मई 1886 का वह रक्तरंजित दिन जब मज़दूरों के बहते ख़ून से जन्मा लाल झण्डा
मज़दूरों का त्योहार मई दिवस आठ घण्टे काम के दिन के लिए मज़दूरों के शानदार आन्दोलन से पैदा हुआ। उसके पहले मज़दूर चौदह से लेकर सोलह-सोलह घण्टे तक खटते थे। सारी दुनिया में अलग-अलग इस माँग को लेकर आन्दोलन होते रहे थे। अपने देश में भी 1862 में ही मज़दूरों ने इस माँग को लेकर कामबन्दी की थी। लेकिन पहली बार बड़े पैमाने पर 1886 में अमेरिका के विभिन्न मज़दूर संगठनों ने मिलकर आठ घण्टे काम के दिन की माँग पर एक विशाल आन्दोलन खड़ा करने का फैसला किया।
एक मई 1886 को पूरे अमेरिका के लाखों मज़दूरों ने एक साथ हड़ताल शुरू की। इसमें 11,000 फैक्टरियों के कम से कम तीन लाख अस्सी हज़ार मज़दूर शामिल थे। शिकागो महानगर के आसपास सारा रेल यातायात ठप्प हो गया और शिकागो के ज़्यादातर कारख़ाने और वर्कशाप बन्द हो गये। शहर के मुख्य मार्ग मिशिगन एवेन्यू पर अल्बर्ट पार्सन्स के नेतृत्व में मज़दूरों ने एक शानदार जुलूस निकला।
उधर मज़दूरों की बढ़ती ताकत और उनके नेताओं के अडिग संकल्प से भयभीत उद्योगपति लगातार उन पर हमला करने की घात में थे। सारे के सारे अख़बार (जिनके मालिक पूँजीपति थे।) ”लाल ख़तरे” के बारे में चिल्ल-पों मचा रहे थे। पूँजीपतियों ने आसपास से भी पुलिस के सिपाही और सुरक्षाकर्मियों को बुला रखा था। इसके अलावा कुख्यात पिंकरटन एजेंसी के गुण्डों को भी हथियारों से लैस करके मज़दूरों पर हमला करने के लिए तैयार रखा गया था। पूँजीपतियों ने इसे ”आपात स्थिति” घोषित कर दिया था। शहर के तमाम धन्नासेठों और व्यापारियों की बैठक लगातार चल रही थी जिसमें इस ”खतरनाक स्थिति” से निपटने पर विचार किया जा रहा था।
3 मई को शहर के हालात बहुत तनावपूर्ण हो गये जब मैकार्मिक हार्वेस्टिंग मशीन कम्पनी के मज़दूरों ने दो महीने से चल रहे लॉक आउट के विरोध में और आठ घण्टे काम के दिन के समर्थन में कार्रवाई शुरू कर दी। जब हड़ताली मज़दूरों ने पुलिस पहरे में हड़ताल तोड़ने के लिए लाये गये तीन सौ ग़द्दार मज़दूरों के खिलाफ मीटिंग शुरू की तो निहत्थे मज़दूरों पर गोलियाँ चलायी गयीं। चार मज़दूर मारे गये और बहुत से घायल हुए। अगले दिन भी मज़दूर ग्रुपों पर हमले जारी रहे। इस बर्बर पुलिस दमन के खिलाफ चार मई की शाम को शहर के मुख्य बाज़ार हे मार्केट स्क्वायर में एक जनसभा रखी गयी। इसके लिए शहर के मेयर से इजाज़त भी ले ली गयी थी।
मीटिंग रात आठ बजे शुरू हुई। करीब तीन हज़ार लोगों के बीच पार्सन्स और स्पाइस ने मज़दूरों का आह्नान किया कि वे एकजुट और संगठित रहकर पुलिस दमन का मुकाबला करें। तीसरे वक्ता सैमुअल फील्डेन बोलने के लिए जब खड़े हुए तो रात के दस बज रहे थे और ज़ोरों की बारिश शुरू हो गयी थी। इस समय तक स्पाइस और पार्सन्स अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ वहाँ से जा चुके थे। इस समय तक भीड़ बहुत कम हो चुकी थी – करीब दो सौ लोग ही रह गये थे। मीटिंग करीब-करीब ख़त्म हो चुकी थी कि 180 पुलिसवालों का एक जत्था धड़धड़ाते हुए हे मार्केट स्क्वायर आ पहुँचा। उसकी अगुवाई कैप्टन बॉनफील्ड कर रहा था जिससे शिकागो के नागरिक उसके क्रूर और बेहूदे स्वभाव के कारण नफरत करते थे। मीटिंग में शामिल लोगों को चले जाने का हुक्म दिया गया। सैमुअल फील्डेन पुलिसवालों को यह बताने की कोशिश ही कर रहे थे कि यह शान्तिपूर्ण सभा है, कि इसी बीच किसी ने मानो इशारा पाकर एक बम फेंक दिया। आज तक बम फेंकने वाले का पता नहीं चल पाया है। शिकागो में यह माना जाता है कि बम फेंकने वाला पुलिस का भाड़े का टट्टू था। स्पष्ट था कि बम का निशाना मज़दूर थे लेकिन पुलिस चारों और फैल गयी थी और नतीजतन बम का प्रहार पुलिसवालों पर हुआ। एक मारा गया और पाँच घायल हुए। पगलाये पुलिसवालों ने चौक को चारों ओर से घेरकर भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलानी शुरू कर दीं। जिसने भी भागने की कोशिश की उस पर गोलियाँ और लाठियाँ बरसायी गयीं। छः मज़दूर मारे गये और 200 से ज़्यादा जख्मी हुए। मज़दूरों ने अपने ख़ून से अपने कपड़े रँगकर उन्हें ही झण्डा बना लिया। तभी से मज़दूरों के झण्डे का रंग लाल हो गया।
इस घटना के बाद पूरे शिकागो में पुलिस ने मज़दूर बस्तियों, मज़दूर संगठनों के दफ्तरों, छापाख़ानों आदि में ज़बरदस्त छापे डाले। प्रमाण जुटाने के लिए हर चीज़ उलट-पुलट डाली गयी। सैकड़ों लोगों को मामूली शक पर पीटा गया और बुरी तरह टॉर्चर किया गया। हज़ारों गिरफ्तार किये गये।
आठ मज़दूर नेताओं – अल्बर्ट पार्सन्स, आगस्टस स्पाइस, जार्ज एंजेल, एडाल्फ फिशर, सैमुअल फील्डेन, माइकेल श्वाब, लुइस लिंग्ग और आस्कर नीबे पर मुकदमा चलाकर उन्हें हत्या का मुजरिम करार दिया गया। इनमें से सिर्फ एक, सैमुअल फील्डेन बम फटने के समय घटनास्थल पर मौजूद था। जब मुकदमा शुरू हुआ तो सात लोग ही कठघरे में थे। डेढ़ महीने तक अल्बर्ट पार्सन्स पुलिस से बचता रहा। वह पुलिस की पकड़ में आने से बच सकता था लेकिन उसकी आत्मा ने यह गवारा नहीं किया कि वह आज़ाद रहे जबकि उसके बेकसूर साथी फर्जी मुकदमें में फँसाये जा रहे हों। पार्सन्स ख़ुद अदालत में आया और जज से कहा, ”मैं अपने बेकसूर कॉमरेडों के साथ कठघरे में खड़ा होने आया हूँ।”
पूँजीवादी न्याय के लम्बे नाटक के बाद 20 अगस्त 1887 को शिकागो की अदालत ने अपना फैसला दिया। सात लोगों को सज़ाए-मौत और एक (नीबे) को पन्द्रह साल कैद बामशक्कत की सज़ा दी गयी। स्पाइस ने अदालत में चिल्लाकर कहा था कि ”अगर तुम सोचते हो कि हमें फाँसी पर लटकाकर तुम मज़दूर आन्दोलन को… ग़रीबी और बदहाली में कमरतोड़ मेहनत करनेवाले लाखों लोगों के आन्दोलन को कुचल डालोगे, अगर यही तुम्हारी राय है – तो ख़ुशी से हमें फाँसी दे दो। लेकिन याद रखो … आज तुम एक चिंगारी को कुचल रहे हो लेकिन यहाँ-वहाँ, तुम्हारे पीछे, तुम्हारे सामने, हर ओर लपटें भड़क उठेंगी। यह जंगल की आग है। तुम इसे कभी भी बुझा नहीं पाओगे।”
सारे अमेरिका और तमाम दूसरे देशों में इस क्रूर फैसले के खिलाफ भड़क उठे जनता के ग़ुस्से के दबाव में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो अपील मानने से इन्कार कर दिया लेकिन बाद में इलिनाय प्रान्त के गर्वनर ने फील्डेन और श्वाब की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया। 10 नवम्बर 1887 को सबसे कम उम्र के नेता लुइस लिंग्ग ने कालकोठरी में आत्महत्या कर ली
काला शुक्रवार
अगला दिन (11 नवम्बर 1887) मज़दूर वर्ग के इतिहास में काला शुक्रवार था। पार्सन्स, स्पाइस, एंजेल और फिशर को शिकागो की कुक काउण्टी जेल में फाँसी दे दी गयी। अफसरों ने मज़दूर नेताओं की मौत का तमाशा देखने के लिए शिकागो के दो सौ धनवान शहरियों को बुला रखा था। लेकिन मज़दूरों को डर से काँपते-घिघियाते देखने की उनकी तमन्ना धरी की धरी रह गयी। वहाँ मौजूद एक पत्रकार ने बाद में लिखा : ”चारों मज़दूर नेता क्रान्तिकारी गीत गाते हुए फाँसी के तख्ते तक पहुँचे और शान के साथ अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो हुए। फाँसी के फन्दे उनके गलों में डाल दिये गये। स्पाइस का फन्दा ज़्यादा सख्त था, फिशर ने जब उसे ठीक किया तो स्पाइस ने मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। फिर स्पाइस ने चीख़कर कहा, ‘एक समय आयेगा जब हमारी ख़ामोशी उन आवाज़ों से ज़्यादा ताकतवर होगी जिन्हें तुम आज दबा डाल रहे हो।…’ फिर पार्सन्स ने बोलना शुरू किया, ‘मेरी बात सुनो… अमेरिका के लोगो! मेरी बात सुनो… जनता की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकेगा…’ लेकिन इसी समय तख्ता खींच लिया गया।”
13 नवम्बर को चारों मज़दूर नेताओं की शवयात्रा शिकागो के मज़दूरों की एक विशाल रैली में बदल गयी। पाँच लाख से भी ज़्यादा लोग इन नायकों को आखि़री सलाम देने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़े।
तब से गुज़रे 123 सालों में अनगिन संघर्षों में बहा करोड़ों मज़दूरों का ख़ून इतनी आसानी से धरती में जज़्ब नहीं होगा। फाँसी के तख्ते से गूँजती स्पाइस की पुकार पूँजीपतियों के दिलों में ख़ौफ पैदा करती रहेगी। अनगिन मज़दूरों के ख़ून की आभा से चमकता लाल झण्डा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन