Category Archives: ठेका प्रथा

दिल्ली मेट्रो में काम कर रहे सफ़ाई कर्मचारियों के बदतर हालात

देश की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में अपनी मेट्रो सेवा के लिए मशहूर है। चमचमाती मेट्रो की चमक के पीछे दरअसल उन श्रमिकों के ख़ून पसीने की मेहनत है जिनका कहीं ज़िक्र तक नहीं किया जाता। केन्द्र राज्य के स्वामित्व वाली दिल्ली मेट्रो में भारत सरकार (50 प्रतिशत) तथा दिल्ली सरकार (50 प्रतिशत) का बराबरी का मालिकाना है। जब भी मेट्रो से होने वाले अकूत मुनाफ़े पर गाल बजाना हो तो दोनों ही सरकारें अपनी दावेदारी पेश करने लगती है। लेकिन वहीं जब यहाँ काम करने वाले श्रमिक अपने हक़ अधिकार की माँग करते हैं तो दोनों ही सरकारें कन्नी काटती रहती हैं।

ऑटो सेक्टर के मज़दूरों के लिए कुछ ज़रूरी सबक़ और भविष्य के लिए एक प्रस्ताव

कोविड काल के बाद शुरू हुए कई आन्दोलनों में से एक आन्दोलन धारूहेडा में शुरू हुआ। 6 से लेकर 22 साल की अवधि से काम कर रहे 105 ठेका मज़दूरों को बीती 28 फ़रवरी 2022 को हुन्दई मोबिस इण्डिया लिमिटेड कम्पनी ने बिना किसी पूर्वसूचना के काम से निकाल दिया। प्रबन्धन के साथ मज़दूरों का संघर्ष पिछले साल से ही चल रहा था। लेकिन प्रबन्धन ने 28 फ़रवरी को सभी पुराने मज़दूरों का ठेका ख़त्म होने का बहाना बनाकर छँटनी कर दी।

मई दिवस 1886 से मई दिवस 2022 : कितने बदले हैं मज़दूरों के हालात?

इस वर्ष पूरी दुनिया में 136वाँ मई दिवस मनाया गया। 1886 में शिकागो के मज़दूरों ने अपने संघर्ष और क़ुर्बानियों से जिस मशाल को ऊँचा उठाया था, उसे मज़दूरों की अगली पीढ़ियों ने अपना ख़ून देकर जलाये रखा और दुनियाभर के मज़दूरों के अथक संघर्षों के दम पर ही 8 घण्टे काम के दिन के क़ानून बने। लेकिन आज की सच्चाई यह है कि 2022 में कई मायनों में मज़दूरों के हालात 1886 से भी बदतर हो गये हैं। मज़दूरों की ज़िन्दगी आज भयावह होती जा रही है। दो वक़्त की रोटी कमाने के लिए 12-12 घण्टे खटना पड़ता है।

देखरेख करने वाले काम (केयर वर्क) का राजनीतिक अर्थशास्त्र

एक ऐसे ऐतिहासिक संघर्ष के समय, जिसमें कि तीन ज़बर्दस्त रैलियाँ निकाली गयीं, हड़ताल स्थल पर आर्ट गैलरियाँ बनायी गयीं, बच्चों के शिशुघर चलाये गये और आँगनवाड़ीकर्मी औरतों की नाटक टोलियाँ बनायी गयीं और आम आदमी पार्टी का पूरे शहर में बहिष्कार किया गया, इस बात पर चर्चा करना बेहद मौजूँ होगा कि आँगनवाड़ीकर्मियों के श्रम का पूँजीपति वर्ग के लिए क्या महत्व है, वह उन्हें कैसे लूटता है, उनका किस प्रकार फ़ायदा उठाता है।

विस्ट्रॉन आईफ़ोन प्लाण्ट हिंसा : अमानवीय हालात के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों का विद्रोह!

