यमन संकट और अन्तरराष्ट्रीय मीडिया की साज़िशी चुप्पी
यमन में मौजूदा उथलपुथल की तार तो अरब बहार के समय से ही जोड़ी जा सकती है जब यमन में भी ट्यूनिशिया, मिस्र की तरह ही लोग तत्कालीन राष्ट्रपति अली अब्दुल्लाह सालेह के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए थे। यमन अरब के सबसे ग़रीब देशों में से है जहाँ तक़रीबन 40% आबादी ग़रीबी में रहती है। और इसी ग़रीबी, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को लेकर जनता का गुस्सा लगातार सालेह के ख़िलाफ़ बढ़ रहा था जिसने यमन पर 33 सालों तक (पहले यमन अरब गणतन्त्र के राष्ट्रपति के तौर पर और 1990 में दक्षिणी यमन के साथ एकीकृत होने के बाद पूरे यमन में) बतौर राष्ट्रपति हुक़ूमत की।