हिटलर के तम्बू में
नागार्जुन
अब तक छिपे हुए थे उनके दाँत और नाख़ून ।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून ।
छाँट रहे थे अब तक बस वे बड़े-बड़े क़ानून ।
नहीं किसी को दिखता था दूधिया वस्त्र पर ख़ून ।
अब तक छिपे हुए थे उनके दाँत और नाख़ून ।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून ।
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द ।
तक्षक ने सिखलाए उनको ‘सर्प नृत्य’ के छन्द ।
अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचन्द ।
हिटलर के तम्बू में अब वे लगा रहे पैबन्द ।
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द ।
पहले वे आये कम्युनिस्टों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।
फिर वे आये ट्रेड यूनियन वालों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था।
फिर वे आये यहूदियों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।
फिर वे मेरे लिए आये
और तब तक कोई नहीं बचा था
जो मेरे लिए बोलता।
पास्टर निमोलर
(हिटलर के शासनकाल के एक कवि और फासीवाद विरोधी कार्यकर्ता)
मज़दूर बिगुल, मई 2014
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