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(मज़दूर बिगुल के जून 2015 अंक में प्रकाशित लेख। अंक की पीडीएफ फाइल डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें और अलग-अलग लेखों-खबरों आदि को यूनिकोड फॉर्मेट में पढ़ने के लिए उनके शीर्षक पर क्लिक करें)
संपादकीय
“सामाजिक न्याय” के अलमबरदारों का अवसरवादी गँठजोड़ फ़ासीवादी राजनीति का कोई विकल्प नहीं दे सकता
फासीवाद
मोदी सरकार के अगले साढ़े-चार वर्षों के बारे में वैज्ञानिक तथ्य-विश्लेषण आधारित कुछ भविष्यवाणियाँ! / कात्यायनी (ये भविष्यवाणियाँ हमने मोदी सरकार के 6 महीने बीतने के बाद ‘मज़दूर बिगुल’ के दिसम्बर ’14 अंक में प्रकाशित की थीं। इनमें से कितनी सही साबित हो चुकी हैं और कितनी सही साबित होने वाली हैं, इसे बताने के लिए किसी ईनाम की ज़रूरत नहीं है! – सं.)
आन्दोलन : समीक्षा-समाहार
वज़ीरपुर में गरम रोला मज़दूरों की हड़ताल के एक साल बाद – आज की परिस्थिति और आगे का रास्ता / सनी
महान शिक्षकों की कलम से
मार्क्सवादी पार्टी बनाने के लिए लेनिन की योजना और मार्क्सवादी पार्टी का सैद्धान्तिक आधार
बुर्जुआ जनवाद – दमन तंत्र, पुलिस, न्यायपालिका
सलवा जुडूम का नया संस्करण / श्वेता
सावधान, सरकार आपके हर फ़ोन, मैसेज, ईमेल, नेट ब्राउिज़ंग की जासूसी कर रही है! / सत्यम
साम्राज्यवाद / युद्ध / अन्धराष्ट्रवाद
हथियारों और युद्ध सामग्री के उद्योग पर टिकी अमेरिकी अर्थव्यवस्था / कुलदीप
स्वास्थ्य
चिकित्सा में खुली मुनाफ़ाख़ोरी को बढ़ावा, जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ / राजकुमार
इतिहास
इण्डोनेशिया में 10 लाख कम्युनिस्टों के क़त्लेआम के पचास वर्ष / तपिश
दूसरे विश्वयुद्ध के समय हुए सोवियत-जर्मन समझौते के बारे में झूठा प्रोपेगैण्डा / डॉ. अमृतपाल
महान जननायक
एक ऐसे मज़दूर की कहानी जिसने अपने साहस के दम पर पहाड़ को भी झुकने को मजबूर कर दिया / मनन
कारखाना इलाकों से
ओरियंट क्राफ्ट की घटना गुड़गाँव के मज़दूरों में इकट्ठा हो रहे ज़बर्दस्त आक्रोश की एक और बानगी है
मज़दूर बस्तियों से
मुम्बई में 100 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन? / विराट
अमीरज़ादों के लिए स्मार्ट सिटी, मेहनतकशों के लिए गन्दी बस्तियाँ / आनन्द
कला-साहित्य
कविता – एक दिवालिये की रिपोर्ट / समी अल कासिम
पाब्लो नेरूदा की कविता ‘सड़को, चौराहों पर मौत और लाशें’ का एक अंश
मज़दूरों की कलम से
हमें आज़ाद होना है तो मज़दूरों का राज लाना होगा। / किशन, वजीरपुर, दिल्ली
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बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।
मज़दूरों के महान नेता लेनिन