व्हाट्सअप पर बँटती अफ़ीम

 नितेश शुक्ला

आज वॉट्सअप पर एक सन्देश मिला। जो नोटबन्दी पर मेरी एक पोस्ट के जवाब में था। उसमें कहा गया कि मोदी भी लूट रहा है। ठीक है, पर ये राहुल, मुलायम, मायावती कौन से बड़े ईमानदार लोग हैं। आज सब मुल्लों के तलवे चाटने में लगे हैं। तुम भी मोदी को सपोर्ट करो, नहीं तो एक दिन मुल्ला बनना पड़ेगा।
यही बात है जो सबसे ख़तरनाक है।
इतने लोग देश में मरे, नौकरी गँवाई, परेशान हुए लाइनों में लगकर पर देश की जनता में जो गुस्सा पैदा होना चाहिए था, वो नहीं हुआ। कारण यही था। आज आरएसएस ने ज़मीनी स्तर पर जो साम्प्रदायिक प्रचार किया है, उसका असर इतना व्यापक है कि एक बड़ी संख्या में लोग उस अफ़ीम के नशे में सो गये हैं।
सच्चे हिन्दू / कट्टर हिन्दू / माँ भारती / भारत हिन्दू राष्ट्र / जागो हिन्दू जैसे नामों वाले ग्रुपों में ये अफ़ीम बाँटी जा रही है। इसके अतिरिक्त सैकड़ों की संख्या में फ़ेक न्यूज़ वेबसाइट बन गयी हैं, जो झूठी वीडियो, फ़ोटोशॉप किये फ़ोटो या फ़ेक न्यूज़ चलाकर यही काम कर रही हैं।
आज नोटबन्दी की वजह से भारत का जीडीपी ग्रोथ 6.1% पर आ गया है। पूरी दुनिया के बड़े अर्थशास्त्री नोटबन्दी की बुराई कर रहे हैं, वर्ल्ड बैंक ने भी बोला है कि नोटबन्दी की वजह से जीडीपी में गिरावट आयी है। क़रीब 2 लाख लोग बेरोज़गार हो गये। सरकार चुपके-चुपके ख़ुद मान रही थी कि नोटबन्दी फेल कर गयी, इसीलिए कैशलेस इकोनॉमी का नया जुमला सामने ला रही थी, जोकि शुरू में काला धन और आतंकवाद था। पर जो लोग अफ़ीम के नशे में डूबे हुए हैं, उनको इस सबसे मतलब ही नहीं है। आज डॉलर के मुक़ाबले रुपये की कीमत 63 हो गयी है जो 2013 में 1 डॉलर = 58 रुपये थी। फिर भी उस आबादी को इससे ख़ास मतलब नहीं है, जबकि कांग्रेस के समय में इसी बात पर मीडिया और सोशल मीडिया रंग दी जाती थी।
देश में भयंकर बेरोज़गारी फैली है और नये रोज़गार पैदा नहीं हो रहे हैं, पर इससे भी उन लोगों को फ़र्क़ नहीं पड़ता, उनको क्या दीखता है?
यही की मोदी ही हिन्दुओं की बात करने वाला अकेला इंसान है। उनको बताया गया है कि 90 करोड़ हिन्दुओं को 18 करोड़ मुस्लिमों से ख़तरा है। यह उसी अफ़ीम का करिश्मा है।
हर बुराई का कारण मुस्लिम हैं, देश में महँगाई , बेरोज़गारी, ग़रीबी का कारण सरकार और कॉर्पोरेट की लूट नहीं बल्कि मुस्लिम हैं, किसान आत्महत्या मुस्लिमों की वजह से कर रहे हैं, भले ही मुस्लिम ख़ुद ही ज़्यादा ग़रीब हैं। एक बार मुस्लिम पाकिस्तान चले जाय तब देखो कैसे देश फिर सोने की चिड़िया बनता है।
अफ़ीम के नशे में डूबे ऐसे लोगों को सोचना चाहिए, अपने आस-पास की समस्याओं पर ग़ौर करना चाहिए कि इनका क्या कारण है?
