आगामी दिल्ली नगर निगम चुनाव में कम बुरा विकल्प नहीं, सच्चे क्रान्तिकारी विकल्प को चुनो!
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव 22 अप्रैल को होने वाले हैं। बताने की ज़रूरत नहीं है कि मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए चुनाव का मतलब रह गया है कम बुरे दिख रहे विकल्प को चुन लेना। कारण यह कि आम मेहनतकश जनता के पास चुनने के लिए तमाम अमीरपरस्त पार्टियाँ ही होती हैं। लेकिन इस बार एक क्रान्तिकारी विकल्प के रूप में ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ द्वारा खजूरी, करावलनगर और वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के वॉर्डों में उम्मीदवार खड़े किये जा रहे हैं। अब कम बुरा विकल्प छाँटने की ज़रूरत नहीं है। सच्चे क्रान्तिकारी विकल्प को चुनना होगा। यह सच है कि पूँजीवादी चुनावों के ज़रिये ही व्यापक मेहनतकश आबादी को बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार, भूख और ग़रीबी से आज़ादी नहीं मिल सकती है। ऐसा तो उस इंक़लाब के ज़रिये ही सम्भव है, जिसकी बात शहीदे-आज़म भगतसिंह ने की थी और जिस क्रान्ति के फलस्वरूप समूचे उत्पादन, राज-काज और समाज के ढाँचे पर सच्चे मायने में मज़दूरों-मेहनतकशों का हक़ होगा। लेकिन यह भी सच है कि मौजूदा व्यवस्था के दायरे के भीतर हमें हमारे कानूनसम्मत अधिकार भी तब तक हासिल नहीं हो सकते हैं, जब तक कि मज़दूरों-मेहनतकशों के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष को चुनावों में पेश न किया जाये। आज यदि पूँजीवादी व्यवस्था के भीतर होने वाले चुनावों की बात की जाय तो देश के करीब 75 फीसदी औद्योगिक व खेतिहर मज़दूरों तथा ग़रीब किसानों की कोई नुमाइन्दगी नहीं है। पिछले 70 वर्षों में हम देख चुके हैं कि कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी, व नकली लाल झण्डे वाली संसदीय वामपंथी पार्टियाँ वास्तव में पूँजीपति वर्ग के ही अलग-अलग हिस्सों की नुमाइन्दगी करती हैं। मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश आबादी के पास चूँकि कोई विकल्प नहीं होता इसलिए वह कभी इस तो कभी उस चुनावी पूँजीवादी पार्टी को वोट देने को मजबूर हो जाती है। जब कांग्रेस के शासन से ऊब जाते हैं, तो हम कांग्रेस की कारगुज़ारियों की उसे सज़ा देने के लिए भाजपा को वोट दे देते हैं और जब भाजपा की पूँजीपरस्त नीतियों से ऊब जाते हैं तो उसे सज़ा देने के लिए कांग्रेस को वोट दे देते हैं। लेकिन इससे हमारे वर्ग हितों पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता और हमें वे हक़ भी नहीं हासिल हो पाते जिनका वायदा पूँजीवादी व्यवस्था में हमसे किया जाता है जैसे कि आठ घण्टे का कार्यदिवस, न्यूनतम मज़दूरी, रोज़गार की गारण्टी, आवास का अधिकार, सबको समान शिक्षा का अधिकार, साफ़-सफ़ाई व साफ़ पीने के पानी का हक़ और हमारे अन्य जनवादी व नागरिक अधिकार। इसका कारण यह है कि समाज के हर क्षेत्र में मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष की मौजूदगी होनी चाहिए। पूँजीवादी चुनावों में भी मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष की नुमाइन्दगी होनी चाहिए। क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा यही स्वतन्त्र मज़दूर पक्ष निगम चुनाव में पेश कर रहा है।
हर पार्टी या दल किसी न किसी वर्ग की नुमाइन्दगी करता है। भाजपा और कांग्रेस बडे़ पूँजीपतियों और व्यापारियों की पार्टियाँ हैं, वहीं ‘आम आदमी पार्टी’ छोटे और मँझोले मालिकों, ठेकेदारों, व्यापारियों के हितों की नुमाइन्दगी करती है। अन्य चुनावी पार्टियों का चरित्र भी कुछ ऐसा ही है और वे सभी छोटे या बड़े, औद्योगिक, वित्तीय या व्यापारिक पूँजीपति वर्ग और उनकी चाकरी करने वाले उच्च मध्य वर्गों की ही नुमाइन्दगी करती हैं। इस समय कोई ऐसी पार्टी नहीं है जो कि दिल्ली के करीब 75 फीसदी ग़रीब और निम्न मध्यवर्ग के आम मेहनतकश लोगों और मज़दूरों की नुमाइन्दगी करती हो। चूँकि चुनावों में मज़दूरों-मेहनतकशों का कोई स्वतन्त्र पक्ष मौजूद ही नहीं होता इसलिए हम कभी इस तो कभी उस पूँजीवादी पार्टी को वोट देने को मजबूर होते हैं। इन पार्टियों की सच्चाई क्या है?
