लोग पूँजीवादी व्यवस्था में व्याप्त सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा होने के कारण धर्म-कर्म के चक्कर में पड़ते हैं। पूँजीवादी समाज का जटिल तन्त्र और उसमें व्याप्त अस्थिरता किसी भाववादी सत्ता में विश्वास करने का कारण बनती है। असल में धार्मिक बाबाओं के पास लोग एकदम भौतिक कारणों से जाते हैं। किसी को रोज़गार चाहिए, किसी को सम्पत्ति के वारिस के तौर पर लड़का चाहिए, कोई अपनी बीमारी के इलाज के लिए जाता है तो किसी को धन चाहिए। यही नहीं बौद्धिक रूप से कुपोषित नेता-मन्त्री और ख़ुद को पढे-लिखे कहने वाले लोग भी अपनी कूपमण्डूकता का प्रदर्शन करते रहते हैं। मौजूदा व्यवस्था की वैज्ञानिक समझ के बिना और तर्कशीलता और वैज्ञानिक नज़रिये से रीते होने के कारण लोग पोंगे-पण्डितों को अवतार पुरुष समझ बैठते हैं। ये ढोंगी बाबा एकदम विज्ञान पर आधारित कुछ ट्रिकों का इस्तेमाल करते हैं और अपनी छवि को चमत्कारी व अवतारी के तौर पर प्रस्तुत करते हैं। हरियाणा में कभी सिंचाई विभाग का जूनियर इंजीनियर रह चुका रामपाल भी चमत्कारी प्रभाव छोड़ने के लिए हाईड्रोलिक्स कुर्सी तथा रंगबिरंगी लाइटों का इस्तेमाल करता था। धार्मिक गुरु घण्टाल लोगों को तर्क न करने, पूर्ण समर्पण करने, दिमाग़ को ख़ाली रखने आदि जैसी “हिदायतें” लगातार देते रहते हैं। यहाँ पर ‘श्रद्धावानम् लभते ज्ञानम्’ के फ़ार्मूले पर काम करना सिखाया जाता है। लेकिन इस सबके बावजूद कुछ लोग इनके पाखण्ड को समझने की “भूल” कर बैठते हैं तो इन जैसों से ये बाबा दूसरे तरीक़े से निपटते हैं। अपने “भटके हुए” भक्तों की हत्या तक करवा देना इन बाबाओं के बायें हाथ का खेल है। आसाराम और नारायण साईं, कांची पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती, डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम, चन्द्रास्वामी, प्रेमानन्द आदि ऐसे चन्द उदाहरण हैं जिनके नाम अपने भक्तों को असली मोक्ष प्रदान करने में सामने आये हैं।