*11000 करोड़ की सरकारी गैस चुराने वाला अम्बानी, 9000 करोड़ रुपये क़र्ज़ लेकर भागने वाला माल्या, दाल की जमाखोरी कर उसे 200 रुपये किलो बेचने वाला अडानी — क्या ये सब मुस्लिम हैं; क्या 2G, कोयला ब्लाॅक घोटाला, ताबूत घोटाला, कफ़न घोटाला, व्यापम घोटाला, एनआरएचएम घोटाला — ये सब मुस्लिमों का किया-धरा है?
मज़दूरों का कारख़ानों में ख़ून चूसने वाले सारे मालिक क्या मुस्लिम हैं? किसकी वजह से लोग बर्बाद हो रहे हैं, कौन है जो लोगों को लड़ाकर उनकी लाशों पर अय्याशी करता है? कहीं ये सब उसी की चाल तो नहीं कि हम आपस में ही लड़ते रहें।
*अफ़ीम में डूबे ऐसे लोगों को जर्मनी और इटली का इतिहास पढ़ना चाहिए। आरएसएस की विचारधारा के पिता है वे।* कैसे वहाँ भी हिटलर ने जनता को बड़े-बड़े सपने दिखाये और सब समस्याओं की जड़ वहाँ के अल्पसंख्यक समुदाय यहूदियों को ठहराया। बाद में बड़े पैमाने पर क़त्लेआम हुए। 60 लाख यहूदियों को मार डाला गया। दूसरा विश्वयुद्ध हुआ, जिसमें जर्मनी की हार हुई और जर्मनी के लाखों लोग मारे गये। जर्मनी युद्ध में तबाह हो गया। पूरी दुनिया में करोड़ों लोग मरे और उस हिटलर ने ख़ुद आत्महत्या कर ली। इटली के फासीवादी पार्टी के तानाशाह मुसोलिनी को तो जनता ने सरेआम चौराहे पर उल्टा लटकाकर पीटा और मार डाला। आज जर्मनी उस समय को एक काला समय मानता है।
इतिहास की ये सच्चाई जानने के बाद शायद उनका नशा कुछ कम हो। उनको पता लगे कि वो दुनिया में पहली बार उन्माद में पागल नहीं हुए हैं। फिर जो रोज़-रोज़ वॉट्सअप पर डोज़ मिलती है अफ़ीम की, उसका असर शायद कम हो जाये।
अगर मोदी को हिन्दुओं की इतनी ही फ़िक्र है तो क्या महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में जो किसान आत्महत्या कर रहे है, उनमें हिन्दू नहीं हैं, तो उनका कुल 90 हज़ार करोड़ क़र्ज़ माफ़ करने में सरकार अर्थव्यवस्था का रोना क्यों रो रही है, जबकि 1 साल पहले ही बड़े-बड़े पूँजीपतियों का 1.15 लाख करोड़ का क़र्ज़ माफ़ किया गया?
जो हर रोज़ हमारे देश में 6000 बच्चे कुपोषण से मरते हैं, क्या उनमें हिन्दुओं के बच्चे नहीं होते?
जबकि सरकार एफ़सीआई के गोदामों में लाखों टन अनाज सड़ा देती है।
क्या उन मज़दूर और किसानों के लड़के-लडकियों में हिन्दू नहीं हैं जो आज पढ़-लिखकर बेरोज़गार धक्के खा रहे हैं या 8-10 हज़ार के लिए जिनका ख़ून चूसा जा रहा है। तो मोदी जी सरकारी विभागों में ख़ाले पड़े तक़रीबन 30 लाख पदों को भर क्यों नहीं रहे?