केजरीवाल सरकार के दो साल के कार्यकाल से और साफ हो गया है कि ‘आप’ ईमानदारी-सदाचार का लबादा ओढ़कर दिल्ली के खाते-पीते मालिकों-व्यापारियों की सेवा में ही जी-जान से लगी हुई है। यही कारण है कि इस पार्टी में ऐसे धन्नासेठ ही ज़्यादा जुड़ रहे हैं और चुनाव में ‘आप’ टिकट भी इन्हीं व्यापारियों, कारखाना मालिकों और धन्नासेठों को ही दे रही है। केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के आम मेहनतकशों से जो वायदे किये थे, वे झूठ का पुलिन्दा साबित हुए हैं। पहला झूठ, केजरीवाल सरकार का यह झूठा वायदा कि कच्ची कॉलोनियों को बिना शर्त नियमित किया जायेगा व इन कॉलोनियों में बुनियादी सुविधएँ दी जायेंगी। अब केजरीवाल सरकार यह काम न करने के बहाने के तौर पर तरह-तरह की शर्तें लगा रही है। दूसरा झूठ, केजरीवाल सरकार का सबसे बड़ा वायदा था कि दिल्ली से ठेका प्रथा समाप्त की जायेगी। दिल्ली में 50 करोड़ से भी ज़्यादा लोग ठेके पर ही काम करते हैं। न सिर्फ़ केजरीवाल सरकार अपने इस वायदे से मुकर गयी बल्कि जब हज़ारों ठेका मज़दूर दिल्ली सचिवालय पर केजरीवाल को यह वायदा याद दिलाने पहुँचे तो उनपर बर्बरता से लाठी चार्ज करवाया गया। तीसरा झूठ, केजरीवाल सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाने की घोषणा की है जैसा कि हर साल शीला दीक्षित सरकार भी करती थी लेकिन ये बढ़ोत्तरी कभी लागू नहीं होती। और तो और, ‘आप’ के ही तमाम विधायक और एमसीडी चुनाव के उम्मीदवार खुद वज़ीरपुर से लेकर पीरागढ़ी में कारखाने चलवाते हैं, जैसे राजेश गुप्ता, गिरीश सोनी, आदि। दिल्ली के तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में ‘आप’ विधायकों ने आज तक न्यूनतम मज़दूरी क्यों नहीं लागू करवाई? ज़ाहिर है, न्यूनतम मज़दूरी में होने वाली ये बढ़ोत्तरियाँ केवल कागज़ी होती हैं और हमें बेवकूफ़ बनाने के लिए होती हैं। चौथा झूठ, दिल्ली सरकार का दावा कि उसने दिल्ली के हर घर को 700 लीटर मुफ़्त पानी दे दिया है। सच यह है कि मज़दूरों के रिहायशी इलाक़ों में बड़ी आबादी बाहर गलियों में लगी टोटियों से पानी भरती है। पाँचवाँ झूठ, केजरीवाल ने कहा था कि 55,000 सरकारी पदों पर भर्ती की जायेगी और 8 लाख नये रोज़गार दिये जायेंगे। लेकिन कोई भर्ती नहीं हुई और दिल्ली में बेरोज़गारी दर 11 फीसदी पहुँच गयी। छठा झूठ, दिल्ली में 500 नये सरकारी स्कूल बनाये जायेंगे। तीन सालों में एक भी नया स्कूल नहीं बनाया बस पुराने स्कूलों में कुछ नये कमरे बना दिये और हाथ झाड़ लिये। इससे केजरीवाल सरकार ने नये स्कूल खड़े करने, उनमें स्थायी स्टाफ़ रखने आदि खर्चों से बच गयी और उल्टे पिछले बजट में केजरीवाल ने सैकड़ों करोड़ रुपये अपने झूठे प्रचार पर उड़ा दिये। इस बार भी 198 करोड़ रुपये केजरीवाल सरकार ने अपने प्रचार के लिए रखे हैं! सातवाँ झूठ, ‘दिल्ली की झुग्गीवासियों को पक्के मकान दिये जायेंगे।’ इन दो सालों एक भी झुग्गीवासी को मकान देना तो दूर, वज़ीरपुर, आज़ादपुर, शकूरबस्ती, खजूरी जैसे इलाकों में झुग्गियों व मकानों को तोड़ा गया है और पक्के मकान मिलने तक सभी सुविधाएँ देने का वायदा भी फुस्स ही निकला है। यानी आप सरकार के पिछले दो वर्ष झूठ और धोखाधड़ी के दो वर्ष साबित हुए हैं। वास्तव में, इस पार्टी ने दिल्ली में धनी व्यापारियों, कारखानेदारों और ठेकेदारों की चाँदी कर दी है, उन पर से कर विभाग व चौकसी विभाग के दबाव को पूरी तरह समाप्त कर दिया है, ताकि वे अपनी लूट को बेरोक-टोक चला सकें।
