दिल्ली में निजी कोचिंग संस्थानों के मुनाफ़े की हवस ने ली छात्रों की जान
बरसों से अनेक समस्याओं में जी रहे छात्र के सब्र का बाँध टूटा, सड़कों पर उमड़ा ग़ुस्सा!

आदित्य

बीते 27 जुलाई को देश की राजधानी में एक वीभत्स घटना घटी। दिल्ली के ओल्ड राजेन्द्र नगर के एक कोचिंग संस्थान की एक एक लाइब्रेरी में भारी बारिश के बाद पानी भरने से (बिना शहर में कोई बाढ़ आये) 3 छात्रों की डूब कर मौत हो गयी। ये तीनों छात्र यूपीएससी की तैयारी कर रहे थे। वैसे तो असल में इस घटना में कितने लोगों की मौत हुई यह अभी तक साफ़ नहीं है। घटना के वक़्त वहाँ 30-40 (यह अब तक पुष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता) लोग मौजूद थे, जिसमें से कुछ छात्र बाहर निकल आये। लेकिन कुल कितने छात्रों की मौत हुई यह अभी भी रहस्य है। हर बार की तरह यह पूरा तन्त्र – पुलिस-प्रशासन और सरकार, घटना और उसकी असल वज़हों पर पर्दा डालने की कोशिश में लग गये। सरकार की चाटुकार पुलिस ने कुल मौत का आँकड़ा छिपाना शुरू कर दिया और न ही घटना का सीसीटीवी फुटेज जारी किया। इतना ही नहीं, इस घटना के चार दिन पहले ही भारी बारिश के बाद एक छात्र की बिजली लगने से मौत हो गई थी। किन्तु बावजूद इसके एमसीडी (दिल्ली नगर निगम) ने कोई कार्रवाई नहीं की जिसके बाद यह दिल दहला देने वाली घटना घटी।

यह दुर्घटना नहीं हत्या है!

भले ही ये जनविरोधी सरकार (दिल्ली और देश दोनों ही) इस पूरी घटना को महज़ हादसा करार देने में लगे हों, लेकिन सच तो यह है कि यह इस व्यवस्था में चन्द लोगों के मुनाफ़े की हवस ने इनकी हत्या की है। इनके कारणों पर अगर गौर करें तो हम पायेंगे कि पुलिस, दिल्ली नगर-निगम, दिल्ली सरकार व केन्द्र सरकार – सभी इसके लिये ज़िम्मेदार हैं। यही कारण है कि ऐसी किसी घटना के होते ही ये सब मिल जाते हैं और इसे प्राकृतिक आपदा बताने लगते हैं या फ़िर किसी एक व्यक्ति को इसके लिये ज़िम्मेदार ठहराने लगते हैं। उदाहरण के लिये जैसे ही इस घटना के बाद लोगों का प्रतिरोध उमड़ पड़ा, पुलिस ने एक थार ड्राईवर को गिरफ़्तार कर लिया जो उस वक़्त वहाँ से गाड़ी लेकर गुज़र रहा था या फ़िर राओ कोचिंग संस्थान के मालिक के वकील ने इस घटना को महज़ “एक्ट ऑफ गॉड” करार दिया। लेकिन वहाँ जैसे अवैध तरीक़े से इमारतों के बेसमेण्ट में लाइब्रेरी चल रही होती है, उसपर न तो एमसीडी और न ही आप सरकार या भाजपा सरकार कोई उपयुक्त कार्रवाई करती है, उल्टा इसपर लीपापोती करने का काम करती है और एक-दूसरे पर आरोप मढने का का काम करती है। लोगों के ग़ुस्से को शान्त करने के लिये चन्द बेसमेण्ट को सील कर दिया जाता है, लेकिन यह नही बताया जाता कि एमसीडी को कई बार छात्रों ने ऐसे किसी घटना के हो जाने की चेतावनी दी थी। अर्थात छात्रों को तत्काल कुछ दिखाकर उन्हें शान्त करने की कोशिश की जाती है और यह बोला जाता है कि आप अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, हम असल कारणों पर पर्दा डालते रहेंगे!

