कोरोना काल में केजरीवाल की व्यापारियों, मालिकों की सेवा और मज़दूरों को सहायता की नौटंकी!
– बिगुल संवाददाता
कोरोना महामारी के आने से दुनिया के सभी देशों में मेहनतकश लोगों की ज़िन्दगी की समस्याएँ और बढ़ गयी हैं, लेकिन हमारे देश में कोरोना महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक आम मेहनतकश लोगों को जिन परेशानियों और दिक़्क़तों का सामना करना पड़ा, उसका बड़ा कारण यह रहा कि मोदी सरकार ने बिना किसी योजना के, बिना किसी तैयारी के लॉकडाउन घोषित करके थोप दिया। जैसे देश स्तर पर मोदी सरकार कोरोना की शुरुआत से लेकर अब तक इस महामारी से लड़ने के लिए कोई ठोस कार्यक्रम न बनाकर गत्ते की तलवार भांजते हुए लोगों से कुछ नौटंकियों जैसे थाली-कटोरी बजाना, दीये जलाना करवाती रही वैसे ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी राजधानी दिल्ली में कोरोना की रोकथाम के लिए बिना किसी ठोस योजना के हवा-हवाई दावे करते हुए कहते रहे कि ‘केजरीवाल सरकार कोरोना से चार क़दम आगे चल रही है’। जबकि असलियत यह है कि दिल्ली में कोरोना केस तेज़ी से बढ़ते ही रहे, यह रिपोर्ट लिखे जाने तक दिल्ली में अभी भी लगभग 2 लाख केस हैं और 4,599 लोगों की मौत हो चुकी है और कुछ समय तक कम होने के बाद फिर तेज़ी से केस बढ़ने लगे हैं।
इसके साथ ही इस महामारी के चलते दिल्ली की मज़दूर-मेहनतकश आबादी को रोज़ी-रोटी के संकट सहित जिन दिक़्क़तों का सामना करना पड़ रहा है उसमें केजरीवाल सरकार द्वारा मज़दूरों को सहायता देना नाम मात्र रहा पर इसका विज्ञापन और दिखावा ज़्यादा होता रहा। पूरे देश में लॉकडाउन लगने के बाद राजधानी दिल्ली में हर तरह के काम-धन्धे बन्द हो गये तो यहाँ के मज़दूरों के सामने एक समय रोज़ी-रोटी का संकट बहुत बढ़ गया था। दिल्ली में किराये पर ही रहने वाली प्रवासी मज़दूर आबादी के लिए केजरीवाल सरकार द्वारा कमरों का किराया मालिकों द्वारा छोड़ देने का कोई आदेश या सरकार द्वारा मदद देने जैसी कोई बात ही नहीं की गयी। कहने के लिए मज़दूरों के लिए और ज़रूरतमन्द लोगों के लिए दिल्ली सरकार की ओर से ‘मुफ़्त भोजन’ की व्यवस्था थी पर असल में ये व्यवस्था बहुत ही ख़राब और नाकाफ़ी थी, घण्टों लाइन में लगने के बाद ही खाना मिल पाता था। दिल्ली सरकार ने दिखाने के लिए ऑनलाइन मिलने वाले ई-कूपन से मुफ़्त राशन की व्यवस्था भी की थी पर योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन जो फ़ॉर्म भरना था, उसमें किसी दुकान से फ़ॉर्म भरवाने में 200-250 रुपये लग रहे थे। यहाँ के ख़राब हालातों से मजबूर होकर इन प्रवासी मज़दूरों को वापस अपने गाँव जाने में दिल्ली सरकार से कोई मदद नहीं मिली। केजरीवाल हवाई घोषणा करते रहे हैं कि प्रवासी मज़दूरों का ट्रेन का किराया दिल्ली सरकार देगी पर वास्तविकता में ऐसा नहीं हुआ। असल में दिल्ली के व्यापारियों व फ़ैक्ट्री मालिकों की सच्ची सेवा में लगी केजरीवाल सरकार चाहती ही नहीं थी कि प्रवासी मज़दूर दिल्ली छोड़ गाँव जायें, ताकि हालात ठीक होते ही जब व्यापार शुरू हो, फ़ैक्टरियाँ खुलें तो सस्ते मज़दूर आसानी से मिल जायें। इस कोरोना महामारी में ‘आपदा को अवसर में बदलने’ की बात करते हुए एक तरफ़ जहाँ देश स्तर पर मोदी सरकार मज़दूर विरोधी नीतियों को खुलेआम लागू करने और टाटा-बिड़ला-अम्बानी सरीखे पूँजीपतियों की सेवा में लगी रही वहीं दूसरी तरफ़ दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनकी सरकार भी दिल्ली के व्यापारियों और फ़ैक्ट्री मालिकों की “समस्याओं” को लेकर बड़ी चिन्तित रहती है। अभी हाल ही में दिल्ली की अर्थव्यवस्था में सुधार के नाम पर केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के फ़ैक्ट्री मालिकों के लिए बकाया राशि में 50 फ़ीसदी तक छूट देने की वन टाइम एमनेस्टी स्कीम, आम माफ़ी योजना लागू की है जिसके तहत फ़ैक्ट्री मालिकों के लिए ग्राउण्ड रेण्ट, किराया, लीज़ रेण्ट समेत कई तरह के चार्ज भुगतान में देरी होने पर पेनल्टी पर लगने वाली ब्याज दरों को काफ़ी कम कर दिया गया है। पर केजरीवाल सरकार को इतना ही काफ़ी नहीं लगा तो बीते 23 अगस्त, 2020 को केजरीवाल ने दिल्ली के व्यापारियों और फ़ैक्ट्री मालिकों से डिजिटल संवाद किया, उनकी समस्या सुनी और उसके समाधान पर बातें की।
वहीं दूसरी तरफ़ कोरोना महामारी के इस समय में दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में लगभग 20 सालों से कार्यरत सभी अस्थायी पैरामेडिकल व नर्सिंग कर्मचारियों को काम से निकालने का आदेश जारी किया गया है। दिल्ली के फ़ैक्ट्री मालिकों और व्यापारियों की सेवा में जी-जान से जुटी केजरीवाल सरकार को दिल्ली के मेहनतकशों-मज़दूरों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है। दिल्ली में बवाना, वज़ीरपुर, शाहबाद डेयरी और करावल नगर सहित अधिकतर औद्योगिक इलाक़ों में न्यूनतम मज़दूरी सहित कोई भी श्रम-क़ानून लागू नहीं होता है। दिल्ली की बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी के पास कोई राशन कार्ड नहीं है जिसके चलते उन्हें मुफ़्त राशन नहीं मिल रहा है। कोरोना महामारी के इस दौर में काम-धन्धा मन्दा होने के कारण काम भी नहीं मिल रहा है। पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल को मज़दूरों की समस्याओं की नहीं बल्कि मालिकों की समस्याओं की चिन्ता ज़्यादा है।
पिछले दिनों केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में नौकरी ढूँढ़ने वाले और नौकरी देने वाले को मिलाने की बात करते हुए एक ‘ऑनलाइन रोज़गार बाज़ार’ शुरू किया। इस ‘रोज़गार बाज़ार’ शुरू करने की घोषणा करते समय की गयी प्रेस वार्ता में केजरीवाल ने फ़ैक्ट्री मालिकों-ठेकेदारों को और बेरोज़गार नौजवानों-मज़दूरों को एक-दूसरे से सम्पर्क कराने की इस योजना का लम्बा-चौड़ा बखान तो किया पर पूरी इस पूरी वार्ता में श्रम-क़ानूनों को सख़्ती से लागू करने पर कोई बात ही नहीं की। असल में इस सारी योजना की कवायद यह थी कि दिल्ली के फ़ैक्ट्री मालिकों, ठेकेदारों और व्यापारियों को इस ‘ऑनलाइन रोज़गार बाज़ार’ के माध्यम से आसानी से कम वेतन पर नौजवान और मज़दूर मिल जायें। दिल्ली में लॉकडाउन हटाने के बावजूद मज़दूरों को जल्दी काम नहीं मिल रहा है और न ही सरकार की ओर से मज़दूरों को अब कोई सुविधा ही मिल रही है और न ही रोज़गार देने की कोई ठोस योजना है। हालाँकि यहाँ के व्यापारियों, मालिकों को लाभ पहुँचाने के लिए कोई न कोई योजना हर हफ़्ते आ ही जाती है। मज़दूर-विरोधी फ़ासीवादी मोदी सरकार को ‘हम मिलकर काम करेंगे जी’ का सन्देश देते हुए केजरीवाल भी दिल्ली के मालिकों-व्यापारियों की सेवा में तत्परता से लगे हुए थे, लगे हुए हैं।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल-सितम्बर 2020
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