केन्द्र में सत्तासीन भाजपा की मोदी सरकार को लगभग तीन साल होने वाले है और उसके द्वारा चुनावों के समय किये गये वायदे जैसे–‘बहुत हुई महँगाई की मार-अबकी बार मोदी सरकार’, ‘बहुत हुआ नारी पर वार-अबकी बार मोदी सरकार’ जैसे अन्य नारों की हवा अब निकल चुकी है। भाजपा द्वारा जो नीतियाँ लागू की गयी वे एकदम जनविरोधी हैं व इस देश के बड़े पूँजीपतियों और धन्नासेठों के हित में हैं। भाजपा सरकार देश की अकूत सम्पदा को अम्बानी, अडानी व अन्य पूँजीपतियों को देने में लगी हुई है। काले धन-भ्रष्टाचार के नाम पर की गयी नोटबन्दी के इतने दिन बीत जाने के बाद भी काम-धन्धे में मन्दी बनी हुई है। जिस काले धन को बाहर निकालने के लिए ये नौटंकी रची गयी उसके बारे में खुद मोदी सरकार चुप हो गयी है। मोदी सरकार ने महँगाई बेलगाम कर दी है। दाल, तेल व आटे की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। पिछले तीन महीनों में रसोई गैस सिलेण्डर की कीमत 270 रुपये बढ़ा दी गयी है। पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें भी पिछले कुछ हफ़्तों में 3 बार बढ़ायी गयी हैं। ज़ाहिर है, इसके कारण हर चीज़ महँगी हो जायेगी। भाजपा सरकार का मतलब ही हमेशा होता है महँगाई और बेरोज़गारी में भारी बढ़ोत्तरी! पिछले 2 वर्षों में देश के बेरोज़गारों की आबादी में 2 करोड़ नये बेरोज़गार शामिल हुए हैं। जब अपनी जनविरोधी नीतियों के चलते भाजपा सरकार अलोकप्रिय हो जाती है तो चुनावों में भाजपा मीडिया पर पूर्ण नियंत्रण और प्रचार पर हज़ारों करोड़ रुपये खर्च कर जनता के बीच राय बनवाती है, जनता को साम्प्रदायिक और जातिगत तौर पर बाँटती है। इसके बूते वह कई जगह चुनाव जीत भी रही है जैसे कि उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश जिसका कारण एक ओर राजनीतिक विकल्पहीनता है तो दूसरी ओर जनता के बीच राजनीतिक चेतना की कमी। दिल्ली नगर निगम में भाजपा का प्रभुत्व है और यहाँ बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार कायम है। आम मेहनतकश जनता के इलाकों में गन्दगी की स्थिति बरकरार रहती है। वज़ीरपुर, करावलनगर, खजूरी जैसे मेहनतकशों और निम्न मध्यवर्ग के इलाके तो एक बड़े कूड़ेदान से ज़्यादा नहीं लगते हैं। निगम के सफाई कर्मचारी पिछले 2-3 वर्षों में तनख्वाहें न मिलने के कारण कई बार हड़ताल कर चुके हैं। कइयों के घर तो खाने के लाले पड़ गये हैं।
कांग्रेस के बारे में जितनी कम बात की जाये, अच्छा होगा। यह भारत के पूँजीपतियों की सबसे पुरानी भरोसेमन्द पार्टी है। देश में नयी आर्थिक नीतियों के नाम पर जनता और मज़दूर वर्ग को लूटने की निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों की शुरुआत इसी कांग्रेस ने की थी। भाजपा तो बस उसे फासीवादी तानाशाहाना तरीके से आगे बढ़ा रही है। कांग्रेस ने अपने कुल पाँच दशक के राज में जनता को ग़रीबी, महँगाई, अन्याय और भ्रष्टाचार के अलावा कुछ ख़ास नहीं दिया है। जनता को धर्म-जाति के नाम पर बाँटने का जो काम भाजपा खुलकर करती है वही साम्प्रदायिक राजनीति कांग्रेस बस छुपकर करती है। जिन इलाकों में कांग्रेस के निगम पार्षद हैं वहाँ भी लोगों आम लोगों के लिए हालात बदतर ही हैं। अब ऐसी पार्टी को चुनकर जनहित की उम्मीद करना बेमानी है। ऐसे में अब इस चुनाव में मज़दूर-मेहनतकश जनता के पास क्या विकल्प है?
