दिल्ली में बुलडोज़र राज
– केशव आनन्द
पिछले दिनों दिल्ली के तमाम इलाक़ों में दिल्ली नगरपालिका द्वारा “अतिक्रमण” हटाने के नाम पर आम मेहनतकश आबादी की झुग्गियों पर बुलडोज़र चलाकर उनके घरों को उजाड़ने का काम किया गया। अतिक्रमण हटाना तो बहाना था। असलियत यह थी कि इस पूरे प्रकरण में मुख्यतः मेहनतकश मुस्लिम आबादी को निशाना बनाया गया। अगर वाकई अतिक्रमण हटाना मकसद था तो सबसे पहले विजय नगर, अशोक विहार, शालीमार बाग, कैलाश कॉलोनी, ग्रेटर कैलाश, पीतमपुरा, आदि की अमीरज़ादों, धन्नासेठों और व्यापारियों व पूँजीपतियों की कोठियों पर बुलडोज़र चलना चाहिए था क्योंकि पूरी दिल्ली में इन धनपशुओं से ज़्यादा अतिक्रमण तो किसी ने किया ही नहीं है। जहाँगीरपुरी, शाहीन बाग़, मंगोलपुरी, मदनपुर खादर, नजफगढ़, द्वारका समेत दिल्ली के तमाम इलाक़ों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दिल्ली नगरपालिका द्वारा झुग्गियों पर बुलडोज़र चलाने का प्रयास किया गया। सरकार का कहना था कि दिल्ली में “अतिक्रमण” हटाने के लिए इन बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है। इन इलाक़ों में केवल लोगों के घरों पर ही नहीं बल्कि उनकी रेहड़ियों और दुकानों पर भी बेरहमी से बुलडोज़र चला दिये गये।
ग़ौरतलब है कि जिन भी इलाक़ों में बुलडोज़र चलाये गये, उनमें से कहीं भी लोगों को झुग्गियों के तोड़े जाने का नोटिस नहीं दिया गया। और सुबह लोग जब अपने अपने काम पर गये थे, तब नगर निगम द्वारा बुलडोज़र के ज़रिए उनकी झुग्गियों को तोड़ दिया गया। जब लोगों ने इसका विरोध किया, तब दिल्ली पुलिस ने प्रतिरोध कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज कर दिया। इस दौरान भाजपा और आरएसएस ने सुनियोजित और सुव्यवथित तरीके से मुस्लिम आबादी को निशाना बनाकर उन्हें उजाड़ने का काम किया है। ग़ौरतलब है कि इस पूरे प्रकरण में केवल ग़रीब मुस्लिम आबादी के ही घर नहीं उजड़े, बल्कि बुलडोज़र की ज़द में ग़रीब हिन्दू आबादी की झुग्गियाँ भी आयी हैं। कई जगहों पर, जहाँ मेहनतकश हिन्दू और मुस्लिम आबादी साथ-साथ रहती थी, वहाँ बुलडोज़र ने दोनों ही मज़हब के लोगों के घर गिराये। इस रूप में यह देखा जा सकता है कि मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ होने के साथ-साथ फ़ासीवाद हर धर्म की आम मेहनतकश मज़दूर आबादी के भी ख़िलाफ़ होता है।
भाजपा सरकार बुलडोज़र के ज़रिए जहाँ एक ओर आम मेहनतकश आबादी के सर से छत छीन रही है, वहीं दूसरी ओर इसे धार्मिक रंग देकर एक बार फिर साम्प्रदायिक माहौल बनाने की कोशिश कर रही है। ग़ौरतलब है कि बीते 10 अप्रैल को रामनवमी के दिन देशभर के अलग-अलग हिस्सों में साम्प्रदायिक घटनाएँ हुईं। विक्रम संवत नववर्ष से लेकर रामनवमी व नवरात्र के दौरान देशभर में संघ परिवार की गुण्डा वाहिनियों द्वारा भगवा झण्डा फहराने, भड़काऊ भाषण देने, मुसलमान महिलाओं को बलात्कार की धमकी देने, मुसलमानों पर हमले करने का काम किया। दिल्ली के जहाँगीरपुरी इलाक़े में पिछले हनुमान जयन्ती के दिन विश्व हिन्दू परिषद और आरएसएस ने मुस्लिम बहुल इलाक़ों में जाकर साम्प्रदायिक नारे लगाये और लगातार धार्मिक उन्माद भड़काने की कोशिश की। मुस्लिम बहुल इलाक़ों में बुलडोज़र चलाना इसी कड़ी में बढ़ाया गया अगला क़दम है। इसके ज़रिए एक बार फिर भाजपा और आरएसएस दिल्ली समेत देशभर में जनता के बीच मज़हब के नाम पर दंगे करवाने की साज़िश कर रही है। दिल्ली में चलाये जा रहे बुलडोज़र पर भाजपा के नेताओं के बयान भाजपा और आरएसएस की मंशा को साफ़-साफ़ ज़ाहिर करते हैं। भाजपा के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने यह बयान दिया कि दिल्ली में रहने वाले “रोहिंगिया और बांग्लादेशियों” के घरों पर बुलडोज़र चलाये जा रहे हैं। वहीं कपिल मिश्रा समेत तमाम नेताओं ने भी इस सन्दर्भ में मुस्लिम विरोधी बयान दिये। आम आदमी पार्टी ने भी अपनी घिनौनी असलियत ज़ाहिर करते हुए भाजपा के बयान के जवाब में कहा कि इन “रोहिंग्या व बंगलादेशी मुसलमानों” को भाजपा ने ही इन इलाकों में बसने दिया। सच्चाई यह है कि यह आबादी हिन्दुस्तानी ग़रीब मुसलमान आबादी है। वैसे तो मज़दूर वर्ग को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि किसी पड़ोसी मुल्क के दुखियारे ग़रीब अपनी जान बचाने के वास्ते उसके देश में प्रवासी के रूप में आ जाएँ। मज़दूर वर्ग का मानवतावाद ही सच्चा मानवतावाद होता है और वह अपने ऐसे ग़रीब मेहनतकश भाइयों का दिल और बाँहें खोलकर स्वागत करता है। यह अन्धराष्ट्रवादी पूँजीवादी ताक़तें होती हैं जो कि हर देश में ऐसे ग़रीब मेहनतकशों के विरुद्ध उन्माद को भड़का कर टुटपुँजिया आबादी के बीच जुनून और कट्टरता फैलाती हैं और इस रास्ते मालिकों, ठेकेदारों और पूँजीपतियों की सेवा करती हैं।
इस दौरान दिल्ली के प्रगतिशील संगठनों ने जब आरएसएस और भाजपा के इस फ़ासीवादी एजेण्डे का विरोध किया, तब दिल्ली पुलिस ने उनपर भी लाठियाँ बरसायी और प्रतिरोध करने वालों के ख़िलाफ़ नाजायज़ कार्रवाई भी की। आज प्रशासन से लेकर दिल्ली पुलिस का भगवाकरण साफ़ रूप में दिखायी दे रहा है। आरएसएस और भाजपा का हिन्दुत्ववादी फ़ासीवादी एजेण्डा आज विधायिका के साथ-साथ कार्यपालिका और न्यायपालिका की भी पोर-पोर में समा चुका है। इसकी अभिव्यक्ति आज देश की न्याय प्रणाली और पुलिस प्रशासन के कारनामों में साफ़ तौर पर दिख रही है।
फ़ासीवाद पूँजीवादी संकट के दौर में बड़ी पूँजी की सेवा करने के लिए टुटपुँजिया वर्ग के रूमानी उभार के साथ आता है। यह टुटपुँजिया वर्ग के रूमानी आन्दोलन के समक्ष एक छद्म शत्रु पेश करता है। और उसके जीवन की तमाम समस्याओं का ज़िम्मेदार इस छद्म शत्रु को ही बताता है। जीवन के हर मोड़ पर अनिश्चितता की लटकी तलवार के डर से (पूँजीवादी संकट के दौर में तो और भी अधिक) यह वर्ग आसानी से इस प्रतिक्रियावादी राजनीति के बहकावे में आ जाता है। ग़ौरतलब है कि फ़ासीवाद इस छद्म शत्रु के दायरे को लगातार बड़ा करता जाता है, और इस दायरे में उन सभी लोगों को शामिल कर देता है, जो फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते हैं। फ़ासीवाद इसके लिए अपने देश के अनुरूप किसी ख़ास मज़हब, नस्ल, जाति, राष्ट्रीयता जैसे पहचान का इस्तेमाल छद्म शत्रु के रूप में करता है। जर्मनी में हिटलर, इटली में मुसोलिनी ने अपने फ़ासीवादी एजेण्डे को लागू करने का यही तरीका अपनाया था। भारत में फ़ासीवाद साम्प्रदायिकता का चोगा पहनकर आया है। आज हिन्दुत्ववादी फ़ासीवाद जनता को धर्म के नाम पर गुमराह करने का काम कर रहा है, ताकि इसकी आड़ में देश के बड़े पूँजीपतियों की सम्पत्ति में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि कर सके। आज आरएसएस और मोदी सरकार जनता को आपस में लड़ाकर जनविरोधी क़ानून और नीतियों लेकर आ रही है। साथ ही पूँजीपतियों के मुनाफ़े को सुनिश्चित करने के लिए मज़दूरों के हक़ अधिकारों पर हमले भी कर रही है।
लेकिन हर दौर में जनता ने फ़ासीवाद को इतिहास के कूड़ेदान में डालने का काम किया है। हर दौर में आख़िरकार फ़ासीवादियों को मुंह की खानी पड़ी है। इसलिए आज एक बार फिर आम मेहनतकश आबादी को मोदी सरकार की इस साम्प्रदायिक राजनीति को समझना होगा, और अपने असल मुद्दों पर एकजुट होकर, इनकी तमाम साम्प्रदायिक और पूँजीपरस्त नीतियों के नाकाम करना होगा।
मज़दूर बिगुल, जून 2022
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