मज़दूर एकता जिन्दाबाद! इंकलाब जिन्दाबाद! पूँजीवाद मुर्दाबाद!
मेहरबान, लुधियाना की ज्ञानचन्द डाईंग (गुलशन हौज़री) में आग में झुलसने से तीन मज़दूरों की दर्दनाक मौतों का जिम्मेदार कौन?
आखिर कब रुकेंगी मुनाफे की खातिर मज़दूरों की हत्याएँ?
प्यारे मज़दूरो और इंसाफपसंद लोगो,
6 मई 2016 की रात 2 बजे तीन मज़दूर राहों रोड, मेहरबान, लुधियाना के बाजड़ा रोड पर स्थित ज्ञानचन्द डाइंग (इसे गुलशन हौज़री भी कहते हैं) में भड़की आग में झुलस कर मारे गए हैं। मारे जाने वाले आशुतोष बण्टी झा की उम्र 28 वर्ष थी और उसकी तीन महीने की एक बच्ची है। सतीश राऊत की उम्र 25 थी और उसके तीन और दो वर्ष के बच्चे हैं। 21 वर्ष के भोला पर अपने परिवार की बड़ी जिम्मेदारी थी। दो-दो लाख रुपए की नाममात्र मदद का भरोसा देकर फैक्ट्री मालिक ने सदमे केे शिकार पीडि़त परिवारों का मुँह बन्द कर दिया है। पुलिस ने मामले को रफा-दफा करने के लिए हर प्रकार से फैक्ट्री मालिक की मदद की है। इतनी भयानक घटना के बाद पुलिस का सही कदम तो यह होता कि मालिक व अन्य जिम्मेदार लोगों की तुरन्त गिरफ्तारी होती और मज़दूरों की मौत के कारणों की जाँच-पड़ताल की जाती। पुलिस ने यह कैसे मान लिया कि यह सिर्फ एक हादसा था? जाँच-पड़ताल के लिए जरूरी था कि मालिक व अन्य लोगों की गिरफ्ता्री होती। लेकिन रक्षक के नाम पर भक्षक बनी भ्रष्ट पुलिस ने तो पूरा ज़ोर मामला रफा-दफा करने में लगा दिया।
कारखाने में और आस-पास के बड़े इलाके में सैंकड़ों की संख्या में पुलिस तैनात कर दी गई। टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन व कारखाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में कारखाना मालिक पर कार्रवाई व पीडि़त परिवारों को उचित मुआवजे की माँग कर रहे मज़दूरों पर लाठीचार्ज हुआ, मज़दूर नेताओं को गिरफ्तार करने की कोशिश हुई। पुलिस, मालिक, ठेकेदारों, मालिकों के अन्य दलालों ने सदमे का शिकार पीडि़त परिवारों पर तरह-तरह से समझौते के लिए दबाव बनाया और 174 की धारा के तहत सारा मामला रफा दफा करवा दिया। मदद के नाम पर महज दो लाख दिए गए। यूनियन ने बीस लाख मुआवजे की माँग की थी। यूनियन के आने से पहले सिर्फ बीस हजार मुआवजे की बात हो रही थी। जब यूनियन के नेतृत्व में धरना लगा, नारेबाजी हुई तो तुरन्त मालिक दो लाख पर आ गया। अगर पीडि़त परिवार डटे रहते तो मज़दूरों की बड़ी संख्या उनके साथ खड़ी होती और इससे कहीं ज्यादा मुआवजा मिल सकता था और मालिक पर कार्रवाई भी करवाई जा सकती थी। इस तरह मालिक के पक्ष में पुलिस-प्रशासन ने बेहद घटिया कारगुजारी पेश की है और तीन मज़दूरों की भयानक मौतों को जेबें भरने के लिए इस्तेमाल किया गया है। किसी भी भाजपाई, कांग्रसी, अकाली य अन्य किसी चुनावी पार्टी के नेताओं ने मज़दूरों के पक्ष में और मालिक-पुलिस के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई। इस हमाम में ये सब नंगे हैं।
अगर मज़दूरों की मौत आग लगने से हुई है और यह एक हादसा है तो भी इसका कसूरवार सीधे-सीधे मालिक ही है। कारखाने में आग लगने से बचाव के कोई साधन नहीं हैं। आग लगने पर बुझाने के कोई साधन नहीं हैं। रात के समय जब मज़दूर काम पर कारखाने के अन्दर होते हैं तो बाहर से ताला लगा दिया जाता है। उस रात भी ताला लगा था। जिस हॉल में आग लगी उससे बाहर निकलने का एक ही रास्ता था जहाँ भयानक लपटें उठ रही थीं। आपातकालीन स्थिति के लिए बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। करोड़ों-अरबों का कारोबार करने वाले, करोड़ों मुनाफे कमाने वाले, हर सुख-सुविधा का लुत्फ उठाने वाले, ऐशपरस्ती पर पानी की तरह पैसा बहाने वाले मालिक के पास क्या मज़दूरों की जिन्दगियाँ बचाने के लिए हादसों से सुरक्षा के इंतजाम का पैसा भी नहीं है? दौलत बेहिसाब है, लेकिन ये मालिक मज़दूरों को इंसान नहीं समझते। इनके लिए मज़दूर कीड़े-मकौड़े हैं, मशीनों के पुर्जें हैं। कारखाना सिर्फ सात तारीख को बन्द रहा है। आठ तारीख, रविवार से कारखाना पहले की तरह चल रहा है। मालिक को क्या फर्क पड़ता है। दो कौड़ी के तीन मज़दूर ही तो मरे हैं!!
