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दिल्ली के सीलमपुर के ई-कचरा मज़दूरों की ज़िन्दगी की ख़ौफ़नाक तस्वीर

पिछले दो दशकों में भारत में तथाकथित सूचना क्रान्ति की चमक-दमक के पीछे सीलमपुर जैसे ई-कचरा केन्द्रों में काम कर रहे मज़दूरों की अँधेरी ज़ि‍न्दगी मानो छिप सी जाती है। जहाँ भारत इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की खपत के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में शामिल है, वहीं दूसरी ओर इन गैजेट्स से पैदा होने वाले ई-कचरे के मामले में यह विकसित देशों को भी मात दे रहा है।

दिल्ली सचिवालय पर घरेलू कामगारों का जुझारू प्रदर्शन

दिल्ली के सैकड़ों घरेलू कामगारों ने दिल्ली सरकार के सचिवालय पर बीते 25 अप्रैल को एक जुझारू प्रदर्शन किया और उनके प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली राज्य के श्रम मन्त्री को अपनी माँगों का ज्ञापन सौंपा। श्रम विभाग में अनिवार्य पंजीकरण, न्यूनतम वेतन, कार्यदिवस, साप्ताहिक छुट्टी एवं अन्य अवकाशों का निर्धारण, स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा, पी।एफ़।, पेंशन, ई।एस।आयी। एवं सामाजिक सुरक्षा के अन्य प्रावधान आदि घरेलू कामगारों की प्रमुख माँगें थीं।

‘दिल्ली मास्टर प्लान 2021’ की भेंट चढ़ी ग़रीबों-मेहनतकशों की एक और बस्ती – शकूर बस्ती

झुग्गियों के उजड़ने के बाद जैसे चुनावबाज पार्टियों के नेता अपने वोट बैंक को बचाने के लिए मीडिया के सामने सफाई देना शुरू कर देते हैं उसी तरह दल्लों, छुटभैये नेताओं और गुण्डों की बहार आ जाती है। राहत सामग्रियों को बाजार में बेचने का धन्धा चलता है। अफवाहों का बाज़ार गर्म किया जाता है और लोगों को डराकर पैसे ऐंठे जाते हैं। इन तमाम दल्लों का धन्धा ग़रीबों, मेहनतकशों की गाढ़ी कमाई को लूटकर ही चलता है। अपनी झूठी बातों और सरकारी दफ्तरों के जंजाल का भय लोगों में बिठाकर आधार कार्ड, पहचान पत्र बनवाने से लेकर स्कूल में बच्चे का दाखिला करवाने तक में ये दल्ले पाँच सौ से हजार रुपये तक वसूलते हैं। लेकिन, इतने पर भी सही काम की कोई गारण्टी नहीं होती। चुनावों के समय तमाम पार्टियों से पैसे लेकर वोट खरीदने का काम भी खूब करते हैं और खुद को बस्ती का प्रधान भी घोषित कर लेते हैं और अपने फेंके टुकड़ों पर पलने वाले गुर्गे भी तैयार कर लेते हैं। इन तमाम दल्लों और गुण्डों को पुलिस से लेकर क्षेत्रीय विधयक तक की शह रहती है। ऊपर से तुर्रा यह कि खुद को मज़दूरों का हितैषी बतानेवाली और रेलवे में बड़ी यूनियनें चलानेवाली एक सेण्ट्रल ट्रेड यूनियन भी सीमेण्ट मज़दूरों के बीच में सक्रिय है। और इनकी नाक के नीचे तमाम स्थानीय गुण्डे और दलाल अपनी मनमर्जी चला रहे थे। दरअसल मज़दूरों की अपनी क्रान्तिकारी यूनियन ही जुझारू तरीके से मज़दूरों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की दिक्कतों समस्याओं के ख़िला़फ़ लड़ सकती है। सेण्ट्रल ट्रेड यूनियनें बस वेतन भत्ते की लड़ाई तक ही सीमित रहती हैं।

केजरीवाल सरकार का “आम आदमी” चेहरा एक बार फिर बेनकाब

चुनाव से पहले खुद अरविन्द केजरीवाल दूसरी पार्टियों पर ये आरोप लगाते थे कि अपना वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर ये सभी एकमत को जाते हैं पर लोकपल पर इनकी सहमति नहीं बनती है। इन्होंने घोषणा की थी कि ये आम आदमी की तरह जीवन बितायेंगेे, 25 हज़ार से ज्यादा कोई वेतन नहीं लेगा, कोई बड़ा बंगला नहीं लेंगे, ज़रूरत पड़ने पर छोटा सरकारी घर लेंगे, कोई पुलिस सुरक्षा नहीं लेंगे, सादा जीवन बिताएंगे आदि-आदि। हमेशा की तरह अपनी बात से पलटी खा कर ये “स्वराज” के पुजारी बाकी नेताओं की ही तरह जनता के पैसे पर जम कर आइयाशी कर रहे है।

