गोयबल्स
कात्यायनी
असत्य के टॉवर की
ऊपरी मंज़िल पर खड़ा
गोयबल्स हँसता है,
बरसता है
ख़ून सना अन्धकार।
गोयबल्स हँसता है,
उसके क़लमनवीसों की क़लमें
काग़ज़ पर सरसराती हैं
धरती पर घिसटती
क़ैदी के हाथ-पाँवों में
बँधी ज़ंजीरों की तरह।
गोयबल्स हँसता है
और चारों ओर से
हिंस्र पशुओं की आवाज़ें
गूँजने लगती हैं।
नात्सी बूटों की धमक की तरह
गूँजती है
गोयबल्स की हँसी।
गोयबल्स हँसता है
तभी ख़तरे के सायरन
बज उठते हैं।
उसकी हँसी रुकने तक
फ़ायर ब्रिगेड की गाड़ियाँ
सड़कों पर बिखरे
ख़ून के धब्बों को
धोना शुरू कर चुकी होती हैं।
गोयबल्स हँसता है
और हवा में हरे-हरे नोट
उड़ने लगते हैं,
सत्ता के गलियारों में जाकर
गिरने लगते हैं,
ख़ाकी वर्दीधारी घायल स्त्री-पुरुषों को
घसीटकर गाड़ियों में
भरने लगते हैं।
गोयबल्स हँसता है
और टॉवर के तहख़ाने में
छापाख़ाने की मशीनें
चल पड़ती हैं।
गोयबल्स हँसता है
तब तक,
जब तक प्रतिवाद नहीं होता।
निर्भीक ढंग से
खड़े रहकर,
सिर्फ़ खड़े रहकर
रोकी जा सकती है
यह मनहूस काली हँसी
और जब लोग
आगे बढ़ते हैं,
यह हँसी एक सन्नाटे में
गुम हो जाती है।
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