देश के औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूरों को मुनाफ़े की चक्की में जिस क़दर पेरा जाता है, उनके सभी गिले-शिकवों को कम्पनी प्रबन्धन से लेकर सरकारी प्रशासन तक जिस तरह से अनसुना करता है, ऐसी स्थिति में अगर लम्बे समय से इकट्ठा हो रहा उनका ग़ुस्सा लावा बनकर हिंसक विद्रोह में फूट पड़ता रहा है, तो इसमें हैरानी कैसी! पिछले 15-20 सालों में ऐसी कितनी ही घटनाएँ घट चुकी हैं जब मज़दूरों का ग़ुस्सा हिंसक विद्रोह में तब्दील हो गया, चाहे वह 2005 की होण्डा गुडगाँव प्लाण्ट की घटना हो, 2008 में ग्रेटर नोएडा में ग्राज़ि‍यानो की घटना हो, मारुति-सुज़ुकी मानेसर प्लाण्ट की 2012 की घटना हो, 2013 की नोएडा की दो दिवसीय प्रतीकात्मक हड़ताल के समय की घटना हो या ऐसी अन्य ढेरों घटनाएँ हों। ऐपल कम्पनी के आईफ़ोन असेम्बल करने वाली कम्पनी विस्ट्रॉन इन्फ़ोकॉम के कोलार प्लाण्ट में पिछले महीने हुआ हिंसक विद्रोह भी इन्हीं घटनाओं की अगली कड़ी है।

होण्डा, शिवम व अन्य कारख़ानों के संघर्ष को पूरी ऑटो पट्टी के साझा संघर्ष में तब्दील करना होगा

मन्दी के नाम पर छँटनी का कहर केवल होण्डा के मज़दूरों पर ही नहीं बल्कि गुड़गाँव और उसके आसपास ऑटोमोबाइल सेक्टर की कंसाई नैरोलक, शिरोकी टेक्निको, मुंजाल शोवा, डेन्सो, मारुति समेत दर्जनों कम्पनियों में लगातार जारी है। दिहाड़ी, पीस रेट, व ठेका मज़दूर तो दूर स्थायी मज़दूर तक अपनी नौकरी नहीं बचा पा रहे हैं। होण्डा, शिवम, कंसाई नैरोलेक आदि कई कम्पनियों के स्थाई श्रमिक निलम्बन, निष्कासन, तबादले से लेकर झूठे केस तक झेल रहे हैं। होण्डा समेत कई कारख़ानों में चल रहे संघर्षों में कैज़ुअल मज़दूरों के समर्थन में उतरे जुझारू मज़दूरों को निलम्बित किया गया है।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा न्यूनतम मज़दूरी में काग़ज़ी बढ़ोत्तरी

दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा न्यूनतम मज़दूरी में काग़ज़ी बढ़ोत्तरी दिल्ली में सत्तासीन केजरीवाल सरकार ने बड़े ज़ोरशोर से एक प्रेस वार्ता के माध्यम से घोषणा की कि अब दिल्ली…

जेएनयू में सफ़ाई मज़दूरों की हड़ताल : एक रिपोर्ट

जेएनयू में सफ़ाई मज़दूरों की हड़ताल : एक रिपोर्ट देश के अन्‍य केन्‍द्रीय संस्‍थानों की तरह जेएनयू में भी ठेका मज़दूरों की बड़ी आबादी काम कर रही है। विश्वविद्यालय में…

महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक के सुरक्षा कर्मियों की एक दिन की हड़ताल

महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक के सुरक्षा कर्मियों की एक दिन की हड़ताल ठेका कम्पनी ईगल हण्टर मार रही कर्मियों का हक़ और मदवि प्रशासन का मौन समर्थन! महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय…

एक तरफ़ बढ़ती बेरोज़गारी है और दूसरी तरफ़ लाखों शहरी नौजवानों को गुज़ारे के लिए दो-दो जगह काम करना पड़ रहा है

दिन के समय वो एक प्रायवेट अस्पताल में अटेंडेंट का काम करता है और शाम को ओला बाइक चलाता है। प्रायवेट अस्पताल में उसको संडे तक की छुट्टी नहीं मिल पाती और अक्सर इमरजेंसी कहके उसे संडे को भी काम करने बुलाया जाता है। उसे अस्पताल से दस हज़ार रुपये की तनख़्वाह मिलती है और रोज़ सवेरे 8 बजे से शाम 5 बजे तक लगातार काम रहता है । शाम को 5 बजे से रात के 10 बजे तक श्रीकांत ओला बाइक चलाता है जिससे उसे दिन के 300 रुपए तक मिल जाते हैं ।