अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन

मज़दूरों ने मई दिवस के शहीदों को याद किया और संघर्षों को तेज़ करने का संकल्प लिया

 बिगुल संवाददाता

लुधियाना
अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के महान दिन पर ईडब्ल्यूएस कालोनी (ताजपुर रोड), लुधियाना में मज़दूर संगठनों द्वारा मज़दूर दिवस सम्मेलन का आयोजन किया गया। सैकड़ों मज़दूरों ने मई दिवस के मज़दूर शहीदों – अल्बर्ट पार्सन्स, अगस्त स्पाईस, एडॉल्फ़ फि़शर, जाॅर्ज एंजिल, और लुईस लिंग को भावभीनी श्रद्धांजलि भेंट की और अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया। ‘मई दिवस के शहीदों को लाल सलाम’, ‘मज़दूर दिवस के शहीदों का पैग़ाम, जारी रखना है संग्राम’, ‘इंक़लाब जि़न्दाबाद’, आदि गगनभेदी नारों के साथ मज़दूर वर्ग का क्रान्तिकारी लाल झण्डा फहराया गया। इसके बाद मई दिवस के शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच ‘दस्तक’ की ओर से क्रान्तिकारी गीत पेश किये गये। पूँजीपति वर्ग द्वारा मज़दूरों की लूट के बारे में नाटक ‘अब हम नहीं सहेंगे’ पेश किया गया। सम्मेलन को टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के अध्यक्ष लखविन्दर, कारख़ाना मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष राजविन्दर, स्त्री मज़दूर संगठन (लुधियाना ईकाई) की कल्पना, नौजवान भारत सभा (लुधियाना) की संयोजक रविन्दर और पेंडू मज़दूर यूनियन (मशाल) के नेता सुखदेव भूँदड़ी ने सम्बोधित किया।
वक्ताओं ने कहा कि पूरी दुनिया में भूख-प्यास, लूट, दमन, जंग, क़त्लेआम, धर्म-नस्ल-देश-जाति-क्षेत्र के नाम पर नफ़रत आदि के सिवाय इस पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था से और कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि हम इस गली-सड़ी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए पुरज़ोर ढंग से लोगों को जगाने और संगठित करने की कोशिशों में जुट जायें।
पूँजीपति वर्ग मज़दूर वर्ग के क्रान्तिकारी इतिहास को दबाने की कोशिशें हमेशा से करता आया है। अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस की विरासत से मज़दूरों की बड़ी आबादी अपरिचित है। मज़दूरों को क्रान्तिकारी विरासत से परिचित कराने की ज़रूरत को समझते हुए संगठनों द्वारा लुधियाना में मई दिवस के अवसर पर तीन सप्ताह तक प्रचार अभियान चलाया गया था। इस दौरान बड़े स्तर पर पर्चा बाँटा गया। पोस्टर लगाये गये। नुक्कड़ सभाएँ, कारख़ाना गेटों पर मीटिंगें, घर-घर प्रचार आदि के लिए मज़दूरों तक मई दिवस का सन्देश पहुँचाया गया।
दिल्ली
मई दिवस के अवसर पर दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन ने वज़ीरपुर फैक्टरी इलाके में रैली निकाली और फैक्टरियों को बंद करवाया। जहाँ भी काम चल रहा था वहां काम बंद करवाके मज़दूरों की छुट्टी करायी गयी। मज़दूरों ने अपनी-अपनी फैक्टरियों से निकल कर रैली में भागीदारी की। इलाके में जगह-जगह नुक्कड़ सभाएं कर मज़दूरों को मई दिवस के स्वर्णिम इतिहास के बारे में बताया गया। उन्हें शिकागों के अमर शहीदों की कुर्बानी के बारे में बताया गया जिसके बाद पूरी दुनियाभर के मज़दूरों ने अपने वर्ग के आधार पर एकजुट होकर काम के घंटे 8 करवाने के कानून को लागू करने के लिए तमाम पूँजीपति वर्ग को मजबूर किया। आज भी अगर मज़दूरों को अपने हक़ हासिल करने है तो उन्हें अपने इस गौरवशाली इतिहास से सबक लेते हुए अपने आप को अपने वर्ग के आधार लामबंद करना होगा। दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन और क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा द्वारा आयोजित इस रैली में मज़दूरों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी की।
वज़ीरपुर में मई दिवस के मौके पर दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन और बिगुल मज़दूर दस्ता की ओर से सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किया गया।
इलाहाबाद
बिगुल मज़दूर दस्ता और दिशा छात्र संगठन की ओर से मई दिवस के अवसर पर इलाहाबाद में संयुक्त रूप से साप्ताहिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस दौरान संयुक्त टोली की ओर से नुक्कड़ों, कार्यालयों में नागरिकों, मेहनतकशों और आम जनमानस के बीच नुक्कड़ नाटक, सभाओं, क्रान्तिकारी गीतों के जरिये मई दिवस की क्रान्तिकारी विरासत को पहुँचाया गया। इस दौरान 26 अप्रैल से 30 अप्रैल तक मई दिवस की याद में सिंचाई विभाग, ए. जी. ऑफिस चौराहा, शिक्षा निदेशालय, राजकीय मुद्रणालय, बी.एस.एन.एल. ऑफिस समेत कई स्थानों पर नुक्कड़ नाटक ‘मशीन’ के ज़रिये औद्योगिक मज़दूरों की अमानवीय जीवन स्थितियों को पेश किया गया। साथ ही यह सन्देश भी दिया गया है कि मेहनतकशों की एकजुटता बड़े-से-बड़े किलों को ढहा सकती है। इस दौरान प्रसेन ने कहा कि भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर ने पुरानी असेम्बली लाइन की जगह एक विखंडित वैश्विक असेम्बली लाइन का निर्माण किया है। जहाँ एक ओर श्रम का अनौपचारिकीकरण हुआ है वहीं दूसरी ओर उत्पादन का भी अनौपचारिकीकरण हुआ है। श्रम के अनौपचारिकीकरण को इसी से समझा जा सकता है कि वर्त्तमान दौर में कुल मज़दूर आबादी का लगभग 93% असंगठित क्षेत्र में काम करता है. बड़े-बड़े कारखानों की जगह छोटे-छोटे कारखानों ने ले ली है। (इसका मतलब यह नहीं है कि बड़े कारखाने एकदम ख़त्म हो गए हैं।) पूँजी, सस्ते श्रम व कच्चे माल की उपलब्धता के मुताबिक़ दुनिया के विभिन्न देशों में आ-जा रही है। मसलन जूते की सोल कहीं बनाती है, अपर कहीं बनता है, असेम्बल कहीं होता है. ऐसे में पहले जहाँ बस्तियों से गेटों की ओर चलो का नारा हुआ करता था, वहीं आज नारा हो गया है – गेटों से बस्तियों की ओर चलो, फिर बड़ी ताक़त के साथ वापस गेटों की ओर लौटो। यानि आज मज़दूर आन्दोलन संगठित करने के लिए इलाका आधारित और पेशा आधारित यूनियनों के निर्माण पर जोर देना होगा।
साथ ही साथ मई दिवस समारोह समिति के बैनर तले विभिन्न प्रगतिशील एवं जनवादी संगठनों की ओर से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के निराला डेलीगेसी सभागार में 21 अप्रैल को छात्र-मज़दूर कन्वेंशन का आयोजन किया गया जिसमें दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने भागीदारी की। 1 मई के दिन इलाहाबाद में सिविल लाइन्स स्थित सुभाष चौराहे पर विभिन्न मज़दूर संगठनों, कर्मचारी संगठनों, प्रगतिशील जनसंगठनों और छात्र संगठनों की आयोजित मई दिवस की केन्द्रीय रैली में दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया। रैली स्थल पर जनचेतना की ओर से देश-दुनिया के प्रगतिशील और क्रान्तिकारी साहित्य की प्रदर्शनी भी लगाई गयी। प्रदर्शनी के दौरान बिगुल पुस्तिकाओं, मज़दूर बिगुल अखबार और मार्क्सवादी साहित्य में लोगों ने रुचि दिखाई।
हरिद्वार
मई दिवस के अवसर पर बिगुल मज़दूर दस्ता द्वारा हरिद्वार के रोशनाबाद के मुख्य सड़क पर व्यापक पर्चा वितरण किया गया और मई दिवस की विरासत पर बात रखी गई। इसके पहले मई दिवस की पूर्व संध्या पर रोशनाबाद की बस्ती में नुक्कड़ सभा और फिल्म शो का कार्यक्रम किया गया जिसमें ‘मॉडर्न टाइम्स’ फिल्म दिखाई गई।
नुक्कड़ सभा में बिगुल मज़दूर दस्ता के अपूर्व ने कहा कि मई दिवस वह दिन है जब पूरी दुनिया का मज़दूर वर्ग पूँजी की अन्धाधुन गुलामी, शोषण-उत्पीड़न के ख़िलाफ अपनी एकता की आवाज़ को बुलन्द करता है। यह वह दिन है जब मज़दूर वर्ग ने ‘ 8 घण्टे काम, 8 घण्टे आराम, 8 घण्टे मनोरंजन’ का नारा दिया और अपने तमाम साथियों की कुर्बानी देकर यह अधिकार हासिल किया।
गोरखपुर
मई दिवस के अवसर पर गोरखपुर के बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र में बिगुल मज़दूर दस्ता और टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन की ओर से सभा का आयोजन किया गया। सभा के दौरान वक्ताओं ने मई दिवस के इतिहास पर विस्तृत बातचीत की। इस दौरान नुक्कड़ नाटक ‘देश को आगे बढ़ाओ’ खेला गया और क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की गयी। बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं ने मज़दूर आन्दोलन में दलालों की भूमिका पर बातचीत करते हुए यूनियन के पुनर्गठन की ज़रूरत पर बल दिया। कार्यक्रम के अंत में फैक्ट्री के इलाकों और मज़दूर बस्तियों से होकर नारे लगाते हुए जुलूस निकाला गया और व्यापक पर्चा वितरण किया गया।

