Category Archives: बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्‍यायपालिका

मालिकों के मुनाफे की हवस का शिकार – एक और मजदूर

घटना वाले दिन रंजीत तथा तीन अन्य मज़दूरों को सुपरवाइज़र ने ज़बरदस्ती तार के बण्डलों के लोडिंग-अनलोडिंग के काम पर लगा दिया। उन चारों ने क्रेन की हालत देखकर सुपरवाइज़र को पहले ही चेताया था कि क्रेन की हुक व जंज़ीर बुरी तरह घिस चुके हैं जिससे कभी भी कोई अनहोनी घटना घट सकती है इसके बावजूद उन्हें काम करने के लिए मजबूर किया गया। ऐसे में वही हुआ जिसकी आशंका थी। चार टन का तारों का बण्डल रंजीत पर आ गिरा जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गयी। रंजीत की मौत कोई हादसा नहीं एक ठण्डी हत्या है।

कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के लिए सजती दिल्‍ली में – उजड़ती गरीबों की बस्तियां

पिछले एक दिसम्बर को बादली रेलवे स्टेशन से सटी बस्ती, सूरज पार्क की लगभग एक हज़ार झुग्गियों को दिल्ली नगर निगम ने ढहा दिया। सैकड़ों परिवार एक झटके में उजड़ गये और दर-दर की ठोकरें खाने के लिए सड़कों पर ढकेल दिये गये। दरअसल 2010 में होने वाले राष्ट्रमण्डल (कॉमनवेल्थ) खेलों की तैयारी के लिए दिल्ली के जिस बदनुमा चेहरे को चमकाने की मुहिम चलायी जा रही है उसकी असलियत खोलने का काम ये झुग्गियाँ कर रही थीं। दिल्ली का चेहरा चमकाने का यह काम भी इन्हीं और ऐसी ही दूसरी झुग्गियों में बसनेवालों के श्रम की बदौलत हो रहा है, लेकिन उनके लिए दिल्ली में जगह नहीं है।

लिब्रहान रिपोर्ट – जिसके तवे पर सबकी रोटी सिंक रही हैं

संघ परिवार द्वारा जुटायी गयी उन्मादी भीड़ और हिन्दू फ़ासिस्ट संगठनों के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं द्वारा 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्‍या में बाबरी मस्जिद गिराये जाने की जाँच के लिए गठित जस्टिस लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट 17 वर्ष बाद जिस तरह से पेश की गयी, उससे सभी पार्टियों के हित सध रहे हैं। एक ऐतिहासिक मस्जिद को गिराने और पूरे देश को विभाजन के बाद के सबसे भीषण दंगों की आग में धकेलने वाले संघ परिवार और उसके नेताओं के राजनीतिक करियर पर इस रिपोर्ट से कोई ऑंच नहीं आने वाली है। इस साज़िश में शामिल और इसे शह देने वाले कांग्रेसी प्रधानमंत्री नरसिंह राव और पूजा के लिए मस्जिद का ताला खुलवाने से लेकर शिलान्यास करवाने तक कदम-कदम पर भाजपा का रास्ता आसान बनाने वाली कांग्रेस को भी इससे कोई नुकसान नहीं होने वाला। सच तो यह है कि कांग्रेस और भाजपा से लेकर मुलायम सिंह यादव तक सभी इससे अपने-अपने हित साधने में लगे हुए हैं।

2000 मज़दूरों ने विशाल चेतावनी रैली निकाली

यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी तादाद में एकजुट होकर करावलनगर के मज़दूरों ने हड़ताल की है। इसके पहले भी कुछ छिटपुट हड़तालें हुई थीं, लेकिन तब बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के मज़दूर एकजुट नहीं हो पाते थे और हड़तालें सफल नहीं हो पाती थीं। बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में यह पहला मौका है जब सभी मज़दूर जाति, गोत्र और क्षेत्र के बँटवारों को भुलाकर अपने वर्ग हित को लेकर एकजुट हुए हैं।

बादाम मज़दूरों के नेता रिहा

करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजकों पर हमला, पुलिस ने गुण्‍डो की जगह संयोजकों को ही गिरफ्तार किया