अब तक चुनाव में मज़दूर-मेहनतकश लोग के पास कम बुरे प्रतिनिधि को चुनने का ही विकल्प होता था; पर इस बार ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ की ओर से आगामी एम.सी.डी. चुनाव में तीन वॉर्डों से आपके बीच उम्मीदवार खड़ा किया जा रहा हैः वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र, करावलनगर व खजूरी। ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ का गठन करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता पिछले कई वर्षों से इन क्षेत्रों की जनता के बीच मौजूद रहे हैं और उसके अधिकारों के लिए लड़ते रहे हैं, जनता को संगठित करते रहे हैं। वे जेल और लाठियों का सामना करने से भी पीछे नहीं हटे हैं। वज़ीरपुर में स्टील मज़दूरों की शानदार हड़ताल और मज़दूरों के सुरक्षा उपकरणों को लेकर चले संघर्ष हों, मज़दूरों के हक़-अधिकारों के लिए चले अनगिनत संघर्ष हों या झुग्गी तोड़ने के खिलाफ़ जुझारू संघर्ष हो; ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हमेशा मज़दूरों-मेहनतकशों को अपने अधिकारों के लिए एकजुट किया है। केजरीवाल सरकार द्वारा मज़दूरों से किये गये वायदों को पूरा करवाने के लिए उस पर लगातार दबाव बनाने के वास्ते पिछले तीन वर्षों में तीन बड़े प्रदर्शन आयोजित किये गये। पिछले तीन वर्षों से आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं व सहायकों का भी एक आन्दोलन जारी है जिसका अगला प्रदर्शन 25 मार्च को केजरीवाल के निवास पर होने वाला है। साथ ही, दिल्ली मेट्रो रेल के ठेकाकर्मियों को संगठित करने का काम भी अब ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ता पिछले एक दशक से करते रहे हैं। साथ ही, इन सभी इलाकों में लम्बे समय से लोगों के बीच निशुल्क मेडिकल जाँच मुहैया कराने से लेकर पानी की माँग को लेकर भी सरकार पर दबाव बनाया गया। इसके साथ ही इलाके की ग़रीब आबादी के बच्चों को नाममात्र शुल्क लेकर ‘शिक्षा सहायता मण्डल’ के तहत पढ़ाई में सहायता करायी जा रही है। करावलनगर में बादाम मज़दूरों की मज़दूरी बढ़ाने का सवाल हो या पेपर प्लेट मज़दूरों के हक़ों का; इलाके में सड़क के अधिकार की बात हो या पुलिस हिरासत में हुई हत्या के ख़िलाफ़ संघर्ष की; ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ के कार्यकर्ता हमेशा मज़दूरों-मेहनतकशों को अपने अधिकारों के लिए एकजुट करते रहे हैं। अभी हाल ही में इस इलाके के बदहाल सरकारी स्कूल के मुद्दे को लेकर हमारे संगठन द्वारा छात्र-छात्राओं व नागरिकों को एकजुट कर दिल्ली सरकार पर दबाव बनाया गया जिसके कारण सरकार को स्कूल का निर्माण कार्य शुरू करवाना पड़ा और स्कूल निर्माण तक वैकल्पिक व्यवस्था में स्कूल चलाने के लिए किराये पर जगह ली गयी। खजूरी में भी स्कूल निर्माण के लिए आन्दोलन से लेकर साम्प्रदायिक फासीवादी संघी ताक़तों से लोहा लेने में अब ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ से जुड़े राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने कई वर्षों से जनसंघर्षों को नेतृत्व दिया है।
अब ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ नगर निगम चुनावों में करावलनगर, वज़ीरपुर व खजूरी से अपने उम्मीदवार खड़ा कर रहा है। अब चुनावों में मज़दूरों और मेहनतकशों का स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष मौजूद है और धन्नासेठों-अमीरज़ादों की इस या उस पार्टी को वोट देने या ‘नोटा’ का बटन दबाने की उनकी कोई मजबूरी नहीं है। ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ की प्रवक्ता शिवानी ने कहा, ”मज़दूरों और मेहनतकशों को अब सरमायेदारों की पार्टियों को वोट देने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह सच है कि पूँजीवादी चुनाव ही अपने आप में मज़दूर वर्ग के ऐतिहासिक कार्यभारों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। समूची आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था में आमूलगामी व क्रान्तिकारी बदलाव के बिना हमें बेरोज़गारी, भूख, महँगाई से स्थायी तौर पर निजात नहीं मिल सकती है। लेकिन पूँजीवादी चुनावों में मज़दूर वर्ग का स्वतन्त्र राजनीतिक पक्ष अनुपस्थित रहने के कारण समाज में जारी वर्ग संघर्ष में मज़दूर वर्ग कमज़ोर पड़ता है, वह पूँजीपति वर्ग का पिछलग्गू बनता है और साथ ही वह अपने उन अधिकारों को भी नहीं हासिल कर पाता है जिन्हें पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे के भीतर हासिल किया जा सकता है जैसे कि आठ घण्टे का कार्यदिवस, न्यूनतम मज़दूरी, आवास का अधिकार आदि। इन हक़ों को सुनिश्चित करने के लिए ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ की ओर से मज़दूर वर्ग के स्वतन्त्र पक्ष को पेश करने की एक शुरुआत की जा रही है। अभी हम तीन वॉर्डों में अपने प्रतिनिधियों को उम्मीदवार के तौर पर खड़ा कर रहे हैं और आने वाले समय में विधानसभा और संसदीय चुनावों में भी इस काम को अंजाम दिया जायेगा। मैं मज़दूर भाइयों और बहनों से, मेहनतकश वर्गों, निम्न मध्यवर्ग के अपने तमाम भाइयों व बहनों का आह्वान करती हूँ कि इन तीनों वॉर्डों पर इस बार दिल्ली नगर निगम चुनावों में मालिकों, ठेकेदारों, व्यापारियों की पूँजीवादी पार्टियों कांग्रेस, भाजपा, आप या स्वराज अभियान आदि को समर्थन न दें, बल्कि अपने पक्ष को मज़बूत बनायें। समाज में हमारी आवाज़ स्वतन्त्र तौर पर बुलन्द हो इसके लिए ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ को अपना समर्थन दें और मज़दूर वर्ग की आवाज़ को दिल्ली नगर निगम तक पहुँचाएँ! यही आपका सच्चा प्रतिनिधि है, यही आपका अपना पक्ष है!” इन तीनों वॉर्डों में मज़दूर व युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने सघन जनसम्पर्क अभियान शुरू कर दिया है। यह मज़दूर पक्ष के लिए एक कठिन चुनौती है कि वह किस प्रकार इन चुनावों में पूँजीवादी पार्टियों के धनबल, बाहुबल, मीडिया और भ्रष्टाचार का मुकाबला करता है। इसके लिए निश्चित तौर पर मज़दूरों और मेहनतकशों को एकजुट होकर ‘क्रान्तिकारी मज़दूर मोर्चा’ का समर्थन करना होगा।
मज़दूर बिगुल, मार्च 2017
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