बच्चों के खून-पसीने से बन रही है बेंगलोर मेट्रो

बिगुल संवाददाता

कारपोरेट जगत में हमेशा ही मजदूरों का मनमाना शोषण होता रहा है लेकिन अब सरकारी उपक्रम भी बेहयाई से श्रम कानूनों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। वैसे तो मेट्रो रेल कारपोरेशन में श्रम कानूनों के खुले उल्लंघन की ख़बरें कर्मचारियों के आन्दोलन की बदौलत सामने आने लगी हैं लेकिन बेंगलोर मेट्रो तो इसमें भी दो कदम आगे निकल गयी है। वहाँ बच्चों से मज़दूरी करायी जा रही है ताकि कम पैसे पर उन्हें अधिक से अधिक निचोड़ा जा सके। केन्द्र और राज्य सरकार के निवेश और जापान बैंक के सहयोग से मिलने वाले 9,000 करोड़ के बजट के बाद भी बेंगलोर मेट्रो के निर्माण के लिए बच्चों का खून और पसीना बहाया जा रहा है।
पिछले अप्रैल माह के अन्त में श्रम आयोग और बाल कल्याण समिति में रिपोर्ट दर्ज कराये जाने के बाद चाइल्ड हेल्पलाइन हरकत में आयी और एक 13 वर्षीय बाल मज़दूर को वहाँ से छुड़ाया गया। मेट्रो के जिस निर्माण स्थल से उस बच्चे को छुड़ाया गया, वहाँ कुछ और बच्चे काम कर रहे थे लेकिन नागार्जुन कन्स्ट्रक्शन कंपनी के इंजीनियरों के इशारे पर उन्हें वहाँ से हटा दिया गया।
बेंगलोर मेट्रो के निर्माण कार्य के लिए झारखण्ड और पश्चिम बंगाल से बच्चों को मज़दूरी के लिए लाया गया है। यहाँ पर 18 वर्ष से भी कम उम्र के बच्चे धातु की भारी चादरें और खम्भे उठा रहे हैं तथा खुदाई और ड्रिलिंग का काम भी कर रहे हैं। उन्हें मज़दूरी भी कम दी जाती है और बात-बात पर झिड़की और गालियों का सामना करना तो रोज़ की बात है।
लेकिन, श्रम कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाने वाले दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन की ही दिखायी राह पर चलते हुए बेंगलोर मेट्रो रेल कारपोरेशन भी सारी ज़िम्मेदारी ठेका कम्पनियों पर डालकर अपने को पाक-साफ बता रहा है। बाल मज़दूरों से काम लेने की खबर पफैली तो बेंगलोर मेट्रो रेल कारपोरेशन ने आनन-फानन में प्रेस कांफेंस करके इस बात का खण्डन किया और उसपर सवाल उठाने वालों को ही गलत बता दिया, जबकि वह बच्चा अब भी चाइल्ड हेल्पलाइन के पास मौजूद है।

 

बिगुल, मई 2009


 

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