मोदी-शाह के फ़ासीवादी राज में स्त्रियों के बद से बदतर होते हालात !

वृषाली

केन्द्र सरकार द्वारा संसद में जुलाई महीने में दिये गये एक बयान के मुताबिक़ 2019 से 2021 के बीच तीन वर्षों के दौरान देश में 13.13 लाख स्त्रियों के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज की गयी थी। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, एनसीआरबी, की रिपोर्ट के अनुसार इनमें 18 वर्ष से ऊपर की 10,61,648 महिलाएँ और 2,51,430 नाबालिग लड़कियाँ शामिल हैं। यानी, हर चौथे मिनट में देश में एक स्त्री लापता होती है। इनमें से कई केस हल नहीं होते हैं और अन्ततः मानव तस्करी, यौन हिंसा, जबरन विवाह और यहाँ तक कि हत्या पर समाप्त होते हैं। उक्त रिपोर्ट में शीर्ष स्थान पर मध्य प्रदेश का नाम है जहाँ इन तीन वर्षों के दौरान 1,60,180 महिलाएँ व 38,234 लड़कियाँ लापता हुई हैं। ग़ौरतलब है कि यहाँ भाजपा की शवराजसिंह चौहान की सरकार है। सूची में दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र है जहाँ 1,78,400 महिलाएँ और 13,033 लड़कियाँ ग़ायब हुई हैं। यहाँ भी जोड़-तोड़ और ख़रीद-फ़रोख़्त के ज़रिये भाजपा ने सरकार बना रखी है। तीसरा स्थान ओड़ीसा का है जहाँ 70,222 महिलाएँ व 16,649 लड़कियाँ इन तीन वर्षों में ग़ायब हुई हैं। केन्द्र शासित प्रदेशों में दिल्ली इस सूची में अव्वल है। इन तीन वर्षों के दौरान दिल्ली से 61,054 महिलाएँ और 22,919 लड़कियाँ ग़ायब हैं। जम्मू और कश्मीर में यही संख्या क्रमशः 8,617 और 1,148 है।

यह आँकड़े निश्चित तौर पर भयंकर हैं लेकिन अप्रत्याशित नहीं। पिछले ही वर्ष जब प्रधानमन्त्री महोदय लाल किले की प्राचीर से टेलीफप्रॉम्प्टर से पढ़-पढ़कर नारी सुरक्षा व सम्मान पर लफ्फाज़ियाँ कर रहे थे, तो उसी समय बिल्किस बानो के बलात्कार और उनके परिजनों की हत्या के जुर्म की सज़ा काट रहे 11 आरोपी बरी किये जा रहे थे। इतना ही नहीं, भाजपा-आरएसएस के नेता इन बलात्कारियों और हत्यारों की रिहाई का जश्न मनाते हुए फूल-मालाओं से उनका अभिनन्दन कर रहे थे। जिस पार्टी के लिए बलात्कार विरोधियों पर विजय का एक हथियार है, उनके नेता का स्त्री सुरक्षा सम्मान पर बात करना ढोंग नहीं है तो और क्या है? 2014 में सत्ता में आने से पहले, और उसके बाद भी प्रधानमन्त्री महोदय ने जुमलों की बरसात कर दी है। बतौर प्रधानमन्त्री 2014 में लाल किले से दिये अपने पहले भाषण में ही उन्होनें कहा था कि बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनकर हमारा सर शर्म से झुक जाता है! अन्य जुमलों की ही तरह स्त्री सुरक्षा के ढोंग का भी वही हश्र हुआ है। अब भाजपा को चाहिए की अपनी सत्ता के 9 साल पूरे होने के बाद ब्रजभूषण, कुलदीप सिंह सेंगर, चिन्मयानन्द, साक्षी महाराज जैसों को स्त्री (अ)सुरक्षा का ब्राण्ड एम्बेसडर बना दिया जाये! देश की अच्छी-ख़ासी आबादी इस समय भाजपाइयों से बेटी बचाने में लगी हुई है। यहाँ तक कि भाजपाइयों ने देश की स्त्री खिलाडियों तक को नहीं छोड़ा है, बाकी मेहनतकश वर्ग से आने वाली स्त्रियों की सुरक्षा की तो बात ही क्या की जाय!