अम्बेडकरनगर
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के मौके पर आज अम्बेडकरनगर के सबितपुर बाज़ार और भरतपुर गाँव के मजदूर बस्ती में बिगुल मजदूर दस्ता और नौजवान भारत सभा द्वारा नुक्कड़ सभाएँ की गई और पर्चे बांटे गए।
मुम्बई
मई दिवस के अवसर पर मानखुर्द मुंबई के विभिन्न इलाकों में कल सभाएं आयोजित की गयी व सघन पर्चा वितरण किया गया। सुबह लेबर चौक पर सभाओं से शुरूआत की गयी व शाम को मुख्य बाजार व इलाके के अन्य भीड़भाड वाले स्थानों पर सभाएं आयो‍जित कर पर्चा वितरण करते हुए मई दिवस की विरासत से मजदूरों को परिचित करवाया गया।
देहरादून
‘दून प्रोग्रेसिव डिस्कशन फोरम’ के द्वारा अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर देहरादून के ‘दून विश्वविद्यालय’ के सीनेट हॉल में एक ‘पैनल डिस्कशन’ छात्रों और मजदूरों के बीच रखा गया, जिसका उद्देश्य रोज़मर्रा के फैक्टरी जीवन के अनुभव को और उसकी समस्याओं को आम छात्रों के साथ साझा करना था। इस डिस्कशन में ‘दिशा छात्र संगठन’ के अपूर्व और ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के साथियों को आमंत्रित किया गया था।
छात्रों के बीच इस कार्यक्रम को रखने के उद्देश्य पर बात करते हुए दून विश्वविद्यालय के प्राध्यापक पी. कुमार मंगलम ने कहा कि भले ही आम छात्रों को यह लगता हो कि मई दिवस केवल शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों का त्योहार है और छात्रों का इससे कोई मतलब नहीं है, लेकिन यह एक बड़ी भूल है। आज शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम में जो भेद बना हुआ है, उसके कारण हमें अपने बारे में एक गलतफहमी हो जाती है कि हम मज़दूर नहीं हैं। लेकिन हम भी कहीं-न-कहीं अपना मानसिक श्रम लगते हैं और हमारा भी शोषण होता है। हम भी उसी शोषण की व्यवस्था के तहत ही आते हैं, जिसमें मज़दूर शामिल हैं।
विमर्श की शुरुआत में बिगुल मज़दूर दस्ता के साथी रामाधार और मोती ने फैक्टरी के हालात, मज़दूरों के रोजमर्रा के काम के दौरान आने वाली समस्याओं तथा मज़दूर आंदोलन में तमाम दलाल और मालिकपरस्त ट्रेड यूनियनों की भूमिका पर विस्तार से बात रखी।
