खट्टर सरकार का फरमान- मुँह सिलकर करो काम!
रमेश
केन्द्र में मोदी सरकार और हरियाणा में खट्टर सरकार आने के बाद भाजपा समर्थकों ने घोषणा की कि अब देश ‘हिन्दू राष्ट्र’के एजेण्डे पर चलेगा। भाजपा सरकार के पिछले डेढ़ साल में संघ के दोनों लाडलों (मोदी-खट्टर) ने सिद्ध कर दिया कि इनके तथाकथित हिन्दू राष्ट्र में केवल अम्बानी, अदानी जैसे पूँजीपतियों, बड़े व्यापारी और धर्म के ठेकेदारों के अच्छे दिन आयेंगे (वैसे इनके बुरे दिन थे ही कब?) मज़दूरों-ग़रीबों- किसानों से लेकर दलितों-अल्पसंख्यों पर दमन और उत्पीड़न के हमले तेज होंगे। अब इसी कड़ी में खट्टर सरकार ने सरकारी कर्मियों के हड़ताल, धरने और प्रदर्शन में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी है। सरकार ने हड़ताल आदि में भाग लेने को ग़लत ठहराते हुए सरकारी आचरण 1966 के नियम 7 व 9 में निहित प्रावधानों का हवाला देकर कहा है कि यूनियन का गठन किया जाना, हड़ताल पर जाने के अधिकार की गांरटी नहीं माना जा सकता। साफ है ये तुगलकी फरमान मज़दूरों-कर्मचरियों को चेतावनी है कि मुँह सिलकर काम करो।
असल में खट्टर सरकार हरियाणा में श्रम-कानूनों को कमजोर करने से लेकर निजीकरण-ठेकाकरण की नीतियों को जनता पर थोपना चाहती है और इसके खिलाफ उठाने वाली हर आव़ाज को पहले ही दबाने के लिए कानूनी फंदा कस रही है। वही मज़दूर संगठनों ने हड़ताल-धरने पर पांबदी लगाने के फरमाने के खिलाफ आव़ाज उठानी शुरू कर दी।
आइये, अब खट्टर सरकार की एक वर्ष की कथनी-करनी पर भी नजर डाल लेते है। अभी हाल में खट्टर सरकार अपनी पीठ थपथपाने के लिए अखबारों, टीवी-चैनलों में बडे़-बड़े विज्ञापनों द्वारा अपने चेहरे पर रंग-रोगन कर रही है, उसके मंत्री झूठे विकास के कसीदे पढे़ रहे हैं, नारा दिया जा रहा है ‘एक वर्ष-सर्वत्र हर्ष। लेकिन जमीन स्तर पर जनता के सामने इन नारों की पोल खुल रही है। आम आबादी समझ चुकी है कि मोदी सरकार की तरह खट्टर सरकार के चुनावी वादे भी सिर्फ जुमले थे। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जनता से 150 से ज्याद वादे किये हैं। खट्टर सरकार के कुछ बुनियादी वादों और हकीकत को देखकर तस्वीर साफ हो जाएगी कि ‘सर्वत्र हर्ष’कहां और किसके लिए है। आज भी सरकारी स्कूलों 40 हजार से ज्यादा शिक्षक और सहयोगी कर्मी ठेके पर हैं। चुनाव से पहले शिक्षामंत्री रामविलास शर्मा सरकार बनते ही गेस्ट टीचरों को एक कलम से पक्का करने का वादा कर रहे थे। लेकिन सरकार ने आते ही 4073 से ज्याद गेस्ट टीचर्स को ‘‘सरप्लस’बताकर निकाल दिया। डिजिटल इण्डिया का नारे देने वाली सरकार ने 2852 कम्प्यूटर टीचरों, 2600 लैब सहायकों को नौकरी से हटा दिया। नयी शिक्षा नीति के तहत 300 से ज्यादा सरकारी स्कूल बन्द करने का नोटिस दे दिया। सरकारी स्कूली पाठ्यक्रम में साम्प्रदायिक जहर घोलने के लिए संघ प्रचारक दीनानाथ बत्रा की घोर अवैज्ञानिक, साम्प्रदायिक किताबों शामिल कर दी गईं।
हुड्डा राज में स्वास्थ्य विभाग भी डाक्टरों और सहायक कर्मी वजह से बदतर हालात में था अब खट्टर सरकार ने स्वास्थ्य विभाग में नेशनल स्वास्थ्य मिशन के 50 प्रतिशत स्टाफ को निकालने का फरमान जारी कर दिया। यानी ज्यादातर आबादी को प्राईवेट अस्पतालों में लुटने-मरने के लिए छोड़ दिया है। वहीं चुनाव में रोज़गार और बेरोज़गारी भत्ते के वादे और खट्टर सरकार की कथनी-करनी में जमीन-असमान का अन्तर है। हरियाणा रोजगार कार्यालय के अनुसार प्रदेश 8 लाख से ज्यादा बेरोजगार आबादी है असल में ये सिर्फ सरकारी कार्यालय में दर्ज आबादी जबकि कई लाख आबादी अपना नाम दर्ज नहीं करती है चुनाव वादों में खट्टर सरकार ने 6000 और 9000 हजार बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था लेकिन एक साल बाद भी बेरोजगारी भत्ते का नामो-निशान नहीं है।
प्याज और दाल के असमान छूती कीमतों के बाद तीन गुण बिजली बिलों में वृद्धि करके मध्यमवर्ग आबादी पर भी मँहगाई का बुलडोजर चला दिया हैं। साथ ही खट्टर सरकार जनता को बांटने के लिए अटाली, मेवात और हिसार जैसी साम्प्रदयिक राजनीति को संरक्षण दे रही है, सोनीपत-गोहाना-हिसार में दलित उत्पीड़न की घटनाएँ सरकार का दलित-विरोधी चेहरा बेनकाब कर रही है। असल में भाजपा और संघ परिवार ‘‘फूट डालो और राज करो’की नीति पर ही जनता को ठगते रहे हैं। और मौजूदा खट्टर सरकार भी जनता की पाई-पाई निचोड़ने का काम धर्म, राष्ट्रवाद और प्राचीन-संस्कृति की चादर ओढ़कर कर रही है। वैसे भी भाजपा और संघ परिवार की सारी देश-भक्ति देशी-विदेशी पूँजीपतियों के लिए है तभी मज़दूरों के श्रम कानूनों खत्म करने से लेकर गरीब किसानों की जमीनें छीनकर पूँजीपतियों को सौंपी जा रही है। विपक्ष में रहकर एफडीआई का विरोध करनी वाली भाजपा रक्षा, बीमा, रेलवे आदि क्षेत्रों खुलकर विदेशी पूँजी को ला रही है। ऐसे में हमें सभी चुनावी मदारियों का पर्दाफाश करना होगा। और शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर जनता के संघर्ष को एकजुटता करने के लिए आगे आना होगा।
मज़दूर बिगुल, दिसम्बर 2015
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