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बिजली कनेक्शन की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए ग्रेटर नोएडा में महापंचायत

लोगों की एकजुटता ने स्थानीय से लेकर उत्तर-प्रदेश सरकार तक में खलबली मची हुई है। लोगों को संगठित और एकजुट होता देखकर तुरन्त बिजली विभाग द्वारा सभी कॉलोनियों का ड्रोन द्वारा सर्वे शुरू कर दिया गया है। सरकार द्वारा इस क्षेत्र के लिए स्पेशल मीटिंगें बुलायी जा रही है। लोगों के हर ट्वीट पर सरकार का जवाब आ रहा है। ख़बर तो ये भी है कि उत्तर प्रदेश के शहरी विकास और अतिरिक्त ऊर्जा विभाग मन्त्री ए के शर्मा ने ग्रेटर नोएडा की बिजली की समस्या के लिए खास बैठक तक बुलायी है।

नोएडा-ग्रेटर नोएडा में अँधेरे में रहने को मजबूर लाखों मेहनतकश

नोएडा की भयंकर गर्मी में भी ये लोग बिना बिजली के अँधेरे में रहते हैं। देश में इस बार जैसी गर्मी पड़ी वह तो सबको पता ही है। ऐसी गर्मी में दिल्ली-एनसीआर के लोगों के दिमाग में एक सुकून होता है कि रात जब घर जायेंगे तो कम से कम पंखे के नीचे चैन की नींद लेंगे। पर नोएडा-ग्रेटर नोएडा के इन लाखों लोगों को यह भी नसीब नहीं। इतना ही नहीं, बिजली नहीं होने पर पानी की भी एक भयंकर समस्या रहती है। लोगों को मजबूरी में रोज़ के इस्तेमाल के लिये भी पानी कई बार ख़रीद कर लेना पड़ता है। यही कारण है कि कई बार भयंकर गर्मी से लोगों की जान तक चली जाती है।

नोएडा के निर्माण की दास्तान : चमचमाती आलीशान इमारतों के पीछे छिपी मेहनतकशों की अँधेरी दुनिया

दिल्ली से जब हम नोएडा में प्रवेश करते हैं तो गगनचुम्बी इमारतें, बड़े-बड़े आलीशान मॉल, मार्केट, चमचमाती सड़कें, एक्सप्रेस-वे आदि को देखकर लगता है तेज़ी से विकसित हो रहा नोएडा-ग्रेटर नोएडा विकास की एक नयी इबारत लिख रहा है। जब आप नोएडा-ग्रेटर नोएडा के चमकदार इलाक़ों से होकर गुज़रते हैं तो दिल्ली में बड़े-बड़े होर्डिंगों के माध्यम से उत्तर प्रदेश के विकास की जो तस्वीर पेश करने की कोशिश फ़ासिस्ट योगी सरकार कर रही है वह सच लगने लगती है। पर जैसे-जैसे आप राजधानी से सटी इस औद्योगिक नगरी के अन्दर घुसते जायेंगे, इस चमक के पीछे का अँधेरा नज़र आने लगेगा।

कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के लिए सजती दिल्‍ली में – उजड़ती गरीबों की बस्तियां

पिछले एक दिसम्बर को बादली रेलवे स्टेशन से सटी बस्ती, सूरज पार्क की लगभग एक हज़ार झुग्गियों को दिल्ली नगर निगम ने ढहा दिया। सैकड़ों परिवार एक झटके में उजड़ गये और दर-दर की ठोकरें खाने के लिए सड़कों पर ढकेल दिये गये। दरअसल 2010 में होने वाले राष्ट्रमण्डल (कॉमनवेल्थ) खेलों की तैयारी के लिए दिल्ली के जिस बदनुमा चेहरे को चमकाने की मुहिम चलायी जा रही है उसकी असलियत खोलने का काम ये झुग्गियाँ कर रही थीं। दिल्ली का चेहरा चमकाने का यह काम भी इन्हीं और ऐसी ही दूसरी झुग्गियों में बसनेवालों के श्रम की बदौलत हो रहा है, लेकिन उनके लिए दिल्ली में जगह नहीं है।

मज़दूरों पर मन्दी की मार: छँटनी, बेरोज़गारी का तेज़ होता सिलसिला

पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपति वर्ग मुनाफ़े की अन्धी हवस में जिस आर्थिक संकट को पैदा करता है वह इस समय विश्‍वव्यापी आर्थिक मन्दी के रूप में समूचे संसार को अपने शिकंजे में जकड़ती जा रही है। मन्दी पूँजीवादी व्यवस्था में पहले से ही तबाह-बर्बाद मेहनतकश के जीवन को और अधिक नारकीय तथा असुरक्षित बनाती जा रही है। इस मन्दी ने भी यह दिखा दिया है कि पूँजीवादी जनतन्त्र का असली चरित्र क्या है? पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी यानी ‘सरकार’ पूँजीपतियों के लिए कितनी परेशान है यह इसी बात से जाना जा सकता है कि सरकार पूँजीवादी प्रतिष्‍ठानों को बचाने के लिए आम जनता से टैक्स के रूप में उगाहे गये धन को राहत पैकेज के रूप में देकर एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है। जबकि मेहनतकशों का जीवन मन्दी के कारण बढ़ गये संकट के पहाड़ के बोझ से दबा जा रहा है। परन्तु सरकार को इसकी ज़रा भी चिन्ता नहीं है। दिल्ली के कुछ औद्योगिक क्षेत्रों के कुछ कारख़ानों की बानगी से भी पता चल जायेगा कि मन्दी ने मज़दूरों के जीवन को कितना कठिन बना दिया है।