निवेश के नाम पर चीन के प्रदूषणकारी उद्योगों को भारत में लगाने की तैयारी

मीनाक्षी

मोदी सरकार की ‘मेक इन इण्डिया’ की नीति ने चीन जैसे देशों के लिए बड़ी सहूलियत पैदा कर दी है। उन्हें अपने देश के अत्यधिक प्रदूषण पैदा करनेवाले और पुरानी तकनीक पर आधारित उद्योगों को भारत में ढीले और लचर श्रम क़ानूनों की बदौलत यहाँ खपा देने का मौक़ा मिल गया है। पिछले तीन दशकों से चीन में लगातार जारी औद्योगिकीकरण ने चीन की आबोहवा को इस कदर प्रदूषित कर डाला है कि वहाँ के कई शहरों में वायु प्रदूषण के चलते हमेशा एक धुन्ध जैसी छायी रहती है। यह किस ख़तरनाक हद तक मौजूद है इसे सिर्फ़ इस बात से समझा जा सकता है कि यहाँ एक क्यूबिक मीटर के दायरे में हवा के प्रदूषित कण की मात्र 993 माइक्रोग्राम हो गयी है जबकि इसे 25 से अधिक नहीं होना चाहिए। एक अन्तरराष्ट्रीय संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनिया के 20 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 16 तो चीनी शहर ही हैं और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में इसका स्थान तीसरा है। चीन के पर्यावरण के लिए ये महाविपदा साबित हो रही हैं।

Pollutionउद्योगों के तीव्र और असन्तुलित विकास का असर जल स्रोतों पर भी हुआ है। वहाँ जल प्रदूषण ने भंयकर रूप ले लिया है। अभी पिछले कुछ महीने पूर्व यह ख़बर आयी थी कि जोजियांग इलाक़े के लोगों ने एक सुबह देखा कि उस क्षेत्र से होकर गुजरनेवाली नदी अचानक सुर्ख लाल हो चुकी है। निश्चय ही नदी में वहाँ के कारख़ानों से निकला रासायनिक कचरा डाला गया था। उस क्षेत्र में खाद और काग़ज़ के कारख़ानों के साथ खाद्य पदार्थ में रंग मिलानेवाले और कपड़े रंगनेवाले कारख़ाने चलते हैं। ये सभी ज़हरीला रसायन पैदा करनेवाले कारख़ाने हैं। ज़ाहिर है, औद्योगिकीकरण के तेज़ रफ्तार में मिल मालिकों पर इन कचरों के निपटान का समुचित  प्रबन्ध करने का कोई दबाव नहीं था। सो बरसात के मौसम को देखते हुए उन्होंने यह सोचकर इसे नदी में प्रवाहित कर दिया कि बारिश का पानी इस कचरे को बहा ले जायेगा। अब चीनी जनता की जान जाती है, तो जाये! कचरा निपटान पर आनेवाले ख़र्च को बचाकर ही मुनाफ़े की दर को और अधिक बढ़ाया जा सकता था। लेकिन इस बार बरसात देर से हुई और इनकी पोल-पट्टी खुल गयी। प्रदूषण पैदा करनेवाले इन उद्योगों के चलते ज़मीन के कई फ़ीट नीचे तक का पानी भी प्रदूषित हो चुका है। सरकारी आँकड़ों में यह दर्ज है कि वहाँ कुल भूजल वाले क्षेत्रों में 59.6 प्रतिशत की दशा अत्यन्त शोचनीय है।