अगर असल कारणों पर गौर करें तो हम पायेंगे कि इसके लिये ज़िम्मेदार मुनाफ़े की अन्धी हवस है, जिसका एक हिस्सा सरकार, नगर-निगम, पुलिस सबको जाता है। दिल्ली का ओल्ड राजेन्द्र नगर देश के कई इलाक़ों की तरह एक केन्द्र है जहाँ देश भर से छात्र आईएएस-आईपीएस बनने का सपना लेकर आते हैं। उनके इसी सपने का सौदा किया जाता है और जो इस सौदे को ख़रीदने की औकात रखता है, उसे ही इसके लिये सोचने का भी मौका दिया जाता है। यह बात दीगर है कि उसमें से एक प्रतिशत लोग भी यह सपना पूरा नहीं कर पाते हैं। आगे आँकड़ों से हम इस बात की पुष्टि भी करेंगे। यहाँ छात्रों के आते ही उन्हें लूटने की होड़ मची होती है। पहले तो यहाँ कोचिंग संस्थानों की फ़ीस लाखों में होती हैं जहाँ सैकड़ों छात्रों के कई बैच चलाये जाते हैं। इसमें भी छात्रों को भ्रमित करने और पैसे ऐंठने के लिये अलग-अलग कई किस्म के कोर्स रखे जाते हैं। इतना ही नही, इनसे वहाँ रहने पर भी इन्हें लूटा जाता है। रहने के लिये छात्रों से सोने-चाँदी के जैसे पैसे लिये जाते हैं, रहने को माचिस की डिब्बी जैसे कमरे दिये जाते हैं। उसमें भी यहाँ एक दलालों का नेटवर्क चलता है जिसके बिना कमरे नही मिल सकते। इस तरह यह पूरा कारोबार अरबों का है। अब आप सोच सकते हैं कि क्यों पुलिस, नगर-निगम, सरकार और मीडिया इस घटना को “दुर्घटना” करार देने को अमादा है!

आज शिक्षा की हालत और इसका बाजारीकरण

पहले हम यूपीएससी के छात्रों की बात करें तो आज भले ही लाखों बच्चे देशभर में इसकी तैयारी करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें से बमुश्किल ही कुछ छात्रों को नौकरियाँ मिल पाती हैं। अगर आँकड़ों पर नज़र दौड़ाएँ तो 2023 में 13 लाख से भी ज़्यादा छात्र इस परीक्षा में शामिल हुए थे, लेकिन इसमें से महज़ 1016 छात्र ही इसमें उत्तीर्ण हो पाये। मतलब सिर्फ़ 0.07 प्रतिशत छात्र ही इस परीक्षा में पास हो पाये। वहीँ 2021 में 5,08,619 छात्रों ने इस परीक्षा में भागीदारी की थी जिसमें से सिर्फ़ 685 छात्रों को, मतलब 0.13 प्रतिशत छात्रों को ही नौकरी मिल पायी। इसमें भी यह तो आज साफ़ है कि जिस तरह से भाजपा और आरएसएस के लोगों ने हर संस्थानों में अपने लोगों को घुसाने का काम किया है, तो इसमें शक नहीं होना चाहिए कि इन “उत्तीर्ण” छात्रों में बहुमत में वैसे ही लोगों को चुना जाता हो जिनका सम्बन्ध उनके ही ज़हरीले विचारधारा से हो। साथ में 2021 की तुलना में दोगुने से भी अधिक छात्रों का परीक्षा के लिये फॉर्म भरना बाकि जगहों पर नौकरी न होने की बात भी साबित करता है। और आज यह हक़ीक़त है कि रोज़गार की भयंकर कमी के कारण सालों तैयारी करने के बाद बाकि के लाखों छात्र या तो वापस घर बेरोज़गार लौट जाते हैं, छोटा-मोटा धन्धा शुरू कर देते हैं, छोटी-मोटी नौकरियाँ करने को मजबूर हो जाते हैं या फ़िर इन सब से हारकर आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं।

आज देश के हर शिक्षण संस्थानों की हालत कमोबेश यही है। सरकारी स्कूलों की हालत कैसी है यह हमें पहले ही पता है, अब सरकारी कॉलेजों को भी सोचे-समझे तरीक़े से बर्बाद किया जा रहा है ताकि निजी स्कूलों-कॉलेजों-कोचिंगों का धन्धा चल सके। शिक्षा को बाज़ारू माल बना दिया गया है। इसमें कई कोचिंग माफ़िया का जन्म हुआ है जो अपने तरीक़ों से मनमाना तौर पर छात्रों को लूटने का काम करते हैं। इनका अरबों का कारोबार होता है और अपने पैसों के दम पर प्रचारों के ज़रिये यूपीएससी जैसी प्रतियोगी प्रतियोगिताओं को पा लेने की ख़ुमारी लोगों में नशे की तरह चढ़ायी जाती है। उन्हें किताबों की दुनिया में क़ैद रहने कहा जाता है और बताया जाता है कि सवाल मत करो!

