Category Archives: ठेका प्रथा

एनआरएचएम के निविदा कर्मियों का संघर्ष

एनएचएम के संविदाकर्मी पिछले लम्बे समय से अपने अधिकारों के लिए आन्दोलनरत हैं। कर्मचारियों की माँग रही है कि अगर उनको उस काम के लिए वही वेतन दिया जाना चाहिए, जो उस काम को करने वाले नियमित प्रकृति के कर्मचारियों को मिलता है। इसके साथ ही साथ कर्मचारियों को मिलने वाली अन्य सुविधाएँ भी संविदा पर काम करने वाले कर्मचारियों को मिलनी चाहिए। इसी दौरान पिछली 16 मई को उत्तर प्रदेश सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुबन्ध समाप्त होने की बात कहकर 18 लोगों को एक झटके में काम से बाहर कर दिया। 23 मई से प्रदेश-भर में एनएचएम के संविदाकर्मियों ने ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा कर्मचारी संघ’ के बैनर तले अपनी पुरानी माँगों और इन कर्मचारियों के समर्थन में आन्दोलन की शुरुआत करते हुए प्रदेश-भर में कार्य बहिष्कार कर दिया। एनआरएचएम की शुरुआत के बाद से ही उसमें अपनी सेवाएँ दे रहे थे।

हरियाणा के नगर पालिका, नगर निगम और नगर परिषदों के कर्मचारी हड़ताल पर

ज्ञात हो कि केन्द्र की तरह राज्य स्तर पर भी भजपा ने जनता से लोकलुभावन वायदे किये थे। सरकार बनने के चार साल बाद चुनावी घोषणापत्र गपबाजियों से भरे हुए पुलिन्दे प्रतीत हो रहे हैं। अब जबकि हरियाणा में सरकार को बने हुए 4 साल होने को हैं, तो आम जनता का सरकार की नीतियों और कारगुजारियों पर सवाल खड़े करना लाज़िमी है। भाजपा ने कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने, वेतन बढ़ाने, सुविधाएँ देने, हर साल लाखों नये रोज़गार सृजित करने जैसे सैकड़ों वायदे कर्मचारियों से किये थे। किन्तु अब भाजपा के नेता कान में रुई-तेल डालकर सो रहे हैं। किये गये वायदे पूरे करना तो दूर कर्मचारियों के आर्थिक हालात और भी खस्ता करने पर भाजपा सरकार कटिबद्ध दिखायी दे रही है। हर विभाग को धीरे-धीरे ठेकेदारों के हाथों में सौंपा जा रहा है। हरियाणा लोक सेवा चयन आयोग से लेकर तमाम विभागों में घपलों-घोटालों का बोलबाला है। हर जगह की तरह हरियाणा में नगर निगम, नगर पालिका और नगर परिषद के तहत आने वाले सफ़ाई कर्मचारियों के हालात सबसे खस्ता हैं।

उत्तर प्रदेश में शिक्षा और रोज़गार की बदहाली के विरुद्ध तीन जनसंगठनों का राज्यव्यापी अभियान

प्रदेश में सरकारें आती-जाती रही हैं लेकिन आबादी के अनुपात में रोज़गार के अवसर बढ़ने के बजाय कम होते जा रहे हैं। सरकारी नौकरियाँ नाममात्र के लिए निकल रही हैं, नियमित पदों पर ठेके से काम कराये जा रहे हैं और ख़ाली होने वाले पदों को भरा नहीं जा रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को बन्द करने या निजी हाथों में बेचने का सिलसिला जारी है। भारी दबाव में जो भर्तियाँ घोषित भी होती हैं, उन्हें तरह-तरह से वर्षों तक लटकाये रखा जाता है, भर्ती परीक्षाएँ होने के बाद भी पास होने वाले उम्मीदवारों को नियुक्तियाँ नहीं दी जातीं! करोड़ों युवाओं के जीवन का सबसे अच्छा समय भर्तियों के आवेदन करने, कोचिंग व तैयारी करने, परीक्षाएँ और साक्षात्कार देने में चौपट हो जाता है, इनके आर्थिक बोझ से परिवार की कमर टूट जाती है।

हेडगेवार अस्पताल के ठेका सफ़ाई कर्मचारियों के संघर्ष के आगे झुके अस्पताल प्रशासन और दिल्ली सरकार

डीएसजीएचकेयू की संयोजक शिवानी ने बताया कि हमारी मुख्य माँग तो यही है कि दिल्ली सरकार दिल्ली में नियमित प्रकृति के कार्य में ठेका प्रथा समाप्त करने के अपने वायदे को पूरा करे। उन्होंने कहा कि मज़दूरों की एकजुटता के चलते हमें आंशिक जीत तो मिली है पर हमारा संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है; हमारी यूनियन ठेका प्रथा समाप्त करने की माँग को लेकर दिल्ली सरकार के अन्य अस्पताल के ठेका कर्मियों को गोलबन्द करेगी। दिल्ली स्टेट गवर्मेण्ट हॉस्पिटल कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन ने इस जीत के बाद अब दिल्ली के सभी सरकारी अस्पतालों और डिस्पेंसरियों में ठेका प्रथा ख़त्म करवाने की माँग को लेकर सभी कर्मचारियों को एकजुट करने के लिए अभियान शुरू कर दिया है

