मज़दूरों के बारे में एक भोजपुरी गीत
सुभाष, लुधियाना
मैं सुभाष यादव, सन्त कबीर नगर का रहने वाला हूँ। मैं लुधियाना में पावरलूम पर काम करता हूँ। बिगुल पेपर मैं बहुत दिनों से पढ़ रहा हूँ और इसका प्रचार भी करता हूँ। आप लोग मज़दूरों के बारे में बहुत अच्छा लिखते हैं। आप जैसा लिखते हैं वैसा ही होना चाहिए। मैं मज़दूरों के बारे में एक भोजपुरी गीत लिख रहा हूँ।
मजदुरवन क भइया केहुना सुनवइया।
ये ही लोधियनवा क हव अइसन मालिक।
मज़दूरी मँगले पर देई देल गाली।
मिली जुली के करा तु इनकर सफइया।
मजदुरवन क भइया केहु ना सुनवइया।
हमनी क रेट घटल छोल कबहु ना बढ़ल।
हई महँगाई त हर साल बढ़ल।
कइसे होइह हमनी के लड़िकन क पढ़इया।
मजदुरवन क भइया केहुना सुनवइया।
लुम चलावत आ गइलिन बुडइया।
लगवा ना बाचल बा एकहु रुपइया।
एक लोटा पानी ना केहु देवइया।
मजदुरवन क भइया केहूना सुनइया।
ये ही मज़दूर कारखाना यूनियन के लेवा बढ़ाई
इहत सबकर रेट बढ़ाई।
जेना बढ़ाई ओकर हो रह पिटइया।
मजदुरवन क भइया केहु ना सुनवइया।
ये ही बिगुल क ल कहना तु मानी।
बिगुल के बढ़ावा बढ़े जैसे पानी।
ये ही में बाटे सबकर भलइया।
मजदुरवन क भइया केहुना सुनवइया।
बिगुल, मार्च 2009
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