मई दिवस के महान शहीद आगस्ट स्पाइस के दो उद्धरण
“माननीय जज महोदय, आप हमें सज़ा सुना सकते हैं, लेकिन इस दुनिया को जानने दें कि 1886 में इलिनयेस प्रदेश के 8 आदमियों को सज़ा-ए-मौत इसलिए दे दी गयी कि वे उज्ज्वल भविष्य में विश्वास करते थे और आखि़र में अपनी मुक्ति व न्याय की जीत होने में अपना यक़ीन उन्होंने खोया नहीं। आपने समाज में सभ्यता को तबाह करना सिखाया है – ऐसा बैंकपतियों और नागरिक सभा के एजेण्ट व औज़ार ग्रिनेल ने कहा था। इस महाशय को अब सीखना होगा कि सभ्यता क्या होती है? मानव प्रगति के खि़लाफ़ यह दलील बहुत पुरानी है, एकदम गयी-गुज़री दलील है। ग्रीस का इतिहास पढ़िये, रोम का इतिहास पढ़िये, वेनिस का इतिहास पढ़िये, गिर्जा के अन्धकारमय अध्यायों पर नज़र डालिये और विज्ञान के काँटों भरे पथ का अध्ययन करके देखिये। “कोई परिवर्तन नहीं होता है, कुछ बदलता नहीं है। आप सभ्यता और समाज को तबाह करके छोड़ेंगे!” सदा से शासक वर्ग का यही रोना-धोना रहा है। प्रचलित व्यवस्था में वे ऐसे ही आरामदेह अवस्थान में हैं कि वे स्वाभाविक तौर पर ही ज़रा से सामाजिक बदलाव से भी नफ़रत करते हैं, डरते हैं। समाज में जो वे सुविधाएँ भोगते हैं, उन्हें वे सब अपने जीवन की तरह ही प्यारी हैं और हर परिवर्तन इन सुविधाओं को ख़तरे में डाल देता है। लेकिन मानव सभ्यता ऐसी सीढ़ी है जिसके पायदान ऐसे सामाजिक परिवर्तनों के कीर्तिस्तम्भ हैं। शासक वर्ग की इच्छा और शक्ति के खि़लाफ़ खड़े होकर लाये गये इन सब सामाजिक परिवर्तनों के बिना मानव सभ्यता ही नहीं रहती।”
“सच बोलने की सज़ा अगर मौत है तो गर्व के साथ निडर होकर वह महँगी क़ीमत मैं चुका दूँगा। बुलाइये अपने जल्लाद को! सुकरात, ईसा मसीह, जिआदर्नो ब्रुनो, हसऊ, गेलिलियो के वध के ज़रिये जिस सच को सूली चढ़ाया गया वह अभी ज़िन्दा है। ये सब महापुरुष और इन जैसे अनेक लोगों ने हमारे से पहले सच कहने के रास्ते पर चलते हुए मौत को गले लगाकर यह क़ीमत चुकाई है। हम भी उसी रास्ते पर चलने को तैयार हैं!”
मज़दूर बिगुल, मई 2015
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन