राहुल सांकृत्यायन पर विचार गोष्ठी
राहुल फ़ाउण्डेशन और नौजवान भारत सभा के संयुक्त तत्वाधान में राहुल सांकृत्यायन के स्मृतिदिवस 14 अप्रैल के अवसर पर पंचायती हॉल, दर्शनलाल चौक, देहरादून में विचार-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में तमाम वक्ताओं ने राहुल सांकृत्यायन के जीवन-दर्शन, कृतित्व, व्यक्तित्व पर विस्तार से बात रखी और आज के दौर में राहुल सांकृत्यायन को याद करने की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि आज पूँजीवादी व्यवस्था चौतरफ़ा संकटों से घिर चुकी है। इस संकट से ध्यान भटकाने के लिए और इस सड़ी हुई व्यवस्था को बचाए रखने के लिए तमाम प्रतिक्रियावादी फासिस्ट ताक़तें जनता को धार्मिक अन्धविश्वास, कूपमण्डूकता, रूढि़यों, पाखण्डों की दिमाग़ी गुलामी की ज़जीरों में बाँध देना चाहती हैं। और एक हद तक वे अपने इस काम में सफल भी हुए हैं। ऐसे में प्रगतिशील क्रान्तिकारी ताक़तों को राहुल सांकृत्यायन की तरह ही वैचारिक सांस्कृतिक आन्दोलनों को जनता के बीच में खड़ा करना पड़ेगा।
साहित्यकार त्रेपन सिंह चौहान ने कहा कि राहुल ने अपनी परम्परा से, अपने सिद्धान्त और व्यवहार की एकता से हम लेखकों, साहित्यकारों को भी प्रभावित किया और हमें अपनी लेखनी के साथ ही जनता के साथ सड़कों पर उतरकर आन्दोलन करने को प्रेरित किया।
डी.एन. तिवारी ने कहा कि राहुल ने भारत के दर्शन की भौतिकवादी धारा से आम जनता का परिचय कराया। उन्होंने तमाम धार्मिक पाखण्डों, मूल्यों पर चोट की। उन्होंने कहा कि भारत के 84 सिद्ध नास्तिक थे। नाथ सम्प्रदाय में बड़ा हिस्सा मुसलमानों का शामिल था, जिनको आज कोई नहीं जानता।
गोष्ठी में गीता गैरोला ने राहुल सांकृत्यायन के जीवन-दर्शन पर बात रखते हुए कहा कि राहुल ने अपने लेखन में पहाड़ की संस्कृति को बहुत ही कलात्मक भाषा में उकेरा।
राजेन्द्र रावत ने राहुल सांकृत्यायन के लेखन पर बात रखते हुए कहा कि राहुल ने भारतीय भौतिकवाद की महत्ता समझी और सरल भाषा में, कहानियों, उपन्यासों, जीवन वृत्त, संस्मरणों के द्वारा जनता के बीच इतिहास और दर्शन की वास्तविक सच्चाई को जनता के सामने लाये।
लोक दस्तक के अश्विनी त्यागी ने कहा कि आज के दौर में जब हर जगह अन्धविश्वास, कुतर्क को बढ़ावा दिया जा रहा है और फासीवादी शक्तियाँ लगातार जनता को बाँटकर पूरे समाज में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की तैयारी कर रही हैं, ऐसे में राहुल सांकृत्यायन को नौजवान पीढ़ी में फिर से स्थापित करना होगा।
नौजवान भारत सभा के अपूर्व ने कहा कि राहुल ने जिस सांस्कृतिक वैचारिक क्रान्ति को आगे बढ़ाया। आज के दौर में फिर से उसी सांस्कृतिक वैचारिक क्रान्ति की ज़रूरत है।
गोष्ठी का संचालन राहुल फ़ाउण्डेशन की कविता कृष्णपल्लवी ने किया और कहा कि राहुल को याद करना सिर्फ़ एक रस्मी कवायद नहीं है, बल्कि आज धार्मिक पाखण्ड, कूपमण्डूकता, अन्धविश्वास, गतिहीनता, अतर्कपरकता को ख़त्म करने के लिए राहुल का लेखन, उनका व्यक्तित्व, उनके सिद्धान्त और व्यवहार की एकता आज हमें प्रेरणा दे रहे हैं। राहुल के योगदानों को कभी भी भुलाया या मिटाया नहीं जा सकता।
गोष्ठी में डॉ. बर्थवाल, अर्जुन सिंह, राजीव कोठारी आदि ने भी अपनी बात रखी। गोष्ठी में मुख्य रूप से विजय भट्ट, गीता गैरोला, अश्विनी त्यागी, आयुषी, त्रेपन सिंह चौहान, डॉ. जितेन्द्र भारती, डी.एन. तिवारी, शमीम अहमद, राजीव कोठारी, समदर्शी बर्थवाल, सौरभ, शुभम पुण्डीर, जयदीप सकलानी आदि उपस्थित रहे।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2017
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