ऐसे सैकड़ों सवाल हैं जो ये साबित करते हैं कि मोदी पूरे देश की जनता को बर्बाद कर रहा है, जिनमें मुख्यतः हिन्दू हैं क्योंकि जनता चाहे हिन्दू हो या मुसलमान सबकी ज़रूरतें एक ही हैं। एक मस्जिद कम बनेगा या एक मन्दिर कम बनेगा तो चलेगा, पर आपका बच्चा बीमार पड़ता है तो उसके लिए हॉस्पिटल बनना बहुत ज़रूरी है। और जो लोग दोनों को लूट रहे हैं, वही दोनों को आपस में लड़ाते हैं कि उनकी लूट चलती रहे। तो *इस पर सोचा जाना चाहिए। कहीं कोई हमारी देशभक्ति‍ या सीधी मानसिकता का फ़ायदा तो नहीं उठा रहा।
ऐसे लोगों को ये भी लगता है कि देश मे जो भी आन्दोलन हो रहे हैं, जो भी विरोध हो रहा है, वो सब कांग्रेसियों, वामपन्थियों की साजि़श है मोदी जी को बदनाम करने की। इसीलिए देश में जहाँ भी कोई आन्दोलन खड़ा हो रहा है मुख्यधारा का मीडिया और बीजेपी और आरएसएस का आईटी सेल उसको मोदी के खि़लाफ़ एक साजि़श के रूप में दिखा रहा है। इसीलिए तमिलनाडु के किसान जब जन्तर-मन्तर पर विरोध कर रहे थे, तो बीजेपी आईटी सेल ये साबित करने में लगा हुआ था कि ये तो किसान ही नहीं हैं, ये तो बिस्लरी पीते हैं, ये करते हैं, वो करते हैं। जब सेना के जवान ने ख़राब खाने का विरोध किया तो उसको पाकिस्तानी एजेण्ट घोषित कर दिया गया, उसके पाकिस्तान से तार जोड़े जाने लगे। सहारनपुर दंगों के बाद भीम आर्मी के नेता चन्द्रशेखर आज़ाद का असली नाम भी बीजेपी के आईटी सेल ने अपनी लेब्रोटरी में ढूँढ़ निकाला, चन्द्रशेखर आज़ाद को नसीमुद्दीन बताया गया। इसी प्रकार एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय के आॅफि़स और घर पर सीबीआई के छापे के बाद आईटी सेल ने बताया कि वहाँ प्रणव का जन्म प्रमाण पत्र मिला है जिसमें उनका नाम परवेज राजा है और एनडीटीवी का फुलफ़ॉर्म नवाजुद्दीन तौफ़ीक़ वेंचर है, जबकि ये दोनों बातें साफ़-साफ़ झूठ थी। इसी प्रकार इस समय मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में कर्ज़माफ़ी और फ़सल की सही क़ीमत को लेकर आन्दोलन कर रहे किसानों को बीजेपी आईटी सेल कांग्रेसी और असामाजिक तत्व बता रहा है। जो भी अच्छा हो रहा है, वो मोदी जी कर रहे हैं और जो भी बुरा हो रहा है वो कांग्रेसियों और वामपन्थियों की साजि़श है। अफ़ीम का नशा बहुत बढ़ जाये, इससे पहले हमें आँखों पर आईटी सेल (साइबर आर्मी) ने जो चश्मा लगाया है, उसको फेंककर अपने आस-पास का माहौल देखना चाहिए कि क्या वाक़ई हमारी ज़िन्दगी में 2014 के बाद कोई बड़ा बदलाव आया है? चलिए आप किसी न्यूज़ वाले की मत मानिए पर अपनी ज़िन्दगी को देखिए, अपने परिवार और आसपास को देखिए और ख़ुद निर्णय कीजिए कि कितना बदलाव हुआ है।
इसके अतिरिक्त बीजेपी और मोदी विरोध को कांग्रेसी होने या सपाई होने या आपिये होने से हर बार नहीं जोड़ा जा सकता। मोदी का विरोध करने वाले सबलोग कांग्रेसी एजेंट या मुलायम या केजरीवाल समर्थक नहीं हैं। भाजपा का विरोध कांग्रेस का समर्थन नहीं है। ये सब भी भाजपा से ज़्यादा अलग नहीं हैं। सब अडानी-अम्बानी की चाकरी करने वाले अलग-अलग मुखौटे में उनके सेवक ही हैं। ज़रूरत है इनकी चालों को समझने की और जनता को एकजुट करके इनके खि़लाफ़ लड़ने की। गाँव, कॉलोनी स्तर पर जन संगठन बनाकर अपनी सही माँगों के लिए लड़ने की और आगे एक बेहतर विकल्प खड़ा करके एक बेहतर समाज और व्यवस्था के लिए संघर्ष करने की। जैसा कि भगत सिंह ने कहा था –
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो
सही लड़ाई से नाता जोड़ो।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2017


 

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