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दिल्ली में ‘चुनाव भण्डाफोड़ अभियान’ चुनाव में जीते कोई भी हारेगी जनता ही!

कई दशक से जारी इस अश्लील नाटक के पूरे रंगमंच को ही उखाड़ फेंकने का वक़्त आ गया है। इस देश के मेहनतकशों और नौजवानों के पास वह क्रान्तिकारी शक्ति है जो इस काम को अंजाम दे सकती है। बेशक यह राह कुछ लम्बी होगी, लेकिन पूँजीवादी नक़ली जनतन्त्र की जगह मेहनतकश जनता को अपना क्रान्तिकारी विकल्प पेश करना होगा। उन्हें पूँजीवादी जनतन्त्र का विकल्प खड़ा करने के एक लम्बे इंक़लाबी सफ़र पर चलना होगा। यह सफ़र लम्बा तो ज़रूर होगा लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि एक हज़ार मील लम्बे सफ़र की शुरुआत भी एक छोटे से क़दम से ही तो होती है!

फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के इन्तज़ाम की माँग को लेकर मज़दूरों ने किया प्रदर्शन

दस दिसम्बर को वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों ने ‘दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र के ठण्डा रोला और पावर प्रेस सहित सभी फ़ैक्टरियों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम की माँग उठाते हुए श्रम विभाग नीमड़ी कॉलोनी का घेराव किया। बैनर, पोस्टर और नारों के साथ सड़क पर मार्च करता हुआ यह दस्ता बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच रहा था।

हालात बदलने के लिए एक होना होगा

मेरा नाम मो. हाशिम है। मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। ज़िला अलीगढ़ का रहने वाला हूँ। मेरे पापा मज़दूर थे। मेरे घर में बहुत परेशानी थी जब मैं केवल आठ साल का था तभी से गाँव में मेहनत करता था, इसके लिए मैं एक धनी किसान के पास काम करता था। वो मुझसे बहुत काम लेता था। जिस कारण मैं पढ़ नहीं पाया। बाद में मैं गाँव से अपने माँ-बाप को लेकर शहर में आया। मैं परिवार के साथ श्रीराम कालोनी, खजूरी खास दिल्ली में अपने मामा के पास मज़दूरी करता था। यहाँ भी मामा मुझे बहुत मारते थे। इनके पास मैंने करीब साल भर काम किया। एक दिन मुझे मज़दूर बिगुल अख़बार मिला। जिसको पढ़ने के बाद मुझे घुटन भरी ज़िन्दगी से लड़ने का तरीक़ा पता चला। बहुत से मेरे भाई आज भी उन्हीं फ़ैक्टरियों में काम करते हैं और मालिक की मार-फटकार सहते हैं। हम सब जैसे-तैसे ज़िन्दगी की गाड़ी खींच रहे हैं। मैं अब एक दूसरी जगह काम करता हूँ। मेरी उम्र तक़रीबन 24 साल है। वहाँ के मालिक से मैं अगर कारीगरों के हक़ के बारे में बोलता हूँ तो मालिक मुझसे चिढ़ता है और मशीन में ताला लगवा देता है। असल में सभी मालिकों की एक ही नीयत होती है – कैसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़दूरों का ख़ून-पीसना निचोड़ा जाये।

दिल्ली के चुनाव में वोटों की फसल की कटाई से पहले दंगों की बुवाई

जनता के असली मुद्दों को नजरों से ओझल करके ‘स्वच्छ भारत अभियान’, ‘आदर्श ग्राम योजना’, ‘जन-धन योजना’ आदि जैसी लोकरंजक योजनाओं के साथ-साथ साम्प्रदायिक आधार पर लोगों को बाँटने की कोशिश भरपूर जारी है। इतिहास गवाह है कि जब-जब पूँजीवादी व्यवस्था मन्दी का शिकार होती है तो अलग-अलग रंगों के फ़ासीवादी तारणहार बनकर सामने आते हैं। पूँजीपति अपने मुनाफ़े को बचाने के लिए इन्हीं फासीवादियों का सहारा लेते हैं।

मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों में बदलाव की कवायद के विरोध में संसद भवन पर मज़दूरों का जुझारू प्रदर्शन!

संसद के पिछले सत्र में मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित श्रम क़ानूनों में बदलाव के विरोध में 20 अगस्त को बिगुल मज़दूर दस्ता और देश के अलग-अलग इलाकों से आये विभिन्न मज़दूर संगठनों तथा मज़दूर यूनियनों ने दिल्ली के संसद मार्ग तक मार्च किया और प्रधानमन्त्री का पुतला दहन किया। इस प्रदर्शन में मज़दूरों ने बड़ी संख्या में भागीदारी की।

दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना

गरम रोला मज़दूर एकता समिति के नेतृत्व में संगठित हुए मज़दूरों ने अपने संगठन को विस्तारित करते हुए उसे वज़ीरपुर व दिल्ली के अन्य इलाकों के मज़दूरों की यूनियन के रूप में पंजीकृत कराने का फैसला किया है। यह फैसला मज़दूरों ने 27 अगस्त को अपनी आम सभा में ध्वनि मत के जरिये पारित किया व दिल्ली इस्पात मज़दूर यूनियन की स्थापना की।

मोदी सरकार का मज़दूरों के अधिकारों पर ख़तरनाक हमला

अगर देश का मज़दूर अपने ऊपर किये जा रहे इन हमलों का पुरज़ोर विरोध नहीं करता तो आने वाले समय में मज़दूरों से बंधुआ गुलामी करवाने के लिए मालिक वर्ग पूरी तरह आज़ाद हो जायेगा। श्रम कानूनों पर इन हमलों के ख़ि‍लाफ़ हम चुनावी पार्टियों की ट्रेड यूनियनों पर भरोसा नहीं कर सकते जो मोदी सरकार के तलवे चाटने का तैयार बैठी हैं। हमें स्वयं अपनी क्रान्तिकारी ट्रेड यूनियनों व मज़दूर संगठनों के ज़रिये इन हमलों का जवाब देना होगा। इसीलिए हम सभी मज़दूर भाइयों और बहनों को ललकारते हैं कि 20 अगस्त को मोदी सरकार के मज़दूर-विरोधी कदमों का मुँहतोड़ जवाब देने के लिए बड़ी से बड़ी संख्या में जन्तर-मन्तर पहुँचे।

वज़ीरपुर स्टील उद्योग के गरम रोला के मज़दूर फि़र से जुझारू संघर्ष की राह पर

इस हड़ताल का सबसे बड़ा सकारात्मक पहलू यह है कि 26 फ़ैक्टरियों के मज़दूरों ने हर कारख़ाने की कमेटी बनाकर इस हड़ताल का संचालन किया, जो ट्रेडयूनियन जनवाद की मिसाल है। यह हमारी इस लड़ाई का सकारात्मक पहलू है। अब गरम रोला मज़दूरों को इन सकारात्मक अनुभवों को आगे बढ़ाते हुए क्या करना होगा? बिगुल मज़दूर दस्ता का यह मानना है कि गरम रोला मज़दूर एकता समिति को अपने संघर्ष को गरम रोला के साथ ही स्टील लाइन से जुड़े तमाम अन्य पेशों जैसे ठण्डा रोला, सर्किल, तेज़ाब, तैयारी, फुडाई और पैकिंग व वज़ीरपुर इलाक़े की सभी फ़ैक्टरियों के मज़दूरों के साथ जोड़ना होगा। 700 कारख़ानों में मज़दूरों की ज़्यादातर माँगें समान हैं। वज़ीरपुर इलाक़े के मज़दूर उधम सिंह पार्क, शालीमार बाग़ व सुखदेव नगर की झोपड़पट्टियों में रहते हैं और यहाँ मज़दूरों की आवास, पानी व अन्य साझा माँगें भी बनती हैं। इसलिए गरम रोला के संघर्ष को और भी जीवन्त तरीक़े से अन्य पेशों के मज़दूरों के साथ जोड़ने की ज़रूरत है।

चुप्पी तोड़ो, आगे आओ! मई दिवस की अलख जगाओ!!

मई दिवस का इतिहास पूँजी की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ देने के लिए उठ खड़े हुए मज़दूरों के ख़ून से लिखा गया है। जब तक पूँजी की ग़ुलामी बनी रहेगी, संघर्ष और क़ुर्बानी की उस महान विरासत को दिलों में सँजोये हुए मेहनतकश लड़ते रहेंगे। हमारी लड़ाई में कुछ हारें और कुछ समय के उलटाव-ठहराव तो आये हैं लेकिन इससे पूँजीवादी ग़ुलामी से आज़ादी का हमारा जज्ब़ा और जोश क़त्तई टूट नहीं सकता। करोड़ों मेहनतकश हाथों में तने हथौड़े एक बार फिर उठेंगे और पूँजी की ख़ूनी सत्ता को चकनाचूर कर देंगे। इसी संकल्प को लेकर दिल्ली, लुधियाना और गोरखपुर में मज़दूरों के मई दिवस के आयोजनों में बिगुल मज़दूर दस्ता के साथियों ने शिरकत की और इन आयोजनों को क्रान्तिकारी धार और जुझारू तेवर देने में अपनी भूमिका निभायी।

दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार के विभिन्न इलाक़ों में चुनावी राजनीति का भण्डाफोड़ अभियान

अभियान के दौरान कार्यकर्ताओं की टोलियाँ पिछले 62 वर्ष से जारी चुनावी तमाशे का पर्दाफ़ाश करते हुए बड़े पैमाने पर बाँटे जा रहे विभिन्न पर्चों, नुक्कड़ सभाओं, कार्टूनों और पोस्टरों की प्रदर्शनियों तथा नुक्कड़ नाटकों के ज़रिये लोगों को बता रही हैं कि दुनिया के सबसे अधिक कुपोषितों, अशिक्षितों व बेरोज़गारों वाले हमारे देश में कुपोषण, बेरोज़गारी, महँगाई, मज़दूरों का भयंकर शोषण या भुखमरी कोई मुद्दा ही नहीं है! आज विश्व पूँजीवादी व्यवस्था गहराते आर्थिक संकट तले कराह रही है। ऐसे में किसी पार्टी के पास जनता को लुभाने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। सब जानते हैं कि सत्ता में आने के बाद उन्हें जनता को बुरी तरह निचोड़कर अपने देशी-विदेशी पूँजीपति आकाओं के संकट को हल करने में अपनी सेवा देनी है। सभी पार्टियों में अपने आपको पूँजीपतियों का सबसे वफ़ादार सेवक साबित करने की होड़ मची हुई है।