फ़िलिस्तीन: कुछ कवितांश
हमारे देश में
लोग मेरे दोस्त के बारे में
बहुत बातें करते हैं
कैसे वह गया और फिर नहीं लौटा
कैसे उसने अपनी जवानी खो दी
गोलियों की बौछारों ने
उसके चेहरे और छाती को बींध डाला
बस और मत कहना
मैंने उसका घाव देखा है
मैंने उसका असर देखा है
कितना बड़ा था वह घाव
मैं हमारे दूसरे बच्चों के बारे में सोच रहा हूँ
और हर उस औरत के बारे में
जो बच्चागाड़ी लेकर चल रही है
दोस्तो, यह मत पूछो वह कब आयेगा
बस यही पूछो
कि लोग कब उठेंगे
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आओ ! दुख और जंजीर के साथियों
हम चलें कुछ भी न हारने के लिए
कुछ भी न खोने के लिए
सिवा अर्थियों के
आकाश के लिए हम गायेंगे
भेजेंगे अपनी आशाएँ
कारख़ानों और खेतों और खदानों में
हम गायेंगे और छोड़ देंगे
अपने छिपने की जगह
हम सामना करेंगे सूरज का
हमारे दुश्मन गाते हैं –
“वे अरब हैं— क्रूर हैं—”
हाँ, हम अरब हैं
हम निर्माण करना जानते हैं
हम जानते हैं बनाना
कारख़ाने अस्पताल और मकान
विद्यालय, बम और मिसाईल
हम जानते हैं
कैसे लिखी जाती है सुन्दर कविता
और संगीत—
हम जानते हैं
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फिलिस्तीन
एक समूची ज़मीन है,
और ज़मीन से मुकम्मल प्यार
इसलिए तुम्हारी मार से
बाहर है
फिलिस्तीन आज़ादी का ज़रूरी भविष्य है
जनरल।
फिलिस्तीन
लोहू और इस्पात
से फूटता हुआ गुलाब है
कभी न मुरझाने वाला गुलाब
जो आखि़र में उगेगा
तुम्हारी क़ब्र पर।
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फिलिस्तीन
वे तबाह नहीं कर सकते
तुम्हें कभी भी
क्योंकि तुम्हारी टूटी आशाओं के बीच
सलीब पर चढ़े तुम्हारे भविष्य के बीच
तुम्हारी चुरा ली गयी हँसी के बीच
तुम्हारे बच्चे मुस्कुराते हैं
धवस्त घरों, मकानों और यातनाओं के बीच
ख़ून सनी दीवारों के बीच
ज़िन्दगी और मौत की थरथराहट के बीच
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