कांग्रेस का मज़दूर-विरोधी चेहरा फ़िर हुआ बेनकाब, कर्नाटक में काम के घण्टे बेतरह बढ़ाने की तैयारी में सरकार!

अजित

लोकसभा चुनाव में फ़ासीवादी मोदी सरकार के विकल्प के तौर पर कांग्रेस के नेतृत्व में बनी ‘इण्डिया गठबन्धन’ को देखा जा रहा था। राहुल गाँधी से उम्मीदें लगाई जा रही थी। राहुल गाँधी और कांग्रेस पार्टी ने भी अपने घोषणापत्र में बड़े-बड़े वादे किये तथा उसे ‘न्यायपत्र’ का नाम दिया। ‘ ‘न्यायपत्र’ में और कांग्रेस की नीतियों में देश के मज़दूरों-मेहनतकशों के लिए कितना न्याय मिला है यह भी सोचने का विषय है। कांग्रेस के इतिहास और नीतियों पर यदि एक निगाह डाली जाए तो इसके मज़दूर- विरोधी और मेहनतकश जनता-विरोधी चेहरे को आसानी से समझा जा सकता है। कांग्रेस हमेशा से आम तौर पर पूँजीपतियों और विशेष तौर पर बड़े पूँजीपतियों की पार्टी रही है और उनके लिए नीतियाँ बनाकर उनकी सेवा करती रही है। इसी बात का एक और ताज़ा उदाहरण कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने पेश किया है। कर्नाटक की कांग्रेस सरकार आईटी सेक्टर में काम के घण्टे बढ़ाने की तैयारी कर रही है। इसके तहत एक सप्ताह में 70 घण्टे और रोजाना 14 घण्टे काम करना होगा। कांग्रेस सरकार द्वारा की जा रही यह तैयारी उसके पूँजीपति परस्त और मज़दूर-विरोधी चेहरे को उजागर करती है। इसके साथ ही इस फ़ैसले से और भी कई सारी बातें हमारे सामने आती है।

Image credit – Amit Bandre

यह घटना हमें बताती है कि कांग्रेस पार्टी और उसकी विभिन्न राज्य सरकारों की नीतियाँ और फ़ासीवादी मोदी सरकार की नीतियों में एक ही फ़र्क है। भाजपा पूँजीपतियों की सेवा एकदम नंगे रूप में और मज़दूरों के बर्बर दमन व शोषण का काम काफ़ी आक्रामकता और फ़ासीवादी रफ़्तार के साथ करती है जबकि कांग्रेस पार्टी यही काम अपेक्षाकृत क्रमिक प्रक्रिया में और कुछ कल्याणकारी कदमों के मुखौटे के साथ करती है। अन्य पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टियाँ भी इस मसले को लेकर कुछ नहीं बोल रही हैं। यह चुप्पी हमें उनके मौन समर्थन को दिखाता है। इसके साथ ही नकली वामपन्थी पार्टियाँ भी इस मसले को लेकर केवल ज़ुबानी जमा ख़र्च ही कर रहीं हैं। उनकी तरफ़ से कोई जुझारू जनान्दोलन खड़ा करने की बात तक सामने नहीं आई है।

इस घटना पर संशोधनवादी पार्टियों के ट्रेड यूनियन की प्रतिक्रिया भी काफी ठण्डी है और मज़दूरों के बुनियादी हक़ों-अधिकारों पर इस हमले के ख़िलाफ़ वह भी केवल प्रतीकात्मक विरोध ही कर रहे हैं। इस बात से उनके चरित्र का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। आईटी सेक्टर में काम के घण्टे बढ़ाने की तैयारी हमें यह भी बताती है कि आईटी सेक्टर भी अपने सन्तृप्ति बिन्दु पर पहुँच चुका है। इस सेक्टर में भी संकट के बादल मण्डरा रहे हैं। पूँजीपति वर्ग के मुनाफ़े की गिरती औसत दर ही संकट कहलाती है जिससे बचने के लिए बड़ी-बड़ी आईटी कम्पनियाँ सरकारों पर दबाव बना रही है। इसी दबाव का नतीजा है कि कर्नाटक की सरकार काम के घण्टे बढ़ाने की तैयारी में है।

काम के घण्टे बढ़ने से कम्पनियों में तीन शिफ्ट की जगह दो शिफ्ट में ही काम होगा जिससे कि अभी काम कर रहे कुल मज़दूरों के एक-तिहाई हिस्से को बाहर कर दिया जाएगा। बेरोज़गारों की ‘रिजर्व आर्मी’ में बढ़ोतरी होगी जिसका दूरगामी फ़ायदा भी इन्हीं कम्पनियों को होगा। इसके साथ ही कम्पनियाँ आईटी सेक्टर के मज़दूरों को बिना ओवर टाइम रेट दिए उनसे अतिरिक्त काम करवा सकती है। करीब 140 साल पहले दुनिया के लाखों मज़दूरों के संघर्ष व कुर्बानी के बाद 8 घण्टे काम का हक़ हासिल हुआ था। यह बुनियादी हक़ भी आज मज़दूर वर्ग से छीना जा रहा है।

कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा आईटी सेक्टर में काम के घण्टे बढ़ाने की तैयारी के निहितार्थ हमारे सामने हैं। हमें इसके ख़िलाफ़ एक जुझारू संघर्ष खड़ा करना होगा। केन्द्रीय ट्रेड यूनियन के अर्थवादी रवैये, मज़दूर-विरोधी चेहरे और मज़दूर वर्ग से ग़द्दारी को समझना होगा। इसके विकल्प में एक क्रान्तिकारी यूनियन का गठन करना होगा जोकि एक जुझारू मज़दूर आन्दोलन खड़ा कर सके। इसके साथ ही हमें यह भी जान लेना चाहिए कि कोई भी पूँजीवादी चुनावबाज़ पार्टी हमारे हक़ों-अधिकारों के लिए नहीं लड़ेगी चाहे वह कांग्रेस हो या अन्य क्षेत्रीय पार्टी। यें पार्टियाँ फ़ासीवादी मोदी सरकार का विकल्प नहीं हो सकतीं क्योंकि इनकी आर्थिक नीतियों में बुनियादी रूप से कोई फ़र्क नहीं है, सिर्फ़ रफ़्तार और दर का फ़र्क है। केवल एक क्रान्तिकारी पार्टी के नेतृत्व में जनता का जुझारू राजनीतिक आन्दोलन और एक समाजवादी व्यवस्था ही उसका विकल्प हो सकती है।  

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2024


 

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