविनाश, संयुक्त कर्मचारी राज्य परिषद के इलाहाबाद जि़लाध्यक्ष अजय भारती, शिक्षा मित्र एसोसिएशन की उमा देवी तथा गवर्नमेण्ट प्रेस कर्मचारी यूनियन, इलाहाबाद के ए एन सिंह ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर ‘प्रत्यूष’ तथा ‘दिशा’ की साँस्कृतिक टोली द्वारा कई क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किये गये। सभा स्थल पर भगतसिंह के जीवन एवं विचारों पर आधारित एक पोस्टर प्रदर्शनी और शिक्षा एवं रोज़गार की स्थिति पर पोस्टर श्रृंखला भी प्रदर्शित की गयी थी। सभा का समापन इस संकल्प के साथ हुआ कि आने वाले दिनों में शिक्षा-रोज़गार अधिकार अभियान को और व्यापक रूप देकर अगली बार और ज़ोरदार दस्तक दी जायेगी।

 

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर-अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2018


 

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