आज चीन में सबसे अधिक सस्ता और सबसे अधिक प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार कोयले का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में दुनिया के किसी देश के मुकाबले सबसे अधिक होता है। इन कोयला आधारित उद्योगों के लिए जिसमें बिजली उत्पादन भी आता है, पानी के बहुत अधिक इस्तेमाल की ज़रूरत पड़ती है जिससे इन उद्योगों वाले इलाक़ों में पानी की बेहद कमी हो जाती है। इसकी वजह से आज उत्तरी चीन का इलाक़ा लगभग सूख ही चला है। इतना ही नहीं कोयला-रसायन आधारित उद्योग औसतन 9 टन एनिलीन पैदा करते हैं जिससे कैंसर हो सकता है। सच्चाई भी यही है कि कैंसर की बीमारी चीन में तेजी  से फैल रही है। आँतों के कैंसर के रोगियों में 9.7 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है। वायु प्रदूषण के चलते फेफड़े और साँस नली के कैंसर के मरीज भी बढ़े हैं। इस बीमारी की गम्भीरता का अन्दाज़ा इसी बात से लगाया जाता है कि चीन के कई इलाक़े कैंसर ग्राम के नाम से जाने जाते हैं। चीन में जीडीपी या सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भले ही 10 प्रतिशत रहती हो, परन्तु वहाँ औद्योगिक प्रदूषण से हर साल 750,000 मौतें भी होती हैं। अशुद्ध जल के शोधन या विषैले कचरे के निपटान अथवा प्रदूषण मुक्ति के लिहाज़ से उन्नत तकनोलॉजी के इस्तेमाल सम्बन्धी आर्थिक या अन्य नीतिगत क़दम उठाने की जगह चीन सरकार अब इन प्रदूषणकारी उद्योगों से ही, जिन्हें ‘सनसेट इण्डस्ट्री’ कहा जाता है, छुटकारा पाने का उपाय ढूँढ़ रही है। इस मकसद के लिए वह तरह-तरह के हथकण्डे अपनाकर ऐसे जानलेवा उद्योगों को तीसरी दुनिया के बंगलादेश, लाओस और वियतनाम समेत अपने पड़ोसी देशों के मत्थे मढ़ रही है। इसी सनसेट इण्डस्ट्री को लेकर हाल के दिनों में वियतनाम में चीन विरोधी दंगे भी हुए हैं। लेकिन भारत के मामले में चीन अपनी इस मुहिम में कामयाबी के करीब आता लग रहा है। पूँजीपति वर्ग के चहेते मोदी भारत में निवेश के लिए भीख का कटोरा लेकर ख़ुद ही छोटे-बड़े सभी देशों में दौरा करते घूम रहे हैं। और नानाविध सुविधाओं का आश्वासन देकर उनके लालच को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में चीन के लिए अपने प्रदूषणकारी तकनोलॉजी वाले उद्योगों को भारत में खपाना अन्य देशों की अपेक्षा अधिक आसान हो गया है। परन्तु चीनी हुक्मरान बेईमानी के साथ अपने इस इरादे पर पर्दा भी डालना चाहते हैं। लिहाज़ा सनसेट इण्डस्ट्री से मिलनेवाले लाभ को बढ़-चढ़कर पेश करने के प्रयास में लगे दिखायी देते हैं, जैसाकि चीनी पार्टी के मुखपत्र ‘पीपुल्स डेली’ के एक वरिष्ठ सम्पादक डिंग गैंग ने ग्लोबल टाइम्स समाचारपत्र में अपने लेख के हवाले से कहा, ‘चीन के सनसेट उद्योग वहाँ हैं, जहाँ भारत की उम्मीदें हैं।’ इस लेख में मोदी सरकार को चीन द्वारा निर्माण क्षेत्र में हासिल सफलता से सीखने की सलाह दी गयी है। चीन की आबोहवा और चीनी जनता के सेहत को तबाह-बर्बाद करनेवाले ये सनसेट उद्योग अपने देश में पर्यावरणकर्मियों के विरोध का सामना करने के चलते ही नहीं, बल्कि श्रम के बढ़ती दर व महँगी होती ज़मीन और उपकरण के चलते भी अपने से कम विकसित देशों की ओर रुख कर रहे हैं, जहाँ श्रम और ज़मीन दोनों ही सस्ते हैं। चीन के विभिन्न प्रान्तों से उद्यमियों का भारत आना शुरू हो गया है। ये अपने प्लाण्ट भारत और अन्य विकासशील देशों में स्थानान्तरित करने के मकसद से टेक्सटाइल, रसायन, लोहा व इस्पात और कम ऊर्जा की खपतवाले उद्योगों में सम्भावनाएँ तलाश रहे हैं। इससे भारत का पर्यावरण तबाह होता है तो होता रहे। पर्यावरण के विनाश और श्रम की लूट पर ही मोदी या पूँजी के किसी भी नुमाइन्दे के मैन्युफ़ैक्चरिंग हब की इमारत खड़ी हो सकती है। समूची पृथ्वी को पर्यावरण की तबाही से बचाने और जनजीवन के प्रदूषणमुक्त परिवेश के लिए कितने भी अन्तरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन और सभी देशों के बीच सहमति बनाने के लिए चिन्तन-मन्थन क्यों न कर लिये जायें, पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली के रहते इस विनाश को कभी रोका नहीं जा सकता। प्रदूषणकारी उद्योग इसी प्रकार फलते-फूलते रहेंगे और पूँजी के शोषणकारी सम्बन्ध इन मज़बूत देशों को पर्यावरण विनाश के लिए ज़िम्मेदार ऐसे ‘सनसेट’ उद्योगों को हमेशा कमजोर देशों के मत्थे मढ़ने का हौसला और ज़रिया देते रहेंगे।

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2014


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments