उँगलियाँ कटाकर मालिक की तिजोरी भर रहे हैं आई.ई.डी. के मज़दूर
पिछले 8 वर्षों में क़रीब तीन सौ मज़दूरों की उँगलियाँ  कटीं
सीटू ने फिर किया मज़दूरों के साथ घिनौना विश्वासघात

बिगुल संवाददाता

नोएडा। यहाँ के लालकुँआ इलाके में सैमटेल व इण्टरनेशनल इलेक्ट्रो डिवाइसेज़ लिमिटेड नाम की दो कम्पनियाँ हैं। इनके मालिक कोड़ा बन्धु हैं। सुधीर कोड़ा बड़े भाई का नाम है और वह इण्टरनेशनल इलेक्ट्रो डिवाइसेज़ का मालिक है। सैमटेल कम्प्यूटर के मॉनीटर आदि बनाने का काम करती है और इलेक्ट्रो डिवाइसेज़ उसे पुर्ज़े आपूर्ति करती है। इण्टरनेशनल इलेक्ट्रो डिवाइसेज़ (आई.ई.डी.) और सैमटेल के कारख़ानों के तहत कोड़ा बन्धुओं ने भारी मात्रा में ज़मीन कब्ज़ा रखी है। इन दोनों कारख़ानों के करीब 5 गेट हैं और इनका बाहर से पूरा पैदल चक्कर लगाने में करीब 3 घण्टे लगते हैं। सूत्रों का कहना है कि इन दोनों भाइयों ने प्रशासन में बैठे लोगों को खिला-पिलाकर काफी सरकारी और ग़ैर-सरकारी ज़मीन कब्ज़ा कर रखी है। कोड़ा बन्धु बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आपूर्ति करने का काम करते हैं। कई बार अग्रणी अन्तरराष्ट्रीय कम्पनियों को भी ये मॉनीटर व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बेचते हैं। लेकिन वैश्विक असेम्बली लाइन की इस कड़ी के नीचे मज़दूरों की ज़िन्दगी का भयावह ऍंधेरा है।

अपनी कटी हुई उँगलियाँ दिखाता मज़दूर

अपनी कटी हुई उँगलियाँ दिखाता मज़दूर

आई.ई.डी. के कारख़ाने में मज़दूरों को अकथनीय परिस्थितियों में जान पर खेलकर काम करना पड़ता है। पिछले आठ वर्षों में करीब 300 मज़दूर अपने हाथों की उँगलियाँ कटवा चुके हैं। इस कारख़ाने में एक भारी यन्त्र है जिसका एक वज़नी हिस्सा काम के दौरान बार-बार नीचे आकर गिरता है। यह वही स्थान होता है, जहाँ मज़दूरों को बार-बार अपना हाथ ले जाना होता है। वैसे तो इस यन्त्र में एक सेंसर लगाने का प्रावधान होता है जिसके लगे होने पर यन्त्र तब तक नीचे नहीं गिरता, जत तक कि उसके नीचे किसी का हाथ या कोई अंग हो। जब मज़दूर अपना हाथ हटा लेता है, केवल तभी वह हिस्सा नीचे गिरता है; लेकिन सेंसर के कारण उत्पादन की गति थोड़ी धीमी हो जाती है। वास्तव में, गति धीमी नहीं होती, बल्कि इस मशीन के चलने की सही और जायज़ स्पीड यही है। लेकिन मुनाफे की हवस में पूँजीपति जायज़-नाजायज़ की परवाह ही कहाँ करता है? सुधीर कोड़ा, जो कि आई.ई.डी. का मालिक है, ने मज़दूरों को उत्पादन का ऐसा लक्ष्य दिया जिसे सेंसर के साथ पूरा ही नहीं किया जा सकता है। उसने मज़दूरों से साफ कहा कि अगर इतना प्रोडक्शन नहीं दे सकते तो कहीं और जाकर काम करो। इतना प्रोडक्शन दोगे, तभी तुम्हारे लिए यहाँ काम है। ऐसे में मज़दूरों के सामने और कोई चारा नहीं था। नतीजतन, अधिकांश मशीन ऑपरेटर अपनी मशीनों से सुरक्षा सेंसर हटाने के लिए मजबूर हो गये। यहीं से शुरू हुआ मज़दूरों के साथ दुर्घटनाओं का सिलसिला और उनके अपंग होने की दर्दनाक कहानी।

मालिकान की संवेदनहीनता का शिकार बने कुछ मज़दूर

मालिकान की संवेदनहीनता का शिकार बने कुछ मज़दूर

300 से अधिक मज़दूर हुए अपंग

पिछले आठ वर्षों में हाथ पर मशीन गिरने के कारण करीब 300 मज़दूर अपने हाथ की एक उँगली, कुछ उँगलियाँ और कईयों की तो पूरी हथेली ही इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के भीतर हम एक ऐसे कारख़ाने की बात कर रहे हैं जहाँ 300 मज़दूर अपने हाथ खो देते हैं, कुशल मज़दूर से बेकार बन जाते हैं, और कहीं कोई चर्चा तक नहीं होती। ताज्जुब की बात तो यह है कि इस कारख़ाने में यूनियन होने के बावजूद ऐसा हो रहा है। 2 वर्ष पहले सीटू यहाँ आ चुकी है। लेकिन सीटू ने हमेशा की तरह मज़दूरों से ग़द्दारी करते हुए और मालिकों और प्रबन्धन से यारी दिखलाते हुए मज़दूरों को संघर्ष न करने के लिए प्रेरित किया। वास्तव में, अपंग हो चुके मज़दूरों को मालिक अक्सर एक कुशल मशीनमैन से हेल्पर बना देता था और उससे भी काम निकलवा लेता था। इसमें उसे कोई नुकसान नहीं था। इन मज़दूरों की तरफ से सीटू ने कभी मुआवज़े तक की माँग नहीं की। उल्टे सीटू के नेतृत्व ने मज़दूरों के दिमाग़ में यह बात पैठा दी कि यह तो मालिक की दरियादिली है कि अपंग हो जाने के बावजूद वह तुम्हें काम से नहीं निकाल रहा है! यहीं चुपचाप काम करो,इससे बेहतर मालिक तुम्हें कहीं नहीं मिलेगा! यहाँ मज़दूरों ने अपने शरीर के अंग मालिक की हवस और उसकी ग़ैर-कानूनी हरकत के कारण खोये हैं, अपनी ग़लती से नहीं। अगर मशीन में सेंसर नहीं लगे होंगे, तो मज़दूर चाहे जितनी भी सावधनी से काम करें, दुर्घटना होगी ही होगी। उन मशीनों का निर्माण ही सेंसर के साथ उत्पादन करने के लिए किया गया है। लेकिन मालिक ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए इन सेंसरों को हटवा देता है और उसकी कीमत चुकाते हैं मज़दूर,अपनी उँगलियाँ-हाथ करवाकर। और सीटू के घिनौने विश्वासघात के कारण और श्रम कानूनों की पर्याप्त जानकारी नहीं होने के कारण मज़दूर भी इस बात को मान बैठे थे कि आज के बेरोज़गारी के ज़माने में हाथ कटने के बावजूद अगर कहीं हेल्पर का काम मिला हुआ है तो शोर मचाने का कोई फायदा नहीं है, चुपचाप यहीं काम करो और जैसे-तैसे रोज़ी-रोटी कमाओ। मज़दूर मुआवज़ा कानून के तहत ऐसे मज़दूरों को भारी मुआवज़ा मिल सकता है। और जब हाथ कटने की ये घटनाएँ इतने बड़े पैमाने पर हुई हैं तब तो सुधीर कोड़ा पर आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए और उसे मुआवज़ा देने के अतिरिक्त, जेल की सलाख़ों के पीछे होना चाहिए। लेकिन सीटू की ग़द्दारी के चलते वह ऐश कर रहा है और अपंग मज़दूर कुशल मशीनमैन से हेल्पर बनकर ग़ुलामी की परिस्थितियों में काम कर रहे हैं।

वास्तव में, ऐसे कई मज़दूरों को थोड़े समय तक हेल्पर रखने के बाद कोई न कोई ग़लती दिखाकर निकाल दिया जाता है। कटे अंग वाले बेहद थोड़े ही मज़दूर हैं, जो यहाँ बच पाते हैं। कुल मिलाकर, देर-सबेर मालिक पहले उनके हाथ कट जाने का पूरा इन्तज़ाम करता है और फिर उन्हें निकाल बाहर करता है।

कारख़ाने में सुरक्षा सम्बन्धी कोई उपकरण नहीं दिया जाता

‘मज़दूर बिगुल’ के संवाददाता को कटी हुई उँगलियाँ दिखाता आई.ई.डी. का मज़दूर

‘मज़दूर बिगुल’ के संवाददाता को कटी हुई उँगलियाँ दिखाता आई.ई.डी. का मज़दूर

सेंसरों को हटाने के अलावा, कारख़ाने में मज़दूरों को कोई सुरक्षा पहनावा या उपकरण भी नहीं दिया जाता है। न तो उन्हें जूते दिये जाते हैं, न दस्ताने, न टोपी और न ही कोई वर्दी। पहले वर्दी दी जाती थी, वह भी उनसे छीन ली गयी। ऐसे में दुर्घटनाओं की सम्भावना और अधिक बढ़ जाती है। यही कारण है कि जिन मामलों में दुर्घटनाओं से बचा सकता था, उनमें भी नहीं बचा जा सका। जब दुर्घटना हो जाती है, उसके बाद भी मज़दूर घण्टों तक कारख़ाने में तड़पते रहते हैं। जितने भी मज़दूरों के हाथ कटे हैं, वे सभी कई घण्टों तक बिना किसी उपचार के कटे अंगों के साथ कारख़ाने के भीतर ही ख़ून से लथ-पथ तड़पते रहे हैं। कई मामलों में अन्त तक कारख़ाना प्रबन्धन की ओर से कोई मदद नहीं की गयी और अन्तत: उन्हें साथी मज़दूर ही उपचार के लिए अस्पताल लेकर गये। जिस प्राइवेट नर्सिंग होम को आई.ई.डी. में घायल मज़दूरों के उपचार का ठेका दिया गया है और जहाँ मज़दूरों का उपचार नि:शुल्क होना चाहिए, वहाँ का प्रबन्धन घायल मज़दूरों के पहुँचने पर कहता है कि तुम्हारे मालिक ने मेरा पैसा नहीं दिया है, जाओ पहले अपने मालिक से बात करो। नतीजतन,मज़दूरों को पहले वहाँ भी काफी देर तक तड़पना पड़ता है। इसके बाद कहीं जाकर मज़दूरों का उपचार हो पाता है। ऐसी स्थितियों में काम करने के लिए मजबूर मज़दूर न सिर्फ अपने हाथ गँवाते हैं, बल्कि दुर्घटना के बाद दर्द के साथ और ख़ून से लथ-पथ घण्टों तक तड़पते रहते हैं।

इसके ऊपर से कारख़ाने में मालिक ने भयंकर आतंक फैला रखा है। तीन-चार साल पहले तक वह स्वयं मज़दूरों को धमकाने और आतंकित करने आया करता था। लेकिन अब उसने यह काम स्वयं करना बन्द कर दिया है और प्रबन्धन के गुण्डों से यह काम करवाता है। ये गुण्डे मज़दूरों को डराने-धमकाने के अतिरिक्त कई बार उन्हें मारने-पीटने का भी काम करते हैं। मज़दूरों के बीच इनके ख़िलाफ भारी रोष है। लेकिन उनके ख़िलाफ कोई भी कार्रवाई करने से मज़दूरों को सीटू का नेतृत्व रोक देता है।

पहले मज़दूरों को अपने नाम व कार्य के विवरण वाले पंचिंग कार्ड और पहचान-पत्र मिलते थे। लेकिन अब उन्हें एक सादा कार्ड मिलता है जिस पर कुछ भी नहीं लिखा होता है। पहले उन्हें वर्दी मिलती थी, वह भी उनसे छीन ली गयी। इस कारख़ाने में करीब 1200 मज़दूर इन्हीं हालात में काम करते हैं।

आई.ई.डी. में मज़दूरों के संघर्ष का इतिहास

आई.ई.डी. के मज़दूरों ने कुछ समय पहले कारख़ाने के भीतर संगठित होने की शुरुआत की। इस समय तक उन्होंने सीटू आदि से कोई सम्पर्क नहीं किया था। मज़दूरों ने कुछ मीटिंगें और सभाएँ कीं। इस प्रक्रिया में उन्होंने अपनी माँगों को रेखांकित किया। इन माँगों में प्रमुख माँग यह थी कि उन्हें सैमटेल के कुशल मज़दूर जितना वेतन, यानी कि इंजीनियरिंग ग्रेड के मज़दूर का वेतन मिले; दूसरी प्रमुख माँग यह थी कि कारख़ाने के भीतर स्थित कैण्टीन में भोजन करना अनिवार्य न हो (ज्ञात हो कि पहले आई.ई.डी. के भीतर स्थित कैण्टीन में ही मज़दूरों को भोजन करना अनिवार्य था और इसके पैसे काट लिये जाते थे। यहाँ का भोजन खानेलायक नहीं होता था और न ही यहाँ का पानी पीने के लायक); इसके अतिरिक्त,मज़दूरों ने अपने बकाया ओवरटाइम की भी माँग की। इन माँगों पर संघर्ष के दौरान ही इन मज़दूरों ने सीटू से सम्पर्क किया। सीटू ने मालिकों और प्रबन्धन से बातचीत करके इनमें से कुछ माँगों को पूरा करवाया। मज़दूरों के अनुसार, ये बड़ी साधारण और मामूली माँगें थीं जिन्हें वे ख़ुद कारख़ाने के भीतर भी संघर्ष करके जीत सकते थे। सीटू ने इन माँगों में से कुछ को पूरा करवाने के बाद मज़दूरों के बीच यह बात कूट-कूटकर भर दी कि जो भी माँगें पूरी हुई हैं, वे सीटू की बदौलत ही पूरी हो पाई हैं और मज़दूरों को सीटू का अहसानमन्द होना चाहिए। इन मामूली माँगों के पूरा होने के चलते आज भी मज़दूर सीटू के अहसानमन्द हैं।

वास्तव में सीटू ने वे माँगें उठायी ही नहीं, जो उठायी जानी चाहिए थीं। मज़दूरों ने बीती दीपावली के पहले कारख़ाने में सैमटेल के मज़दूरों के बराबर वेतन और कुछ अन्य माँगों को लेकर संघर्ष शुरू किया। लेकिन विडम्बना की बात है कि तब भी उनके माँगपत्रक में जो सबसे बुनियादी माँगें होनी चाहिए थीं, वे नहीं थीं; यानी, मशीनों में सेंसर लगवाने या उत्पादन को उस स्तर पर रखने की माँग जिसके लिए सेंसर न हटवाना पड़े; और दूसरी सबसे अहम माँग यह कि जिन मज़दूरों ने अपने हाथ खोये हैं उन्हें कानून के मुताबिक मुआवज़ा मिले। ख़ैर, इन दो केन्द्रीय माँगों के बिना ही मज़दूरों ने संघर्ष शुरू किया। मज़दूरों के भीतर रोष तो पहले से ही था। उन्हें किसी भी किस्म से आवाज़ उठाने पर मारा-पीटा जाता था, उनके ख़िलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराये जाते थे और हर सम्भव तरीके से उनका उत्पीड़न किया जाता था। मज़दूरों की एक माँग यह भी थी कि उन्हें 20 प्रतिशत बोनस मिले। पहले उन्हें 20 प्रतिशत बोनस मिलता था जिसे सैमटेल का उदाहरण देकर8.33 प्रतिशत कर दिया गया। लेकिन जब सैमटेल में फिर से बोनस 20 प्रतिशत हुआ तो यहाँ के मज़दूरों ने भी 20प्रतिशत बोनस की माँग उठायी। इन्हीं माँगों को लेकर मज़दूरों ने आन्दोलन शुरू किया और कारख़ाने पर कब्ज़ा भी कर लिया। इस पर कारख़ाना मालिक और प्रबन्धन ने छह मज़दूरों पर झूठे आरोप लगाये और उनके बीच अफवाह फैला दी कि उनके ख़िलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है, जबकि वास्तव में, उन्हें सिर्फ कारख़ाने की ओर से नोटिस भेजा गया था और कोई प्राथमिकी भी दर्ज नहीं हुई थी। लेकिन सीटूवालों ने इस प्रचार का इस्तेमाल मज़दूरों की हड़ताल तुड़वाने और कब्ज़ा हटवाने के लिए किया।

जिस समय संघर्ष को और मज़बूत करके कारख़ाने पर कब्ज़े को जारी रखना चाहिए था, उस समय सीटू के ग़द्दारों ने मज़दूरों के दिमाग़ में यह बात पैठा दी कि कारख़ाने के पाँच गेटों पर एक साथ कब्ज़ा नहीं किया जा सकता, और अभी आन्दोलन वापस ले लेते हैं और पहले उन छह मज़दूरों के ख़िलाफ मामला वापस होने का इन्तज़ार करते हैं और फिर दोबारा आन्दोलन शुरू करेंगे। यही कारण था कि मज़दूरों ने उन छह मज़दूरों पर मामला वापस लेने के बदले में अपना संघर्ष वापस ले लिया। उन छह मज़दूरों पर कोई मामला तो दर्ज था नहीं, इसलिए कानूनी तौर पर कुछ भी नहीं होना था,लेकिन उन मज़दूरों को मालिक ने काम से निकाल दिया। इसके अतिरिक्त, इसी दौरान मालिक ने 40 और मज़दूरों को भी निकाल बाहर किया। और आज तक उन मज़दूरों को वापस नहीं लिया गया है और न ही उनकी कोई सुनवायी हुई है।

वास्तव में, सीटू से पल्ला झाड़कर मज़दूरों को उसी समय अपने आन्दोलन को और मज़बूत करना चाहिए था, लेकिन सीटू के प्रति अहसानमन्दी जैसी भावना के कारण मज़दूर उसकी बातों में आ गये। कारख़ाने के भीतर का नेतृत्व लड़ने को तैयार था, लेकिन इसके बावजूद सीटू ने उसकी पहल को खुलने नहीं दिया और मालिकों और प्रबन्धन के फायदे के लिए हर सम्भव प्रयास किया।

आगे का रास्ता

अगर आगे मज़दूरों को अपनी माँगों के लिए संघर्ष को विजय तक पहुँचाना है तो उन्हें फिर से कारख़ाने में वैसा ही जुझारू संघर्ष करना होगा, जैसा उन्होंने अपनी पहल पर दीपावली के पहले शुरू किया था। 5 गेटों को बन्द करना 1200 मज़दूरों के लिए कोई असम्भव कार्य नहीं है। आज मज़दूरों की प्रमुख माँगों का एक नया माँगपत्रक तैयार करना होगा और नये सिरे से संघर्ष की शुरुआत करनी होगी। इन माँगों में सर्वप्रमुख है सेंसरों को मशीन पर पुन: लगवाना और उत्पादन लक्ष्य को उसके अनुरूप निर्धारित करवाना; दूसरी प्रमुख माँग होगी उन मज़दूरों को कानूनसम्मत उचित मुआवज़ा दिलवाना जिनका कारख़ाने में अंग-भंग हुआ है; तीसरी प्रमुख माँग होनी चाहिए निकाले गये 46 मज़दूरों को वापस रखना; चौथी माँग होगी सभी सुरक्षा उपकरण मुहैया कराया जाना; पाँचवीं माँग यह बनती है कि मज़दूरों को उचित बोनस दिया जाये और मज़दूरी का भुगतान करने में देरी न की जाये; छठी माँग होगी कि आई.ई.डी. के मज़दूरों को सैमटेल के मज़दूरों के बराबर वेतन दिया जाये; सातवीं माँग होनी चाहिए मज़दूरों के साथ प्रबन्धन और मालिकों की बदसलूकी का बन्द होना;और आख़िरी माँग यह होनी चाहिए कि कारख़ाने के भीतर श्रम का ठेकाकरण पूरी तरह समाप्त किया जाये। एक ऐसे माँगपत्रक को लेकर समझौताविहीन संघर्ष के रास्ते ही आई.ई.डी. के मज़दूरों को इन्साफ मिल सकता है। इसके अतिरिक्त,और किसी भी वार्ता, किसी अधिकारी को ज्ञापन देने और प्रतीकात्मक धरनों से कुछ भी नहीं होने वाला है। और इन माँगों के लिए संघर्ष को सही तरीके से अंजाम पर पहुँचाने के लिए सबसे पहले मज़दूरों को सीटू के नेतृत्व के समक्ष यह बात स्पष्ट कर देनी होगी कि अगर वे इस माँगपत्रक पर समझौताविहीन संघर्ष करने और कारख़ाना जाम करने की लड़ाई में साथ देंगे तो वे आ सकते हैं, अन्यथा उनकी कोई ज़रूरत नहीं है। और अगर इस शर्त पर सीटू का नेतृत्व साथ आता है तो भी मज़दूरों को सावधान रहना होगा, क्योंकि मज़दूरों की पीठ में छुरा भोंकने का सीटू का इतिहास बहुत पुराना है। और अगर मज़दूरों को यह लड़ाई अपने बूते पर लड़नी पड़े तो भी उन्हें पीछे नहीं हटना चाहिए और अपनी फौलादी एकजुटता के बूते इस संघर्ष को आगे ले जाना चाहिए।

 

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2010


 

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