Category Archives: नेताशाही व नौकरशाही

गर थाली आपकी खाली है, तो सोचना होगा कि खाना कैसे खाओगे

ऐसे खेल तमाशे हर पाँचसाला चुनाव के पहले दिखाये जाते हैं। विशेषकर ग़रीब और ग़रीबी दूर करने से संबंधित नौटंकी चुनाव के ऐन पहले प्रदर्शन के लिए हमेशा सुरक्षित रखी जाती है। दरअसल इसके जरिये सत्तासीन पार्टी और सत्तासुख से वंचित तथाकथित विरोधी पार्टियां (जो कि वास्तव में चोर-चोर मौसेरे भाई की तरह ही होती हैं – जनता की हितैषी होने का दिखावा, लेकिन हकीकत में पूँजीपतियों की वफा़दार), दोनों ही आम जनता को भरमाने का मुगालता पाले रहती हैं। पर जनता सब जानती है। वह अपने अनुभव से देख रही है कि आजादी के 62 सालों में देश की तरक्की के चाहे जितने भी वायदे किये गये हों उसकी जिन्दगी में तंगहाली बढ़ी ही है। पेट भरने लायक जरूरी चीजों की भी कीमतें आसमान छू रही हैं, उसके आंखों के सामने उसके बच्चे कुपोषण और भूख से मर रहे हैं, और दवा और इलाज के अभाव में तिल-तिल कर खत्म हो जाना जिसकी नियति है। इस सच्चाई को ग़रीब और ग़रीबी के बेतुके सरकारी आँकड़े झुठला नहीं सकते।

कैसा है यह लोकतंत्र और यह संविधान किसकी सेवा करता है (इक्कीसवीं किश्त)

इन धन्नासेठों और अपराधियों की तू-तू-मैं-मैं और नूराकुश्ती के लिए संसद के सत्र के दौरान प्रतिदिन करोड़ो रुपये खर्च होते हैं जो देश की जनता के खून-पसीने की कमाई से ही सम्भव होता है। उसमें भी सत्र के ज़्यादातर दिन तो किसी न किसी मुद्दे को लेकर संसद में कार्यस्थगन हो जाता है और फिर जनता के लुटेरों को अय्याशी के लिए और वक़्त मिल जाता है। आम जनता की ज़िन्दगी से कोसों दूर ये लुटेरे आलीशान बंगलों में रहते हैं, सरकारी ख़र्च से हवाई जहाज और महँगी गाड़ियों से सफर करते हैं और विदेशों और हिल स्टेशनों पर छुट्टियाँ मनाते हैं। एक ऐसे देश में जहाँ बहुसंख्यक जनता को दस-दस बारह-बारह घण्टे खटने के बाद भी दो जून की रोटी के लाले पड़े रहते हैं, जनता के तथाकथित प्रतिनिधियों की विलासिता भरी ज़िन्दगी अपने आप में लोकतन्त्र के लम्बे-चौड़े दावों को एक भद्दा मज़ाक बना देती है।

यूपीए सरकार का सादगी ड्रामा

पूँजीपतियों द्वारा की जा रही जनता की लूट पर पर्दा डालने के लिए ये नेता लोगों को मूर्ख बनाने की फिराक में रहते हैं। लेकिन जनता को हमेशा-हमेशा के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता। एक दिन शोषित-उत्पीड़ित जनता उठेगी और उस मंच को ही उखाड़ फेंकेगी, जिस पर देश के हुक्मरान तरह-तरह के ड्रामे करते रहते हैं।