आज नौकरियाँ पहले ही नहीं हैं और नाममात्र की वैकेंसियाँ निकल रहीं हैं, लेकिन आलम यह है कि उसमें भी एनटीए जैसे संस्थान के ज़रिये पेपर लीक करा दिया जाता है। और यह यहीं तक सीमित नही रहता, नीट-जेईई, जेआरई जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं में भी धाँधली हो जाती है। इन घटनाओं का ही प्रभाव है कि आज लगातार छात्रों के आत्महत्याओं में इज़ाफ़ा हो रहा है। 2018 से 2022 के बीच कुल 59,239 ने आत्महत्याएँ की। इसमें सिर्फ़ 2022 में लगभग 13 हज़ार छात्रों ने आत्महत्या की जबकि 2017 में यह संख्या 9,905 थी। इस संख्या का बढ़ना अपने आप में देश की शिक्षा व्यवस्था की ख़स्ता हालत को बयाँ करने के लिये काफ़ी है जो दिन-ब-दिन बदतर ही होती जा रही है।

लोगों का उभरता प्रतिरोध

ऊपर लिखित बातों से यह स्पष्ट है कि कैसे आज शिक्षा का बाज़ारीकरण कर दिया गया है, और इसे चन्द लोगों की बपौती बना दी गयी है। लेकिन आज साथ ही देश भर में इन घटनाओं के ख़िलाफ़ प्रतिरोध भी उमड़ रहा है। यह कोई अनायास नही है कि नीट और जेआरई के पेपर लीक होने के बाद देश भर के छात्र सड़कों पर उतर आते हैं। या फ़िर ओल्ड राजेन्द्र नगर की घटना होने पर अपने कमरों और लाइब्रेरियों में क़ैद रहने वाले छात्र सड़कों पर उतर जाते हैं। यह वास्तव में तमाम समस्याओं का एक चरम बिन्दु है जिसके बाद आम छात्रों और लोगों का ग़ुस्सा इसपर फूट रहा है। यह तो असल में महँगी होती शिक्षा, भयंकर बेरोज़गारी और तमाम विषम परिस्थितियों जैसे महँगाई, साम्प्रदायिकता आदि का नतीज़ा है जो किन्हीं घटनाओं के घटित होने पर सामने आ रहा है। हाल ही में बंगलादेश के छात्रों का देशव्यापी आन्दोलन इसी का उदाहरण है, जिसमें छात्रों का ग़ुस्सा वहाँ लम्बे समय से चले आ रही महँगाई, बेरोज़गारी आदि जैसी समस्याओं पर फूट पड़ता है और वहाँ की प्रधानमन्त्री तक को देश छोड़ का भागना पड़ता है।

आज छात्रों के सामने विकल्प क्या है?

देश की सरकार कितना भी दावा कर ले कि हमारा देश तरक्की कर रहा है, विश्वगुरु बन रहा है, लेकिन देश के हालात लोगों को इसे सच मानने से रोक रहे हैं। देश में मौजूद फ़ासीवादी सरकार द्वारा लगातार एक नकली दुश्मन खड़ा करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन एक बड़ी आबादी यह समझने लगी है कि देश में आज उनकी असल समस्या महँगी शिक्षा, महँगा स्वास्थ्य, बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी आदि है। ऐसे में आज छात्रों को सिर्फ़ घटना विशेष पर प्रदर्शनों तक सीमित नहीं रहना होगा। इन तमाम विरोध प्रदर्शनों को एक व्यापक राजनीतिक विरोध प्रदर्शन बनाने का काम करना होगा। ऐसे छात्रों के स्वतन्त्र संगठन बनाने होंगे जो छात्रों के जनआन्दोलनों को सही दिशा दे सकें। कोई भी प्रदर्शन सिर्फ़ एक घटना तक ही सीमित न रहे बल्कि इसके ज़रिये सबके लिये समान व निःशुल्क शिक्षा-स्वास्थ्य, पब्लिक लाइब्रेरी जैसी माँगों को भी उठाया जाये। हर जगह छात्रों के रहने के लिये सरकारी होस्टलों की व्यवस्था की जाये। जहाँ सरकार यह नहीं कर पाती वहाँ रेण्ट कण्ट्रोल एक्ट लागू किये जायें जिसके ज़रिये दलालों और मकानमालिकों जैसे परजीवियों पर काबू किया जा सके। यही नहीं, हमें उन तमाम प्रदर्शनों का समर्थन करना होगा जो आज ग़लत के ख़िलाफ़ उठ रहे हैं। चाहे बंगाल में हुई अमानवीय घटना के ख़िलाफ़ हो या बंगलादेश में छात्रों का समर्थन हो, हमें हर तरह के समर्थन जुटाने व करने होंगे। हमें भगत सिंह, सुखदेव चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे युवा क्रान्तिकारियों की विरासत को आगे बढ़ाना होगा और देश के तमाम छात्रों का एक देशव्यापी आन्दोलन खड़ा करना होगा, तभी जाकर देश के तमाम छात्रों के लिये एक बेहतर भविष्य की बात की जा सकती है!

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2024


 

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