आपस की बात
कविता – हमारा श्रम
आनन्द, गुड़गाँव
मज़दूरों के मेहनत करने की ताकत
या यूँ कहें कि मानवीय श्रम
दुनिया के हर काम कर सकता है
मानवता को नयी उड़ानों पर ले जा सकता है
वो पहाड़ों को चीरकर
नदिया, नहरें, रेल की पटरियाँ बिछा सकता है
वो धरती को चीरकर
कोयला, लोहा, धातुएँ और
पेट्रोलियम निकाल सकता है
वो अपने श्रम से रेल, मेट्रो, पानी का जहाज़
हवाई जहाज़ व रॉकेट बना सकता है।
अगर हमें मौक़ा मिले तो
इस धरती को स्वर्ग बना सकते हैं
मगर बेड़ियाें से जकड़ रखा है हमारे
जिस्म व आत्मा को इस लूट की व्यवस्था ने
हम चाहते हैं अपने समाज को
बेहतर बनाना मगर
इस मुनाफ़े की व्यवस्था ने
हमारे पैरों को रोक रखा है
हम चाहते है एक नया समाज बनाना।
मगर इस पूँजी की व्यवस्था ने
हमे रोक रखा है
बिखरा दिया है हम सबको बाँट दिया है
एक-दूसरे से हमारे प्यार, हमारी भावनाओं को
कर दिया है बाज़ार के हवाले
ताकि हम सबकुछ भूलकर
अपने में ही खोये रहें मगर
हम मज़दूर व नौजवान ही हैं
दुनिया की वो ताकत
जो बदल सकते हैं
इस दुनिया को बना सकते हैं
अपनी इस धरती को स्वर्ग जैसा
हमें भरोसा करना होगा अपने संगठित होने पर
हमें बनाना होगा एक नये समाज को
हाँ हमें ही बनाना होगा एक नये समाज को।
मज़दूर बिगुल, जनवरी 2024
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