पंजाब में भी जनता बदहाल, नेता मालामाल

पंजाब सरकार खजाना खाली होने की दुहाई दे रही है और जनता पर तरह-तरह के टैक्स लगाने की तैयारी कर रही है। वहीं पंजाब विधानसभा के विधायकों के वेतन, भत्तों तथा अन्य सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की तैयारी की जा रही। सभी पार्टियाँ आपस में चाहे जितना भी लड़ें-झगड़ें, लेकिन इस मुद्दे पर सब एक हैं। 11 जुलाई को जब पंजाब विधानसभा में विधायकों के वेतन, भत्ते तथा अन्य सहूलियतों को बढ़ाने का प्रस्ताव रखने वाली रिपोर्ट पेश की गयी तो एक भी पार्टी या विधायक ने विरोध नहीं किया। रिपोर्ट में मुख्यमन्त्री, मन्त्रियों, डिप्टी मन्त्रियों, विरोधी पक्ष की नेता, मुख्य संसदीय सचिवों, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर के वेतनों और भत्तों में भी बढ़ोत्तरी करने की सिफ़ारिश की गई है।

बिगुल पुस्तिका – 13 : चोर, भ्रष्ट और विलासी नेताशाही

अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियों और पूँजीवादी अख़बारों की कुछ रिपोर्टों, सूचना के अधिकार के तहत विभिन्न सरकारी महक़मों से हासिल की गयी जानकारियों और आर्थिक-राजनीतिक मामलों के बुर्जुआ विशेषज्ञों की पुस्तकों या लेखों से लिये गये थोड़े से चुनिन्दा तथ्यों और आँकड़ों की रोशनी में भारतीय जनतन्त्र की कुरूप, अश्लील और बर्बर असलियत को पहचानने की एक कोशिश।

पंजाब में चुनावी दंगल की तैयारियाँ शुरू : मेहनतकश जनता को इस नौटंकी से अलग क्रान्तिकारी विकल्प खड़ा करने के बारे में सोचना होगा!

पंजाब की चुनावी राजनीति मुख्यतः कांग्रेस तथा अकाली दल (बादल) के इर्द–गिर्द ही घूमती है। बाकी छोटी–मोटी पार्टियों को इन्हीं में से किसी न किसी की पूँछ पकड़नी पड़ती है।

यही हाल पंजाब की मेहनतकश जनता का है। कोई सही क्रान्तिकारी विकल्प न होने के चलते उसे इन्हीं दो पार्टियों में से किसी एक को चुनना होता है, जो पाँच साल तक जम कर डण्डा चलाती हैं। इस बार भी चुनावी दंगल में उतरने वाली पार्टियों में से भले कोई भी पार्टी चण्डीगढ़ के तख़्त पर विराजमान हो, जनता का कोई भला नहीं होने जा रहा, बल्कि आने वाले दिनों में मेहनतकश जनता पर और अधिक कहर बरपा होगा। मेहनतकशों को मिलने वाली मामूली सुविधाओं में और अधिक कटौती होगी। वैश्वीकरण–निजीकरण–उदारीकरण का रथ और बेरहमी से मेहनतकशों को रौंदेगा। मज़दूरों तथा अन्य मेहनतकश लोगों को सड़कों पर आना होगा। चुनावी राजनीति से अलग अपने क्रान्तिकारी संगठन खड़े करने होंगे तथा अपनी संगठित ताकत के बल पर अपने हक हासिल करने होंगे।

देश में चल रही भूमण्डलीकरण की काली आंधी के बीच चुनावी मौसम में सरकार खुशनुमा बयार बहाने में जुटी

देश की अर्थव्यवस्था की सेहत भली–चंगी दिखाने वाले जिन चमत्कारी आंकड़ों की गवाही देकर जनता के भीतर खुशनुमा अहसास उड़ेले जा रहे हैं उसके फर्जीवाड़े को उजागर करने के लिए पूंजीवादी अर्थशास्त्र की बारीकियों में जाने की जरूरत नहीं। कोई भी दुरुस्त दिमाग वाला औसत समझ का आदमी आसानी से यह महसूस कर सकता है कि देश मे भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और खुलेपन के नाम पर कोई खुशनुमा बयार नहीं वरन आम जनता की ज़िन्दगी को तबाह–बर्बाद करने वाली काली आंधी चल रही है।