हिन्दुत्ववादी फासिस्टों द्वारा दंगा कराने के हथकण्डों का भण्डाफोड़

15 अगस्त की घटना का माहौल संघ परिवार द्वारा काफी पहले से ही बनाया जा रहा था। उस दिन वहाँ भीड़ जुटाने के लिए शाहाबाद डेरी, बवाना, नरेला आदि निकटवर्ती क्षेत्रों के संघ कार्यकर्ताओं को पहले से ही मुस्तैद कर दिया गया था। संघ परिवार द्वारा योजनाबद्ध ढंग से यह सबकुछ किये जाने के मुस्लिम समुदाय के आरोप के जवाब में संघ के प्रांत प्रचार-प्रमुख राजीव तुली ने मीडिया को बताया, ‘‘ये सभी आरोप आधारहीन हैं। स्थानीय मुस्लिम मस्जिद के सामने की जगह को क़ब्ज़ा करने की फ़ि‍राक में हैं। मस्जिद अनधिकृत है। दरअसल ये लोग हमारे राष्ट्रीय झण्डे का अनादर करते हैं।” बाहरी दिल्ली के डी.सी.पी. विक्रमजीत सिंह ने भी संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि मस्जिद सरकारी ज़मीन पर अवैध क़ब्ज़ा करके बना है। सच्चाई तो यह है कि होलम्बी कलां फ़ेज-2 में मौजूद कुल 28 मन्दिर भी सरकारी ज़मीन पर बिना किसी अलॉटमेण्ट या अनुमति के ही बने हुए हैं और तीन और ऐसे मन्दिर निर्माणाधीन हैं, फिर इस एक मस्जिद को ही मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है।

आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जुझारू संघर्ष के आगे झुकी केजरीवाल सरकार!

अपनी दीर्घकालिक मांगों जैसे कि सरकारी कर्मचारी का दर्जा पाने, न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई. व पी.एफ­. आदि के लिए आंगनवाड़ी कर्मचारी अपना संघर्ष जारी रखेंगे। मगर जैसा तमाम सरकारे करती हैं वैसा ही कुछ केजरीवाल सरकार ने भी किया। 3 दिन का समय बीत जाने के बाद भी सभी कर्मचारियों के बकाये वेतन का भुगतान नहीं किया गया जिसके चलते 9 अगस्त को जंतर मंतर पर दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन ने सभी आंगनवाड़ी कर्मचारियों की एक आम सभा बुलाकर फिर से सरकार पर दबाव बनाने और आगे की रणनीति पर बातचीत की। इसके बाद 16 अगस्त को फिर से जंतर मंतर पर महाजुटान आयोजित कर केजरीवाल सरकार से उनके द्वारा स्वीकार की गयी तात्कालिक मांगों को जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की गयी। साथ ही यूनियन की सदस्यता का विस्तार भी किया जा रहा है। मात्र 2 हफ्तों के भीतर 2500 लोगों ने यिूनयन की सदस्यता हासिल की है। दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स यूनियन आंगनवाड़ी कर्मचारियों के जायज हकों के लिए संघर्षरत है। अपनी मिली इस जीत आंगनवाड़ी कर्मचारियों में उत्साह और जोश है और सभी अपनी दीर्घकालिक मांगों को मनवाने के लिए संघर्ष करने के लिए तत्पर है।

आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने किया दिल्‍ली विधान सभा का घेराव