मुख्यमंत्री केजरीवाल से मिलने गये मेट्रो मज़दूरों पर बरसी पुलिस की लाठी

डीएमआरसी में सभी टॉम ऑपरेटर, हाउसकीपर, सिक्योरिटी गार्ड, एयरपोर्ट लाइन का तकनीकी स्टाफ, ट्रैक ब्वॉय आदि नियमित प्रकृति का कार्य करने के बावजूद ठेके पर रखे जाते हैं। दिल्ली ही नहीं बल्कि भारत की शान मानी जानेवाली दिल्ली मेट्रो इन ठेका कर्मचारियों को अपना कर्मचारी न मानकर ठेका कम्पनियों जेएमडी, ट्रिग, एटूजेड, बेदी एण्ड बेदी, एनसीईएस आदि का कर्मचारी बताती है, जबकि भारत का श्रम कानून स्पष्ट तौर पर यह बताता है कि प्रधान नियोक्‍ता स्वयं डीएमआरसी है। ठेका कम्पनियाँ भर्ती के समय सिक्योरिटी राशि के नाम पर वर्कर्स से 20-30 हजार रुपये वसूलती हैं और ‘रिकॉल’ के नाम पर मनमाने तरीके से काम से निकाल दिया जाता है। ज़्यादातर वर्कर्स को न्यूनतम मज़दूरी, ईएसआई, पीएफ की सुविधाएँ नहीं मिलती हैं। यहाँ श्रम कानूनों का सरेआम उल्लंघन किया जाता है।

माँगपत्रक शिक्षणमाला – 11 स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों से जुड़ी विशेष माँगें

अलग-अलग स्वतन्त्र दिहाड़ी मज़दूरों के लिए न्यूनतम मज़दूरी तय की जाये जो ‘राष्ट्रीय तल-स्तरीय न्यूनतम मज़दूरी’ से ऊपर हो। इनके लिए भी आठ घण्टे के काम का दिन तय हो और उससे ऊपर काम कराने पर दुगनी दर से ओवरटाइम का भुगतान किया जाये। रिक्शेवालों, ठेलेवालों के लिए प्रति किलोमीटर न्यूनतम किराया भाड़ा व ढुलाई दरें तय की जायें तथा जीवन-निर्वाह सूचकांक के अनुसार इनकी प्रतिवर्ष समीक्षा की जाये व पुनर्निर्धारण किया जाये। इसके लिए राज्य सरकारों को आवश्यक श्रम क़ानून बनाने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से दिशा-निर्देश जारी किये जायें। दिहाड़ी मज़दूरों से सम्बन्धित नियमों-क़ानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हर ज़िले में डी.एल.सी. कार्यालय में अलग से पर्याप्त संख्या में निरीक्षक होने चाहिए, जिनकी मदद के लिए निगरानी समितियाँ हों जिनमें दिहाड़ी मज़दूरों के प्रतिनिधि, मज़दूर संगठनों के प्रतिनिधि तथा जनवादी अधिकारों एवं श्रम अधिकारों की हिफाज़त के लिए सक्रिय नागरिक एवं विधिवेत्ता शामिल किये जायें।

मालिक बनने के भ्रम में पिसते मज़दूर

बादली औद्योगिक क्षेत्र एफ 2/86 में अशोक नाम के व्यक्ति की कम्पनी है जिसमें बालों में लगाने वाला तेल बनता है और पैक होता है। पैकिंग का काम मालिक ठेके पर कराता है। इस कम्पनी में काम करने वाले आमोद का कहना है कि ये तो 8 घण्टे के 3000 रु. से भी कम पड़ता है। और उसके बाद दुनियाभर की सरदर्दी ऊपर से कि माल पूरा पैक करके देना है। अब उस काम को पूरा करने के लिए आमोद और उसका भाई प्रमोद और उमेश 12-14 घंटे 4-5 लोगों को साथ लेकर काम करता है। आमोद का कहना है कि कभी काम होता है कभी नहीं। जब काम होता है तब तो ठीक नहीं तो सारे मजदूरों को बैठाकर पैसा देना पड़ता है। जिससे मालिक की कोई सिरदर्दी नहीं है। जितना माल पैक हुआ उस हिसाब से हफ्ते में भुगतान कर देता है। अगर यही माल मालिक को खुद पैक कराना पड़ता तो 8-10 मजदूर रखने पड़ते। उनसे काम कराने के लिए सुपरवाइजर रखना पड़ता और हिसाब-किताब के लिए एक कम्प्यूटर ऑपरेटर रखना पड़ता। मगर मालिक ने ठेके पर काम दे दिया और अपनी सारी ज़ि‍म्मेदारियों से छुट्टी पा ली। अगर ठेकेदार काम पूरा करके नहीं देगा तो मालिक पैसा रोक लेगा। मगर आज हम लोग भी तो इस बात को नहीं सोचते हैं। और ठेके पर काम लेकर मालिक बनने की सोचते हैं। काम तो ज्यादा बढ़ जाता है मगर हमारी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं होता। इसलिए आज की यह जरूरत है कि हम सब मिलकर मालिकों के इस लूट तन्त्र को खत्म कर दें।

राजधानी की चमकती इमारतों के निर्माण में : ठेका मजदूरों का नंगा शोषण

उत्पादन और निर्माण कार्य में ठेकाकरण के चलते, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सी.डब्ल्यू.जी. और अन्य निर्माण कार्य में लगे कितने ही ठेका मजदूर विकास की चमक-दमक के खोखले दिखावे के चलते मौत के शिकार हो चुके हैं। एक अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार (टाइम्स ऑॅफ इण्डिया, 23 अक्टूबर, 2010, ”सी.डब्ल्यू.जी. में मरने वालों की संख्या सरकार को नहीं पता!”) सी.डब्ल्यू.जी. के निर्माण कार्य में लगे 70,500 मजदूरों में से 101 मजदूरों की दुर्घटना से मृत्यु हुई, लेकिन किसी के पास, यहाँ तक कि सरकार के पास भी मजदूरों की मृत्यु से सम्बन्धित ”सही आँकड़े” नहीं हैं।