दिशा छात्र संगठन के अपूर्व ने कहा कि आम मजदूरों के हालात सुधारने के संघर्ष की चुनौतियाँ आज बहुत ज़्यादा हैं। देश की 93 प्रतिशत मज़दूर आबादी आज असंगठित है जिनके लिए नगण्य श्रम कानून हैं और वे भी लागू नहीं होते। मज़दूर बस्तियों के हालात भी बहुत ही बुरे हैं जहां बुनियादी नागरिक सुविधाएं तक नहीं हैं। ऐसे में हमें उनके काम करने की परिस्थितियों से लेकर उनकी रिहाइश तक में व्यापक सुधार की मांगों को लेकर नए सिरे से आंदोलन खड़ा करने के लिए चौतरफ़ा पहल लेनी होगी। नई परिस्थितियों का तकाजा है कि मज़दूर आंदोलन में संघर्ष के नए रूप विकसित किए जाएँ।
इस विमर्श में छात्रों की तरफ से बहुत से सवाल भी आए। जैसे — मजदूरों के बीच शिक्षा का प्रसार करने से क्या उनकी दिक्कतें दूर हो जाएंगी, आज मजदूरों का कोई भी आंदोलन सफल क्यों नहीं हो पा रहा है, मजदूरों को संगठित करने की क्या चुनौतियाँ हैं, ठेके के मजदूरों और परमानेंट मजदूरों के बीच क्या फर्क है, आज मज़दूर आंदोलन में केंद्रीय ट्रेड यूनिययों की क्या भूमिका है, छात्र मजदूरों के लिए क्या कर सकते हैं, आदि-आदि…
इन सभी सवालों का विस्तार से जवाब देते हुए अपूर्व ने कहा कि कोई भी क्रांतिकारी परिवर्तन छात्रों की पहलकदमी के बिना संभव नहीं हो सकता। छात्रों को अपनी वर्गीय पक्षधरता के हिसाब से यह तय करना ही होगा कि वे किसके पक्ष में खड़े हैं। छात्रों को मज़दूर मुक्ति और सामाजिक मुक्ति के विज्ञान को समझना होगा और मज़दूर वर्ग को जागृत, शिक्षित और संगठित करने में अपनी भूमिका निभानी होगी।
जो छात्र मेहनतकश तबके के लिए कुछ करना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले समय निकालकर मज़दूर बस्तियों में जाना चाहिए। मजदूरों की रोज़मर्रा की समस्याओं को समझने के साथ ही उन्हें हल करने के लिए उनको संगठित करना होगा तथा इलाकाई और पेशागत आधारों के उनके संगठन बनाने होंगे। छात्रों के लिए यह ज़रूरी है कि वे दुनिया के तमाम मज़दूर संघर्षों और क्रांतियों के इतिहास से परिचित हों और मज़दूर वर्ग को उनकी रोजमर्रा की लड़ाइयों के अतिरिक्त पूंजीवाद विरोधी ऐतिहासिक मिशन से भी परिचित कराएं।
सवाल पूछने वाले छात्रों में सिद्धार्थ, प्रियंका, शायन, कोकिल, अतुल आदि शामिल थे। कार्यक्रम में मई दिवस के इतिहास पर अनुराधा ने अपनी बात रखी। अंत में ‘द मॉडर्न टाइम्स’ फिल्म दिखाने के साथ ही कार्यक्रम का समापन किया गया।

मज़दूर बिगुल, मई 2017


 

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