पुलिस की इस अंधेरगर्दी से पूरे क्षेत्र के मज़दूरों में गुस्‍से की लहर दौड़ गयी। इस पूरे इलाके में क़रीब 25,000 मज़दूर बादाम तोड़ने का काम करते हैं। इन मज़दूरों के ठेकेदार बेहद निरंकुश हैं और क़रीब-क़रीब मुफ्त में मज़दूरों से काम करवाने के आदि हैं। बादाम मज़दूर यूनियन ने गुण्‍डों द्वारा मारपीट और पुलिस की मालिक परस्‍त भूमिका की तीखे शब्‍दों में निंदा की है। यूनियन ने बताया कि कल एक प्रतिनिधिमण्‍डल पुलिस के उच्‍चाधिकारियों से मिलेगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेगा। युनियन का कहना हैकि यदि उन्‍हें न्‍याय नहीं मिला तो वे आन्‍दोलनात्‍मक रुख अपनाने के लिए तैयार रहेंगे।

देशभर से मज़दूर आन्दोलन के साथ खड़े हुए मज़दूर संगठन, नागरिक अधिकार कर्मी, बुद्धिजीवी और छात्र-नौजवान संगठन

गोरखपुर मज़दूर आन्दोलन के समर्थन और इसके दमन के विरोध में देशभर में जितने बड़े पैमाने पर मज़दूर संगठन,नागरिक अधिकार कर्मी, बुद्धिजीवी और छात्र-नौजवान संगठन आगे आये उससे सत्ताधारियों को अच्छी तरह समझ आ गया होगा कि ज़ोरो- ज़ुल्म के ख़िलाफ उठने वाले आवाज़ों की इस मुल्क में कमी नहीं है।

थैली की ताकत से सच्चाई को ढँकने की नाकाम कोशिश

एक बार फिर, खिसियानी बिल्ली उछल-उछलकर खम्भा नोच रही है। तथाकथित ‘उद्योग बचाओ समिति’ के स्वयंभू संयोजक पवन बथवाल ने थैली के ज़ोर से हमारे खिलाफ एक नया प्रचार-युद्ध छेड़ दिया है – झूठ-फरेब, अफवाहबाज़ी, और कुत्सा-प्रचार की नयी गालबजाऊ मुहिम शुरू हुई है। इसकी शुरुआत स्थानीय अख़बारों में छपे एक विज्ञापन से हुई है, जिसमें हमारे ऊपर कुछ नयी और कुछ पुरानी, तरह-तरह की तोहमतें लगाई गयी हैं। इनमें से कुछ घिनौने आरोपों के लिए हम पवन बथवाल को अदालत में भी घसीट सकते हैं, लेकिन उसके पहले हम इस फरेबी प्रचार की असलियत का खुलासा अवाम की अदालत में करना चाहते हैं।

लेनिन – बुर्जुआ जनवाद : संकीर्ण, पाखण्डपूर्ण, जाली और झूठा; अमीरों के लिए जनवाद और गरीबों के लिए झाँसा

बुर्जुआ जनवाद, जो सर्वहारा वर्ग को शिक्षित-दीक्षित करने और उसे संघर्ष के लिए प्रशिक्षित करने के वास्ते मूल्यवान है, सदैव संकीर्ण, पाखण्डपूर्ण, जाली और झूठा होता है, वह सदा अमीरों के लिए जनवाद और गरीबों के लिए झाँसा होता है।

एक युद्ध जनता के विरुद्ध : पूरे देश में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) कानून लागू करने की तैयारी

नवउदारवादी आर्थिक नीतियाँ व्यापक मजदूर आबादी को उनके रहे-सहे अधिकारों से भी वंचित करके जिस तरह निचोड़ रही हैं, महँगाई और बेरोज़गारी जिस तरह से आम लोगों का जीना दूभर कर रही है, धनी-ग़रीब की खाई जितने विकराल एवं कुरूप शक्ल में बढ़ रही है और लोकतान्त्रिक दायरे में प्रतिरोध का स्पेस जिस तरह सिकुड़ता जा रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि पूरा भारतीय समाज एक ज्वालामुखी के दहाने की ओर सरकता जा रहा है। शासक वर्ग इस स्थिति से चिन्तित और भयभीत है। उसके सामने अन्तत: एक ही विकल्प बचेगा – नग्न-निरंकुश दमनतन्त्र का विकल्प। और वह इस तैयारी में भी लगा है। उसकी समस्या यह है कि देश के एक छोटे-से हिस्से में तो जनता के विरुद्ध ख़ूनी युद्ध चलाया जा सकता है, लेकिन पूरे देश की बहुसंख्यक मेहनतकश आबादी जब सड़कों पर होगी तो उसके विरुद्ध सेना उतारना आसान विकल्प नहीं होगा। यह भविष्य दूर हो सकता है, लेकिन उसकी कल्पना से भी शासक वर्ग काँप उठता है।