ये महज हादसे में हुई मौतें नहीं है बल्कि मुनाफे की खातिर की गईं हत्याएँ हैं।
प्रश्न यह भी उठता है कि श्रम विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई है जिनकी कारखानों में सुरक्षा के इंतजाम करवाने की जिम्मेवारी बनती है। कारखाने के गेट पर कोई बोर्ड तक नहीं लगा है। मज़दूरों को ई.एस.आई., पी.एफ., पहचान पत्र, बोनस, न्यूनतम वेतन जैसे कानूनी हक नहीं मिलते। हादसों व बीमारियों से सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं है। सरकारी श्रम अधिकारी इस बात का जवाब दें कि आखिर ये कारखाना चल कैसे रहा है? आखिर कितनी घूस लेकर मज़दूरों की जिन्दगियों के साथ खिलबाड़ किया गया है? इन श्रम अधिकारियों को जेल में ठूँसा जाना चाहिए।
मज़दूर साथियो, फैसला करना होगा कि हमें आदमखोर कारखानों में, मालिकों की मुनाफे की हवस की बली चढ़ते रहना है या एक सुरक्षित माहौल में काम करना है और जीवन जीना है। हम सभी जानते हैं कि जिन कारणों से 6 मई को हमारे तीन मज़दूर साथी जिन्दा झुलस कर मरे हैं वे कारण सिर्फ ज्ञानचन्द डाईंग/गुलशन हौज़री तक सीमित नहीं हैं। लुधियाना ही नहीं बल्कि देश के तमाम कारखानों में ये हालात बन चुके हैं। कहीं कारखानों की इमारतें गिर रही हैं, कहीं खस्ताहाल ब्वायलर व डाईंग मशीनें फट रही हैं और कहीं कारखानों में आग लगने से मज़दूर जिन्दा झुलस रहें हैं। और सोचने वाली बात है कि कहीं भी मालिक नहीं मरता, हमेशा गरीब मज़दूर मरते हैं। हादसे होने पर सरकार, पुलिस, प्रशासन, श्रम अधिकारियों की मदद से मामले रफा-दफा कर दिए जाते हैं। बहुतेरे मामलों में तो मालिक हादसे का शिकार मज़दूरों को पहचानने से ही इनकार कर देते हैं। मज़दूरों को न तो कोई पहचान पत्र दिया जाता है और न ही पक्का हाजिरी कार्ड दिया जाता है। ई.एस.आई. और ई.पी.एफ. सहूलतों के बारे में तो मज़दूरों के बड़े हिस्से को पता तक नहीं है। इन हालातों में मालिकों के लिए मामला रफा-दफा करना आसान हो जाता है।
मज़दूर साथियो, हमें मिलकर मालिकों के जंगलराज को चुनौती देनी होगी। मज़दूरों को लूटने, दबाने, कुचलने वाले, पूँजीपतियों, सरकार, पुलिस, प्रशासन, श्रम विभाग, राजनीतिक नेताओं, गुण्डों के गुण्डा गठबन्धन को अपनी फौलादी एकता के बल पर ललकारना होगा। हमें कीड़े-मकौड़े और मशीनों के पुर्जे समझने वाले लुटेरों को अपने न्यायपूर्ण संघर्ष से बताना होगा कि हम इंसान हैं। हमें एकजुट संघर्ष के जरिए कारखानों में हादसों से सुरक्षा के इंजताम करवाने होंगे। अपनी तीन मज़दूर साथियों की भयानक मौत से सबक लेकर भी हम एकजुट नहीं हुए तो कब होंगे? अगर अब भी हम नहीं जागे तो कब जागेंगे?
आओ, मज़दूरों की जुझारू, मज़बूत, विशाल एकता बनाने के लिए पूरा जोर लगा दें!
जारीकर्ता संगठन:
टेक्सटाइल–हौज़री कामगार यूनियन
बिगुल मज़दूर दस्ता
कारखाना मज़दूर यूनियन
नौजवान भारत सभा
सम्पर्क करें :
98886 55663, 96461 50249
कार्यालय – मज़दूर पुस्तकालय, 4135, ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी, दयाल पब्लिक स्कूल के सामने, ताजपुर रोड, लुधियाना।
प्रकाशक- लखविन्दर, दिनांक- 07 मार्च 2016
Ludiana Workers death 2016-05-08 by MazdoorBigul
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन