गाज़ा में इज़रायल की हार
गाजा में टनों गोला-बारूद, मिसाइलें और टैंकों की अपनी पूरी ताकत खर्च कर चुकने के बावजूद इजरायल अपने मकसद में नाकामयाब रहा। उसने जिस मकसद से हमले किये थे वह तो कत्तई हासिल हुआ नहीं उल्टे दुनिया-भर में थू-थू करवाने के बाद मुँह पिटा कर वापस लौटने पर मजबूर होना पड़ा। अन्तरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि इन हमलों से इजरायल राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य तरीके से नुकसान ही हुआ है। एक जर्मन दैनिक “स्युड़यूश” ने शीर्षक दिया – ‘ओल्मर्ट की कथित जीत, हार है।’
इन हमलों की तैयारी तो तभी शुरू हो गयी थी जब पिछले साल नवंबर 2008 में इजरायल ने गाजा पट्टी की जल, थल और वायु में नाकेबंदी करके इस इलाके को एक विशाल ‘घेट्टो’ में तब्दील करने के शर्मनाक कदम उठाने शुरू कर दिये थे। गाजा पट्टी के लोगों के हमास को समर्थन करने से भी इजरायल खुन्नस खाये हुए था। अपने माईबाप अमेरिका के इशारे पर नाकेबंदी करके उसका सोचना था कि वह फिलीस्तीनी लोगों के प्रतिरोध को घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा। इन कठिन परिस्थितियों ने भी फिलीस्तीनी लोगों के जज्बे में कोई कमी नहीं आने दी। बल्कि वे और ज्यादा बहादुरी के साथ इजरायली दमन का मुकाबला करने लगे। इससे इजरायल की खीझ और झुंझलाहट बढ़ गयी और उसने हमले शुरू कर दिये।
इन हमलों में जिस तरह निर्दोष नागरिकों, बूढ़ों, महिलाओं, बच्चों, चिकित्साकर्मियों, राहतकर्मियों से लेकर अस्पतालों और स्कूलों तक को निशाना बनाया गया, उसने पूरी दुनिया में इजरायल के खिलाफ नफरत की लहर पैदा कर दी। इन हमलों के खिलाफ यूरोप समेत पूरी दुनिया में बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए। खासतौर पर अरब देशों की जनता में गुस्सा उबल पड़ा। इन देशों की जनता के व्यापक पैमाने पर सड़कों पर उतरने की वजह से कई अमेरिकापरस्त शासकों को भी इजरायल विरोधी रूख़ अख्तियार करने पर मजबूर कर दिया।
इजरायल को हराने वाली असली ताकत वहाँ की जनता की वह भावना है जिसने साम्राज्यवादी लठैत के आगे झुकने से इंकार कर दिया है। वैसे भी फिलीस्तीनी कौम का लड़ते रहने का शानदार इतिहास रहा है। इस जुझारू कौम ने अपनी जगह-जमीन से बेदखल होने के बाद स्वतंत्र फिलीस्तीन की माँग अकूत कुर्बानियाँ देकर उठाते रहे हैं। इतिहास भी बताता है कि बड़ी से बड़ी ताकत भी जनता की आबाज को दबा नहीं पाती। दशकों से भुखमरी और बुनियादी सुविधाओं के बगैर जी रहे फिलीस्तीनियों का प्रतिरोध अमेरिका और मध्यपूर्व में तैनात उसके पाँव-दबाऊ लठैत इजरायल के लिए एक चुनौती है। ताजा हमलों में भी लगभग 1300 जानें गँवाने, 5500 लोगों के घायल होने और हजारों मकानों के ध्वस्त किये जाने के बावजूद फिलीस्तीनी लोगों का संघर्ष रूकने का कोई संकेत नहीं है। बल्कि इन हमलों ने उनके दिलों में इजरायल और अमेरिका के खिलाफ गुस्से को और गहरा और तीखा कर दिया है जो निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में आतताइयों की कब्र खोदने के काम आयेगा।
हमास को खत्म करने का इजरायल का इरादा भी दूर की कौड़ी ही साबित हुआ। दरअसल हमास जनता में इतना घुलमिल गया है कि उसे अलग से टारगेट करना संभव ही नहीं है। हमास के जनता में व्यापक जनाधार होने के भी निश्चित कारण हैं। फिलीस्तीनी मुक्ति संगठन (पीएलओ) के समझौतापरस्त हो जाने के बाद इजरायली फौजों का बहादुरी से मुकाबला करने वाला एकमात्र संगठन कट्टरपंथी हमास था। कोई क्रान्तिकारी विकल्प न होने की वजह से लड़ रहे हमास के साथ जनता को खड़ा होना ही था। बेशक जनता पूरी तरह से हमास के कट्टरपंथी एजेंडे से सहमत न भी हो लेकिन फिलहाल की परिस्थितियों में तो हमास ही जनता के प्रतिरोध के एकमात्र प्रतीक के तौर पर उभर चुका है। अभी भी हमास का व्यापक आधार मौजूद है लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि वह फिलीस्तीनी जनता के अन्तरविरोधों को दूर करके उन्हें एक करने में कामयाब रहेगा। वैसे खुद इजरायली प्रधानमंत्री ने आखिरकार माना कि हमास को खत्म करना फिलहाल संभव नहीं है।
इन हमलों ने रणनीतिक तौर पर फिलीस्तीनी संघर्ष को ताकत दी है। इन हमलों ने एक तरफ तो गाजा पट्टी के बदतर हालातों की तरफ सारे विश्व का ध्यान खींचा है वहीं फिलीस्तीनी संघर्ष से सहानुभूति रखने वाले दुनिया भर में कई लोग पैदा कर दिये हैं। इन हमलों ने साम्राज्यवाद के खिलाफ अरब जनता के अंदर ही अंदर सुलग रहे गुस्से को बाहर निकालने का रास्ता दिखा दिया है। भविष्य में अरब जनता के साम्राज्यवाद के खिलाफ कमर कस लेने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। इन हमलों ने मध्य-पूर्व के अमेरिका परस्त और अमेरिका विरोधी देशों के बीच खाई को और चौड़ा कर दिया है। साथ ही अमेरिका के मानवाधिकारों और लोकतंत्र आदि के दावों की पोल एक बार फिर खोल कर रख दी है। इन हमलों ने इजरायली जियनवादियों और अमेरिकी शासक वर्ग के बर्बर, अमानुषिक और हिंसक चेहरे को सामने ला दिया है।
जाहिर है कि इन हमलों में मारे गये फिलीस्तीनी लोगों का खून बेकार नहीं गया है। इन हमलों के बाद फिलीस्तीनी जनता का प्रतिरोध ज्यादा बढ़ेगा, उनका संघर्ष ऊंचा उठेगा। इजरायल इन हमलों के बाद नैतिक रूप से पराजित हो गया है। हो सकता है कि गाजा से उठने वाले प्रतिरोध की लहरें समूचे मध्यपूर्व फैल जाएं और साम्राज्यवादियों के पाँव उखाड़ने की शुरुआत कर दें।
बिगुल, फरवरी 2009
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