मालिकों की नज़र में मज़दूर मशीनों के पुर्जे हैं
विशाल, लुधियाना
बजाज सन्स लिमिटेड (सी-103, फेस-5, फोकल प्वांइण्ट, लुधियाना) में 28 मई 2016 को रात पौने एक बजे बिरसा नाम के मज़दूर की दाएँ हाथ की दो उँगलियाँ (जहाँ तक उँगली में नाख़ून होता है) पावरप्रेस में कट गयी हैं। बिरसा जिस पावरप्रेस पर काम कर रहा था उसका क्लच ढीला था और सेंसर भी नहीं लगा था। बिरसा ने फोरमैन अवधेश को बताया कि मशीन का क्लच ढीला है ठीक करा दो। लेकिन फोरमैन ने अवधेश की बात पर ध्यान नहीं दिया और मशीन चलाते रहने के लिए कहा। बिरसा जैसे ही मशीन पर काम करने लगा उसके बीस मिनट बाद खबर मिली कि बिरसा की दो उँगलियाँ कट गयी हैं। लेकिन बेशर्म फोरमैन अवधेश अभी भी अपनी ग़लती मानने के लिए तैयार नहीं था। उलटा वो बिरसा को ही दोष दे रहा है। उसको लगता है कि बिरसा ने जानबूझकर अपनी उँगली मशीन में डाली है। जैसे बिरसा को अपनी उँगलियों से प्यार ही न हो।
इस हादसे का ज़िम्मेवार सिर्फ अवधेश ही नहीं है बल्कि कम्पनी मैनेजमैंट और मालिकान भी हैं। स्टाफ में गिने जाने वाले फौरमैनों आदि की सोच ही ऐसी बना दी जाती है कि मज़दूर तो कामचोर होते हैं। उनपर मज़दूरों से अधिक से अधिक काम लेने का दबाव बनाया जाता है। उनसे कहा जाता है कि वे कम्पनी का ज़्यादा से ज़्यादा पैसा बचाएँ। मालिक और मैनेजमैंट के ही कहने पर प्रेस मशीनों से सैंसर आदि हटा दिये जाते हैं या खराब होने पर ठीक नहीं करवाये जाते। कारख़ाने में माहौल ऐसा बना दिया जाता है कि मशीनों में बहुत सी गड़बड़ियों को ठीक करने का मतलब समय और पैसा खराब करना होगा। मज़दूरों की शिकायतों को कामचोरी मान लिया जाता है।
मुनाफे़ की हवस में पूँजीपति एक पैसा भी हादसों से सुरक्षा के इंतजामों पर खर्च नहीं करना चाहते। इस व्यवस्था में पूँजीपतियों के लिए मज़दूर सिर्फ मशीन के पुर्जे बन कर रह गये हैं।
मज़दूर बिगुल, जून 2016
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