स्त्री सुरक्षा से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण आँकड़ों पर भी नज़र डालते हैं

एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान लोकसभा में क़रीब 43 प्रतिशत सांसदों के विरुद्ध स्त्री-विरोधी अपराधों सहित तमाम तरह के आपराधिक आरोप हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या भाजपा के सांसदों की है जिनमें से 30 प्रतिशत के विरुद्ध बलात्कार, हत्या, अपहरण जैसे गम्भीर स्त्रीविरोधी अपराधों के आरोप हैं।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में 60 लाख आपराधिक मामले दर्ज किये गये। इनमें 4,28,278 मामले स्त्री विरोधी अपराध के थे। वर्ष 2016 से इन मामलों में 26.35% की बढ़ोत्तरी हुई है।

इस मामले में वर्ष 2021 में उत्तर प्रदेश में चल रहेरामराज्यमें 56,000 घटनाएँ दर्ज की गयीं थीं।

2021 में स्त्रियों के अपहरण के 76,263 मामले दर्ज किये गये थे (2016 में यह संख्या 66,544 थी)। अपहरण के इनमें से 28,222 मामले में शादी का दबाव बनाने के लिए किये गये थे।

घरेलू हिंसा के मामले में साल 2021 में 137,956 फ़ोन कॉल दर्ज किये गये थे, यानी हर चार मिनट पर एक मामला।

दहेज उत्पीड़न और हत्या के 6,795 मामले दर्ज किये गये थे, यानी हर 77 मिनट पर एक हत्या।

यह आँकड़े केवल सतही स्थिति पेश करते हैं। एक जाँच के अनुसार बलात्कार की 85% घटनाएँ रिपोर्ट ही नहीं की जाती हैं। इनमें यदि वैवाहिक बलात्कार की घटनाओं को भी शामिल किया जाये तो यही आँकड़ा 99.1% हो जाता है। लापता हुई स्त्रियों के मामले में भी सभी मसले दर्ज नहीं किये जाते हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 2017 से 2021 के पाँच वर्षों के दौरान 37 राज्य व केन्द्र शासित प्रदेशों में से केवल 18 में 50% से ज़्यादा मामलों में लापता हुई स्त्रियों का पता लगाया गया।

यह जाने बिना कि आज बढ़ते स्त्री विरोधी अपराधों का कारण क्या है, हम इस भयंकर परिस्थिति को बदल पाने में सक्षम नहीं हो पायेंगे। स्त्रियों का उत्पीड़न और पितृसत्ता का इतिहास वर्ग समाज और निजी सम्पत्ति की उत्पत्ति के साथ जुड़ा हुआ है। पूँजीवादी समाज के मौजूदा आर्थिक-सामाजिक ढाँचे ने पितृसत्ता को सहयोजित कर लिया है। मुनाफे पर टिकी इस व्यवस्था के लिए स्त्रियों का शरीर और यौन सम्बन्ध भी खरीदे और बेचे जाने वाला माल बन चुका है। आज अश्लीलता भी धन्धा है। फ़िल्मों, विज्ञापनों, गानों से लेकर सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों पर गलाज़त भरी फूहड़ता परोसी जा रही है। मज़दूरों की और आम मेहनतकश युवाओं की एक अच्छी-ख़ासी जमात को भी यह कचरा अफ़ीम की तरह रोज़ स्मार्ट फोनों आदि के ज़रिये दिया जा रहा है। शुचिता और संस्कार का ढोंग करने वाली फ़ासीवादी भाजपा के राज ने इस पतनशील और प्रतिक्रियावादी मानसिकता और मज़बूत किया है। बलात्कारियों और हत्यारों को संरक्षण देने वाली पार्टी की सत्ता हमें स्त्री विरोधी अपराध के आँकड़ों के अम्बार के अलावा और दे भी क्या सकती है?! भाजपा के गुरू गोलवलकर का मानना था कि औरतें बच्चा पैदा करने का यन्त्र होती हैं; इनके माफ़ीवीर सावरकर का मानना था कि बलात्कार का राजनीतिक हिंसा के उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। एक ऐसी पार्टी से देश की औरतें क्या उम्मीद कर सकती हैं? एक ऐसी पार्टी चिन्मयानन्द, कुलदीप सेंगर, ब्रजभूषण, साक्षी महाराज जैसे बलात्कारी पैदा करती है, आसाराम और डेरा सच्चा सौदा के राम रहीम जैसे बलात्कारियों को बचाती है, बिल्किस बानो के परिवार के हत्यारों और उसके बलात्कारियों को जेल से रिहा करती है, तो तो यह इत्तेफ़ाक का मसला है और ही ताज्जुब का। भाजपा जैसी स्त्रीविरोधी पार्टी यह नहीं करेगी तो और क्या करेगी?

मज़दूर बिगुल, सितम्‍बर 2023


 

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