पार्टी की बुनियादी समझदारी (पैंतीसवीं किस्त)
अध्याय –12
पार्टी सदस्यों की अनुकरणीय हरावल भूमिका
एक क्रान्तिकारी पार्टी के बिना मजदूर वर्ग क्रान्ति को कतई अंजाम नहीं दे सकता। लेनिन ने इस बात को बार–बार जोर देकर कहा था। स्तालिन और माओ ने भी बराबर इस बात पर जोर दिया और बीसवीं सदी की सभी सफल सर्वहारा क्रान्तियों ने भी इसे सच साबित किया।
लेनिन ने सर्वहारा वर्ग की क्रान्तिकारी पार्टी के सांगठनिक उसूलों का निर्धारण किया और इसी फौलादी सांचे में बोल्शेविक पार्टी को ढाला। चीन की पार्टी भी बोल्शेविक पार्टी की ही उत्तराधिकारी थी। सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान, समाजवादी समाज में वर्ग–संघर्ष का संचालन करते हुए माओ के नेतृत्व में चीन की पार्टी ने अन्य युगान्तरकारी सैद्धान्तिक उपलब्धियों के साथ–साथ लेनिनवादी सांगठनिक सिद्धान्तों को भी और आगे विकसित किया।
सोवियत संघ और चीन में पूंजीवाद की पुनर्स्थापना के लिए बुर्जुआ तत्वों ने सबसे पहले यही जरूरी समझा कि सर्वहारा वर्ग की पार्टी का चरित्रा बदल दिया जाये। हमारे देश में भी क्रान्ति का रास्ता छोड़ संसदीय रास्ते पर चलने वाली नामधारी कम्युनिस्ट पार्टियां मौजूद हैं। भारतीय मजदूर क्रान्ति को सफल बनाने के लिए भारत में भी सर्वहारा वर्ग की एक सच्ची क्रान्तिकारी पार्टी खड़ी करने का काम सबसे ऊपर है।
इसके लिए बेहद जरूरी है कि मजदूर वर्ग यह जाने कि असली और नकली कम्युनिस्ट पार्टी में क्या फर्क होता है और एक क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी कैसे खड़ी की जानी चाहिए।
इसी उद्देश्य से, फरवरी 2001 के अंक से हमने एक बेहद जरूरी किताब ‘पार्टी की बुनियादी समझदारी’ के अध्यायों का किस्तों में प्रकाशन शुरू किया है। यह किताब सांस्कृतिक क्रान्ति के दौरान पार्टी–कतारों और युवा पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए तैयार की गई श्रृंखला की एक कड़ी थी। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की दसवीं कांग्रेस (1973) में पार्टी के गतिशील क्रान्तिकारी चरित्र को बनाये रखने के प्रश्न पर अहम सैद्धान्तिक चर्चा हुई थी, पार्टी का नया संविधान पारित किया गया था और संविधान पर एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी। इसी नई रोशनी में यह पुस्तक एक सम्पादकमण्डल द्वारा तैयार की गई थी। मार्च, 1974 में पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस, शंघाई से इस पुस्तक के प्रथम संस्करण की 4,75,000 प्रतियां छपीं। यह पुस्तक पहले चीनी भाषा से फ्रांसीसी भाषा में अनूदित हुई और 1976 में प्रकाशित हुई। फिर नार्मन बेथ्यून इंस्टीट्यूट, टोरण्टो (कनाडा) ने इसका फ्रांसीसी से अंग्रेजी में अनुवाद कराया और 1976 में ही इसे प्रकाशित कर दिया। प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद मूल पुस्तक के इसी अंग्रेजी संस्करण से किया गया है। –सम्पादक
सर्वहारा वर्ग के उन्नत तत्वों के रूप में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों को संविधान में बतायी गयी पार्टी सदस्यों की पांच पूर्वशर्तों को सचेतन तौर पर पूरा करना चाहिए। उन्हें अपने आप पर सख्त होना चाहिए, तीन महान क्रान्तिकारी संघर्षों में अपनी अनुकरणीय हरावल भूमिका को पूरी तरह निभाना चाहिए, और पार्टी की बुनियादी लाइन को लागू करने और अपनी जुझारू जिम्मेदारियों को पूरा करने के संघर्ष में व्यापक क्रान्तिकारी जनसमुदायों का नेतृत्व करना चाहिए।
कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों की अनुकरणीय हरावल भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है
अध्यक्ष माओ हमें सिखाते हैं : “यहां कम्युनिस्टों की अनुकरणीय हरावल भूमिका का अत्यन्त महत्व है। आठवीं राह सेना और नयी चौथी सेनाओं में कम्युनिस्टों को बहादुरी से लड़ने, आदेशों का पालन करने, अनुशासित रहने, राजनीतिक काम करने और आंतरिक एकता और एकजुटता को मजबूत करने की मिसाल कायम करनी चाहिए।” (माओ त्से–तुङ, संकलित रचनाएं, खंड, ‘‘राष्ट्रीय युद्ध में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की भूमिका’’, पृ. 97, अंग्रेजी संस्करण) अध्यक्ष माओ की शिक्षाएं हमारी पार्टी के सदस्यों के लिए निर्देशों का एक खाका उपलब्ध कराती हैं जिसे सभी सदस्यों को लागू करने के लिए प्रयास करना चाहिए। व्यवहार में, उन्हें एक तिहरी भूमिका निभानी चाहिए : उन्हें जनता के लिए एक मिसाल होना चाहिए, उन्हें क्रान्तिकारी कामों का मुख्य आधार होना चाहिए और पार्टी और जनता के बीच एक सेतु का काम करना चाहिए।
जनता के लिए मिसाल बनने के लिए, उन्हें अध्यक्ष माओ की क्रान्तिकारी लाइन की हिफाजत करने में, पार्टी की दिशा को मानने और इसकी नीतियों को लागू करने और साथ ही साथ उच्चतर निकायों के निर्देशों और निर्णयों को लागू करने के काम में अगली कतारों में होना चाहिए। हर काम को पूरा करने में, उन्हें मिसाल पेश करनी चाहिए, जनसमुदायों को जागृत करना चाहिए और अपने कामों से उन्हें प्रभावित करना चाहिए, तथा अध्यक्ष माओ की क्रान्तिकारी लाइन को लागू करने और पार्टी की दिशा और नीतियों को मानने में उनका नेतृत्व करना चाहिए।
क्रान्तिकारी कामों का मुख्य आधार बनने के लिए, उन्हें तीन महान क्रान्तिकारी संघर्षों में अनुकरणीय हरावल भूमिना निभानी चाहिए। मार्क्सवादी–लेनिनवादी क्लासिकीय रचनाओं और अध्यक्ष माओ की रचनाओं का अध्ययन करने में उन्हें अगली कतारों में होना चाहिए, वर्ग शत्रु से संघर्ष में शामिल होने में अग्रणी होना चाहिए, उत्पादन के लक्ष्यों को पूरा करने, वैज्ञानिक प्रयोगों को जारी रखने और दिक्कतों से पार पाने में अग्रणी होना चाहिए। पार्टी और राज्य द्वारा सौंपे गये सारे कामों को पूरा करने के लिए उन्हें जनसमुदायों को एकजुट करना चाहिए और उनकी अगुवाई करनी चाहिए।
पार्टी और जनता के बीच सेतु का काम करने के लिए, उन्हें जनसमुदाय के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए, और मार्क्सवाद–लेनिनवाद–माओ त्से–तुङ विचारधारा के आधार पर, और पार्टी की लाइन, दिशा और नीतियों के आधार पर उनके बीच सक्रिय प्रचार और शिक्षा का काम चलाना चाहिए। उन्हें संघर्ष के जरिए जनसमुदायों के विवेक और अनुभवों को संकेन्द्रित करने और हमेशा उनकी रायों और मांगों को समझने और प्रतिबिम्बित करने में सक्षम होना चाहिए।
हमारी पार्टी की प्रकृति ही सदस्यों के लिए यह आवश्यक बना देती है कि जनसमुदायों के बीच वे अनुकरणीय हरावल भूमिका निभाएं। हमारी पार्टी सर्वहारा वर्ग की अगुआ है। हमारी पार्टी का उन्नत चरित्र सिर्फ इसकी मार्गदर्शक विचारधारा, कार्यक्रम, लाइन और राजनीतिक सिद्धान्तों में ही नहीं, बल्कि इसके सदस्यों की अनुकरणीय अगुआ भूमिका में भी निहित है। इसलिए सभी कम्युनिस्टों को अपनी गतिविधियों को मार्क्सवाद–लेनिनवाद–माओ त्से–तुङ विचारधारा पर आधारित करना चाहिए। उन्हें उन कसौटियों के अनुसार अपने साथ सख्ती बरतनी चाहिए जिनकी उम्मीद सर्वहारा वर्ग के उन्नत तत्वों से की जाती है और अपनी गतिविधियों में नजीर पेश करना चाहिए, ताकि वे जनसमुदायों के लिए आदर्श का काम कर सकें और उनके बीच एक अगुआ भूमिका निभा सकें।
पार्टी के जुझारू काम कम्युनिस्टों के लिए यह जरूरी बना देते हैं कि वे जनसमुदायों के बीच एक अनुकरणीय हरावल भूमिका निभाएं। कम्युनिज्म के उच्च आदर्श को वास्तविकता में बदलने के लिए पार्टी को एक दीर्घकालिक और दुर्गम संघर्ष छेड़ना चाहिए और इसके लिए बड़ी संख्या में ऐसे उन्नत तत्वों की जरूरत होती है जो अपना पूरा जीवन क्रान्ति को समर्पित कर दें। कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य ऐसे ही उन्नत तत्व हैं। पार्टी की बुनियादी लाइन और फौरी जुझारू कामों को इसके हरेक सदस्य द्वारा पूरा किया जाना चाहिए। अगर कम्युनिस्ट अपनी अनुकरणीय अगुआ भूमिका को पूरी तरह निभाएं तो हम पार्टी संगठनों को अगली कतारों के लड़ाकू दस्ते बनाने में सक्षम होंगे जो सर्वहारा वर्ग के नेतृत्व में क्रान्ति जारी रखेंगे, हर किस्म के वर्ग शत्रुओं को हराने में जनसमुदायों को एकजुट और मार्गदर्शित करेंगे और अपनी महान ऐतिहासिक जिम्मेदारी को पूरा करेंगे।
पार्टी की स्थिति भी ऐसी है जो कम्युनिस्टों के लिए यह अनिवार्य बना देती है कि वे जनसमुदायों के बीच अनुकरणीय अगुआ भूमिका निभाएं। हमारी पार्टी चीनी जनता की नेता और संगठनकर्ता है और उनके बीच उसका काफी सम्मान है। व्यापक जनसमुदायों का हमारी पार्टी में भरोसा है और वे इसका समर्थन करती हैं, क्योंकि यह एक महान, गौरवशाली और सही पार्टी है जिसका पोषण स्वयं अध्यक्ष माओ ने किया है और क्योंकि यह अध्यक्ष माओ की मार्क्सवादी–लेनिनवादी लाइन को मानती है। लेकिन जनसमुदायों द्वारा पार्टी को समर्थन देने की एक और वजह यह है कि इसके सदस्यों द्वारा निभायी जा रही अनुकरणीय अगुआ भूमिका को वे देख सकते हैं। जनसमुदायों के बीच पार्टी के सम्मान और प्रभाव को बनाने में कम्युनिस्टों की कथनी और करनी का बहुत महत्व होता है। इसका अर्थ है कि हम कम्युनिस्टों को हर चीज में, पार्टी के हितों से प्रस्थान करना चाहिए और यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि हमारी कथनी और करनी का जनता पर सकारात्मक असर पड़े, कि हम आदर्श की तरह काम करते हुए पार्टी की राजनीतिक लाइन, दिशा और सिद्धान्तों को सचेतन तौर पर लागू करें और कि जहां कहीं भी हम जायें, हम पार्टी के सम्मान को बचायें, ताकि जनसमुदाय इसकी और अधिक कदर एवं समर्थन करें।
ल्यू शाओ ची और लिन पियाओ जैसे उचक्कों ने, जिन्होंने पार्टी निर्माण के प्रश्न पर एक संशोधनवादी लाइन चलायी, पार्टी के सदस्यों को इस उम्मीद में पूंजीपति वर्ग और जमींदार वर्ग की सड़ी और मरणासन्न विचारधारा से भ्रष्ट किया कि वे कम्युनिस्टों की ओजस्वी भावना का दम घोंट देंगे, उनकी अनुकरणीय अगुआ भूमिका से उन्हें भटका देंगे और इस तरह पार्टी की प्रकृति को भ्रष्ट कर देंगे और पूंजीवाद की पुनर्स्थापना के अपने आपराधिक षडयंत्र को अमली जामा पहना सकेंगे। इसलिए, पार्टी निर्माण पर ल्यू शाओ.ची और लिन पियाओ की संशोधनवादी लाइन की गहराई के साथ आलोचना करना, उनके विषैले प्रभाव को समाप्त करना और सर्वहारा वर्ग के अगुआ के रूप में पार्टी के चरित्र को कायम रखना बेहद जरूरी है।
(अगले अंक में जारी)
बिगुल, फरवरी 2004
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