इस चेतावनी रैली के ज़रिये आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने केजरीवाल सरकार के समक्ष यह साफ़ कर दिया है कि जब तक उनकी माँगों को स्वीकार नहीं किया जाता, तब तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। बिगुल मज़दूर दस्ता आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों के इस संघर्ष में लगातार उनका समर्थन कर रहा है। ज्ञात हो कि 14 जुलाई को केजरीवाल सरकार का एक प्रतिनिधिमण्डल हड़तालकर्मियों से मिला था, पर सरकार के इन नुमाइन्दों ने दिलासा देने के अलावा कोई ठोस आश्वासन देना ज़रूरी नहीं समझा, जिसके बाद कर्मचारियों ने एकमत से यह तय किया कि वह एक चेतावनी रैली निकालकर केजरीवाल सरकार को यह चेता देंगे कि उन्हें कोरे दिलासे नहीं बल्कि ठोस कार्यवाही और अपनी माँगों की स्वीकृति चाहिए। आशा वर्कर्स और आँगनवाड़ी के कर्मचारियों ने आज यह घोषणा की कि अगर सरकार जल्द से जल्द उनकी माँगों की सुनवाई नहीं करती है तो अगली बार वह दिल्ली सचिवालय का घेराव करेंगे।

पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट की नर्सों की हड़ताल

हड़ताल पर बैठी नर्सों की माँग है कि छठे वेतन आयोग की सिफ़ारिशों के अन्तर्गत आने वाले सभी लाभ उन्हें दिये जाये, साथ ही बोनस, मरीज भत्ता और जोखिम भत्ता भी मुहैया कराया जाये। पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट के प्रशासन के दबाव के बावजूद भी नर्सें अपनी हड़ताल को बहादुरी के साथ आगे बढ़ा रही हैं। दिल्ली स्टेट गवर्नमेण्ट हॉस्पिटल कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की तरफ़ से नर्सों के इस संघर्ष में अपना समर्थन देते हुए शिवानी ने कहा कि स्थायी नर्सों के इस संघर्ष में अन्य सरकारी अस्पतालों में काम कर रहे संविदा कर्मचारी भी उनके साथ हैं।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के खजूरी इलाक़े में साम्प्रदायिक माहौल बनाने में फि़र सक्रिय हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

इस कॉलोनी के लोगों ने पहलक़दमी दिखाते हुए ईद वाले दिन आरएसएस द्वारा शाखा ग्राउण्ड में न लगने और सुरक्षा की माँग को लेकर दिल्ली पुलिस के कमिश्नर से मुलाक़ात की थी; लेकिन उनकी तरफ़ से भी इस सम्बन्ध में कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। जबकि राजनीतिक दबाव के चलते इलाक़े के एसएचओ और डीसीपी ने साफ़ कहा कि ईद पर भी आरएसएस के लोग ज़रूर आयेंगे और प्रशासन उन्हें नहीं रोकगा। उनके मुताबिक़ ग्राउण्ड में शाखा लगने के बाद नमाज हो जायेगी। यहाँ बता दें कि पिछले साल ईद (बकराईद) पर भी यही तय हुआ था; लेकिन आरएसएस के लोगों ने तय समय में ग्राउण्ड ख़ाली नहीं किया, इस पर मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग भड़क गये थे और आरएसएस के लोगों से थोड़ी-सी झड़प हो गयी थी। आरएसएस के लोगों ने मुस्लिम समुदाय पर मार-पीट के कई झूठे केस दर्ज करा दिये और फिर इस घटना को साम्प्रदायिक रंग दे दिया गया। इस बार भी दो समुदाय के लड़कों के मामूली झगड़े को साम्प्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है। हालाँकि अब इसमें यहाँ के मुस्लिम कट्टरपन्थी भी पीछे नहीं हैं। ऐेसे में काफ़ी आशंका है कि इस बार भी ईद वाले दिन साम्प्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो।

झुग्गियों में रहने वालों की ज़िन्दगी का कड़वा सच: विश्व स्तरीय शहर बनाने के लिए मेहनतकशों के घरों की आहुति!

आम जनता में भी यही अवधारणा प्रचलित है कि झुग्गीवालों की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं है जबकि सच इसके बिलकुल उलट है। झुग्गियों में रहने वाले लोगों को छत मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी राज्य की होती है, अप्रत्यक्ष कर के रूप में सरकार हर साल खरबों रुपया आम मेहनतकश जनता से वसूलती है, इस पैसे से रोज़गार के नये अवसर और झुग्गीवालों को मकान देने की बजाय सरकार अदानी-अम्बानी को सब्सिडी देने में ख़र्च कर देती है। केवल एक ख़ास समय के लिए झुग्गीवासियों को नागरिकों की तरह देखा जाता है और वो समय होता है ठीक चुनाव से पहले। चुनाव से पहले सभी चुनावबाज़ पार्टियाँ ठीक वैसे ही झुग्गियों में मँडराना शुरू कर देती है जैसे गुड़ पर मक्खि‍याँ।