नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं गुड़गाँव में काम करने वाले सफाई कर्मचारी, गार्ड और अन्य मज़दूर
मनन
मैं गुड़गाँव के उद्योग विहार फेज़ 4 में स्थित एक कम्पनी में काम करता हूँ। कम्पनी के गेट के अन्दर प्रवेश करते ही आपको हर तरफ साफ-सफाई और हर चीज खूबसूरत नजर आयेगी, परन्तु इस पूरी चमक-दमक के पीछे जिन लोगों की मेहनत है वो एकदम जानवरों सी ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं। यहाँ काम करने वाले सफाई कर्मचारी, सुरक्षा गार्ड, कैंटीन मे बतौर हेल्पर काम करने वाले मज़दूर ठेके पर 4000-5000 रुपये मासिक वेतन पर बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के काम करते हैं और यही हाल यहाँ पर स्थित हर छोटी-बड़ी कम्पनी का है। ज़ाहिर सी बात है कि इतने कम वेतन पर आज के समय में दो वक्त की रोटी कमाना भी नामुनकिन है इसलिए इन लोगो को 12-14 घण्टे और कभी-कभी तो 17-18 घण्टे तक ओवर टाइम लगाना पड़ता है ताकि अपने और अपने परिवार का पेट पाल सके।
मज़दूर और मेहनतकश आवाम जो हर चीज पैदा करते हैं, जिसके दम पर यह सारी चमक-दमक और शानो-शौकत है वो खुद किस तरह अपनी जिन्दगी जी रही है इसका कुछ अन्दाज़ा यहाँ रमन बाबू नामक एक नौजवान मज़दूर की बातचीत सुनकर पता चलता है। रमन बाबू मेरी कम्पनी में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करता है, पूछने पर उसने बताया कि वो यू.पी. के किसी गाँव का रहने वाला है। उसके परिवार में पिताजी, बहन और एक बड़ा भाई है, मैट्रिक में ही उसे अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ पिताजी की बीमारी के इलाज और बहन की शादी के लिए पैसे जुटाने के लिए मेहनत मज़दूरी करने को मजबूर होना पड़ा। इस कम्पनी में काम करते हुए भी उसे एक साल से ऊपर हो चुका है परन्तु ना तो उसका अब तक उसका ईएसआई कार्ड बना है और न ही उसे अब तक नियमित किया गया है।
जबकि श्रम कानूनों के अनुसार सबसे पहले तो ठेका प्रथा ही गैर-कानूनी है, दूसरी बात यह है कि अगर आपको किसी कम्पनी में काम करते हुए एक साल या उससे अधिक समय हो चुका है तो आप उस कम्पनी के नियमित कर्मचारी हो जाते है। जिसके अनुसार जो सुविधाएँ बाकी नियमित कर्मचारियों को प्राप्त है जैसे कि ईएसआई कार्ड, मेडिकल बीमा, वार्षिक वेतन वृद्धि आदि वह सब सुविधाएँ उसे भी मिलनी चाहिए परन्तु इनमें से कोई भी सुविधा उन लोगो को प्राप्त नहीं हैं जबकि कानूनन हम इसके हक़दार है। ऐसी स्थिति के पीछे जो सबसे प्रमुख कारण है वह यह है कि हमे अपने अधिकारों का ज्ञान ही नही है और जब तक हम अपने अधिकारों को जानेंगे नही तब तक हम यूँ ही धोखे खाते रहेंगे। दूसरा सबसे प्रमुख कारण है हमारे बीच किसी क्रान्तिकारी मज़दूर संगठन का अभाव जिसके चलते हम मालिकों की मनमानी सहने को मजबूर हैं, आज भारत की कुल मज़दूर आबादी में से 93 प्रतिशत मज़दूर आबादी असंगठित क्षेत्र में बिना किसी अधिकार और सामाजिक सुरक्षा के बेहद खराब परिस्थितियों में काम करने को मजबूर है। यह मज़दूर आबादी भयंकर शोषण का शिकार है, इसलिए आज हमारे सामने सबसे प्रमुख काम है इस विशालकाय मज़दूर आबादी को संगठित करने का और इसके लिए जरूरी है कि पहले हम खुद अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों और फिर इन विचारों को अपने बाकी मज़दूर साथियों तक पहुँचायें ताकि एक व्यापक मज़दूर एकता कायम की जा सके। अब वक्त आ गया है कि हम अपने दुश्मनों और दोस्तों की साफ-साफ पहचान कर लें। पूँजीपति और पूँजीपतियों की मैनेजिंग कमेटी का काम करने वाली हाथ, कमल और नकली लाल झंडे वाली तमाम चुनावी पार्टियाँ और उनके भ्रष्ट मंत्री कभी भी हमारे दोस्त नही हो सकते भले ही वो कितनी ही बड़ी-बड़ी बाते कर ले। सरकार द्वारा गरीबी और भुखमरी हटाने के नाम पर चलने वाली तमाम योजनाएँ हमारी आँखो में धूल झोंकने के लिए है। सबको समान शिक्षा, रोज़गार और स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करवाना सरकार का फ़र्ज़ बनता है और यह हमारा अधिकार भी है, अगर वह यह कर पाने में असफल रहती है तो उसे कुर्सी पर रहने का कोई हक नही है फिर चाहे वो किसी भी पार्टी कि सरकार हो। हमे भगत सिंह की यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि हक मिलते नहीं, उन्हें हमेशा हासिल करना पड़ता है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि हम जाति-धर्म के झगड़े को छोड़ लूट- खसूट पर टिकी इस पूरी पूँजीवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हो जायें। ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ एक शोषण मुक्त समाज मे साँस ले सकें।
मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2013
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मज़दूरों के महान नेता लेनिन