भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु के 84वें शहादत दिवस पर नरवाना में लगा शहीद मेला!
23 मार्च नरवाना में शहीद भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को याद करते हुए नौजवान भारत सभा द्वारा शहीद मेले लगाया गया। शहीद मेले में क्रान्तिकारी गीतों, नाटकों व बाल प्रतियोगिता आयोजित की गयी। मेले की शुरुआत विहान सांस्कृतिक टोली ने “रंग दे बंसती चोला” से की। इसके बाद मौजूदा मुद्दों पर भाषण प्रतियोगिता संचालित की गयी। जिसमें नरवाना के विभिन्न स्कूली बच्चों ने हिस्सेदारी की। साथ ही कविता पाठ द्वारा मौजूद समय में महिलाओं पर बढ़ते हमले को भी बयान किया गया।
मंच सचांलन कर रहे उमेद ने बताया शहीद मेले का मकसद है कि आज शहीदों के सही विचारों को जनता तक पहुँचाया जाये। वैसे भी भारत के क्रान्तिकारी आन्दोलन में 23 मार्च 1931 सबसे ऐतिहासिक दिनों में से एक है। इसी दिन बहादुर नौजवान शहीद-ए-आज़म भगतसिंह, सुखदेव व राजगुरु ने फ़ाँसी का फ़न्दा चूमा था। शायद आज देश का कोई कोना ऐसा नहीं है जहाँ भगतसिंह और उनके साथियों की शहादत को याद नहीं किया जाता है। वैसे अग्रेंजी हुक्मरानों से लेकर 47 के बाद सत्ता में बैठे देशी हुक्मरान तक भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों को ख़तरनाक मानते हैं तभी उनके विचारों को दबाने-छिपाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं। सोचो दोस्तो आखिर शहीदों के शहादत के 84 साल बाद भी ये विचार इतने ख़तरनाक क्यों है? भगतसिंह और उनके साथियों का स्पष्ट मानना था कि भारत में हम भारतीय श्रमिकों के शासन से कम कुछ नहीं चाहते। हम गोरी बुराई की जगह काली बुराई को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते। भगतसिंह और उनके साथियों ने उसी समय यह बता दिया था कि पूँजीवाद नेतृत्व में चलने वाला आजादी का संघर्ष किसी न किसी समझौते पर ही खत्म होगा और देश मज़दूर-किसानों और आम मेहनतकश आबादी को असल में कुछ भी हासिल नहीं। 68 साल की आधी-अधूरी आज़ादी के बाद सफ़रनामा हमारे सामने जिसमें जानलेवा महँगाई , भूख से मरते बच्चे, गुलामों की तरह खटते मज़दूर, करोड़ो बेरोज़गार युवा, ग़रीब किसानों की छिनती ज़मीनें, देशी-विदेशी पूँजीपतियों की लूट की की खुल छूट – साफ़ है शहीदों शोषणविहीन, बराबरी और भाईचारे पर आधारित, ख़ुशहाल भारत का सपना पूरा नहीं हो सका। ऐसे में हमें शहीद-ए-आज़म भगतसिंह की ये बात हमेशा याद रखनी चाहिए। वो इंसानों को मार सकते है लेकिन विचारों को नहीं। इसलिए हमें मेहनतकश जनता की सच्ची आज़ादी के लिए शहीदों के विचारों को हर इंसाफ़पसन्द नौजवान तक पहुँचाना होगा।
मेले में दो नुक्कड़ नाटक खेले गये “देश को आगे बढ़ाओ” और ‘राजा का बाजा”। साथ ही तर्कशील सोसइटी द्वारा अंधविश्वास के ख़िलाफ़ एक मैजिक शो भी दिखाया गया। शहीद मेले का समापन एक जूलूस के साथ किया गया जो जो नेहरू पार्क से भगतसिंह चौक तक निकाला गया। इसमें नौजवानों ने गगनभेदी नारे उठाये ‘अमर शहीदों का पैगाम,जारी रखना है संग्राम’ ‘भगतसिंह तुम ज़िन्दा हो हम सबके संकल्पों में’ भगतसिंह की बात सुनो, नई क्रान्ति की राह चलो’। नौजवान भारत सभा के अरविन्द ने बताया की आज शहीदों को याद करने का मकसद सिर्फ़ रस्मअदायगी पूरा करना नहीं बल्कि उनके सपनों को संकल्प में ढालकर लोगों के बीच फि़र से बदलाव की उम्मीद पैदा करना है। इसलिए हम हर उस नौजवान को ललकारते हैं जो चारों ओर हो रहे अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए खड़ा होना चाहता है।
मज़दूर बिगुल, अप्रैल 2015
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