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दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के नेतृत्व में मेट्रो रेल ठेका कर्मचारियों के संघर्ष के नये दौर की शुरुआत

मेट्रो मज़दूरों का दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन के तहत आन्दोलन की शुरुआत महत्वपूर्ण है क्योंकि दिल्ली मेट्रो रेल की पूरी कार्यशक्ति बेहद बिखरी हुई है। टिकट-वेण्डिंग करने वाले आठ-दस लोगों का स्टाफ अलग केबिन में बैठा दिन भर टोकन बनाता रहता है; आठ सफाईकर्मियों की शिफ्ट अलग-अलग अपने काम में लगी रहती है और सिक्योरिटी गार्ड्स भी अलग-अलग गेटों पर डयूटी पर लगे रहते हैं। यह कार्यशक्ति पूरी दिल्ली में बिखरी हुई है। इसे न तो कार्यस्थल पर ही बड़ी संख्या में एक जगह पकड़ा जा सकता है और न ही किसी एक रिहायश की जगह पर। ऊपर से दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन का तानाशाह प्रशासन और ठेका कम्पनियों की गुण्डागर्दी के आतंक! इन सबके बावजूद लम्बी तैयारी, प्रचार, स्टेशन मीटिंगों के बाद यूनियन ने सैकड़ों मज़दूरों को जुटाकर यह प्रदर्शन करके सिद्ध किया कि मेट्रो मज़दूर भी एकजुट होकर लड़ सकते हैं।

मज़दूर आन्दोलन के दमन और गोरखपुर में श्रम क़ानूनों की स्थिति की जाँच के लिए दिल्ली से गयी तथ्यसंग्रह टीम की रिपोर्ट

दिल्ली से गये मीडियाकर्मियों के एक जाँच दल ने 19 से 21 मई तक गोरखपुर का दौरा करके और विभिन्न पक्षों से बात करने के बाद नई दिल्ली में अपनी जाँच रिपोर्ट जारी की। इस दल में हिन्दुस्तान के वरिष्ठ उपसम्पादक नागार्जुन सिंह, फिल्मकार चारु चन्द्र पाठक और कोलकाता के पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता सौरभ बनर्जी शामिल थे। तीन दिनों के दौरान जाँच दल ने विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों, श्रम विभाग, स्थानीय सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, श्रम संगठनों, मीडियाकर्मियों, श्रमिकों, श्रमिक नेताओं और प्रबुद्ध नागरिकों से मुलाक़ात करके इस पूरे घटनाक्रम की विस्तृत जाँच की।

दिल्ली में जनसंगठनों ने उत्तर प्रदेश भवन पर प्रदर्शन कर ज्ञापन सौंपा

गोरखपुर में मज़दूरों पर फायरिंग की घटना के विरोध में विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के उत्तर प्रदेश भवन पर धरना दिया और मुख्यमन्त्री के नाम ज्ञापन देकर दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की माँग की। धरनास्थल पर प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार के घोर निरंकुश एवं मज़दूर विरोधी रवैये के कारण प्रशासन और पुलिस के अधिकारी बेख़ौफ होकर मज़दूरों के दमन-उत्पीड़न में भागीदार बन रहे हैं। वक्ताओं ने कहा कि इस घटना में गोरखपुर ज़िला प्रशासन तथा पुलिस की भूमिका अत्यन्त निन्दनीय है तथा मिलमालिकों के साथ प्रशासनिक अधिकारियों की साँठगाँठ की ओर इशारा करती है। घटना के दो दिन बीत जाने के बाद भी मिलमालिक और अपराधियों के सरगना को गिरफ़्तार नहीं किया गया है। उल्टे मज़दूर नेताओं को फर्ज़ी मामले में फँसाने तथा मज़दूरों के न्यायसंगत एवं विधिसम्मत आन्दोलन को ”आतंकवादी” सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है।

पीरागढ़ी अग्निकाण्ड : एक और हादसा या एक और हत्याकाण्ड?

दो महीने का समय बीत चुका है लेकिन आज भी किसी को यह तक नहीं मालूम कि बुधवार की उस शाम को लगी आग ने कितनी ज़िन्दगियों को लील लिया। पुलिस ने आनन-फानन में जाँच करके घोषणा कर दी कि कुल 10 मज़दूर जलकर मरे हैं, न एक कम, न एक ज़्यादा। बने-अधबने जूतों, पीवीसी, प्लास्टिक और गत्तो के डिब्बों से ठसाठस भरी तीन मंज़िला इमारत के जले हुए मलबे और केमिकल जलने से काली लिसलिसी राख को ठीक से जाँचने की भी ज़रूरत नहीं समझी गयी। मंगोलपुरी के संजय गाँधी अस्पताल के पोस्टमार्टम गृह के कर्मचारी कहते हैं कि उस रात कम से कम 12 बुरी तरह जली लाशें उनके पास आयी थीं। आसपास के लोग, मज़दूरों के रिश्तेदार, इलाक़े की फैक्ट्रियों के सिक्योरिटी गार्ड आदि कहते हैं कि मरने वालों की तादाद 60 से लेकर 75 के बीच कुछ भी हो सकती है। पास का चायवाला जो रोज़ फैक्टरी में चाय पहुँचाता था, बताता है कि आग लगने से कुछ देर पहले वह बिल्डिंग में 80 चाय देकर आया था। सभी बताते हैं कि आग लगने के बाद कोई भी वहाँ से ज़िन्दा बाहर नहीं निकला। कुछ लोगों ने एक लड़के को छत से कूदते देखा था लेकिन उसका भी कुछ पता नहीं चला। फिर बाकी लोग कहाँ गये? क्या सारे के सारे लोग झूठ बोल रहे हैं? या दिल्ली पुलिस हमेशा की तरह मौत के व्यापारियों को बचाने के लिए आँखें बन्द किये हुए है?

ऐतिहासिक मई दिवस से मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन के नये दौर की शुरुआत

पिछली 1 मई को नई दिल्ली के जन्तर-मन्तर का इलाक़ा लाल हो उठा था। दूर-दूर तक मज़दूरों के हाथों में लहराते सैकड़ों लाल झण्डों, बैनर, तख्तियों और मज़दूरों के सिरों पर बँधी लाल पट्टियों से पूरा माहौल लाल रंग के जुझारू तेवर से सरगर्म हो उठा। देश के अलग-अलग हिस्सों से उमड़े ये हज़ारों मज़दूर ऐतिहासिक मई दिवस की 125वीं वर्षगाँठ के मौक़े पर मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन 2011 क़े आह्वान पर हज़ारों मज़दूरों के हस्ताक्षरों वाला माँगपत्रक लेकर संसद के दरवाज़े पर अपनी पहली दस्तक देने आये थे।

फ़ैक्ट्रियों का कुछ न बिगड़ा और मज़दूरों की बस्तियाँ भी उजाड़ दीं

इसी के उलट जब ग़रीबों-मज़दूरों की ज़िन्दगी भर की ख़ून-पसीने की कमाई से बनाये गये घरों-दुनिया को उजाड़ना होता है तब कोई दया नहीं बख्शी जाती है। एक दिसम्बर 2009 को कड़ाके की ठण्ड में सूरजपार्क (समयपुर बादली, दिल्ली) की झुग्गियों को तुड़वाने के लिए, उन निहत्थे मज़दूरों के वास्ते 1500 सौ पुलिस और सीआरपीएफ़ के जवान राइफ़ल, बुलेट प्रूफ़ जैकेट, आँसू गैस के साथ तैनात थे। चारों तरफ़ से बैरिकैड बनाकर डी.डी.ए. के आला अफ़सर, स्थानीय नेता, आस-पास के थानों की पुलिस पूरी बस्ती में परेड करते हुए मज़दूरों में दहशत पैदा कर रहे थे। सारे मज़दूर डरे-सहमे हुए, कोई किसी पुलिस वाले का पैर पकड़ रहा है, तो कोई किसी अफ़सर या नेता आगे हाथ जोड़ रहा है। कड़ाके की ठण्ड में उनका दुख देखकर किसी का भी दिल नहीं पसीजता और फिर शुरू होता है तबाही का मंज़र। पाँच इधर से पाँच उधर से बुलडोज़र धड़ाधड़-धड़ाधड़ झुग्गियाँ टूटना शुरू हो गयीं। उन डरे-सहमे मज़दूरों ने अपनी दुनिया को अपने सामने उजड़ते देखा। भगदड़ में कोई आटा घर से निकालकर ला रहा है, कोई चावल, कोई गैस— 3 घण्टे की इस तबाही ने क़रीब 5 हज़ार लोगों की दुनिया उजाड़ कर उनको सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया।

1 मई की तैयारी के लिए दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में जमकर चला मज़दूर माँगपत्रक प्रचार अभियान

मार्च और अप्रैल के महीनों में दिल्ली के अनेक औद्योगिक क्षेत्रों और उनसे लगी विभिन्न मज़दूर बस्तियों में मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन की प्रचार टोली ने मज़दूरों की व्यापक आबादी को इस आन्दोलन के बारे में बताने और इससे जोड़ने के लिए सघन अभियान चलाया। इस दौरान छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाओं, प्रभात फेरियों तथा घर-घर सम्पर्क के अलावा कई मज़दूर बस्तियों में बड़ी जनसभाएँ और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी किये गये। अप्रैल के महीने में हुए विभिन्न कार्यक्रमों में मज़दूरों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं पर आधारित एक डॉक्यूमेण्‍ट्री फिल्म भी दिखायी गयी।

पूँजीवादी गणतन्त्र के जश्न में खो गयीं मुनाफ़े की हवस में मारे गये मज़दूरों की चीख़ें

26 जनवरी की पूर्व संध्या पर देश की राजधानी में 61वें गणतन्त्र की तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही थीं। ठीक उसी वक्‍त दिल्ली के तुगलकाबाद में चल रही अवैध फैक्ट्री में हुए विस्फोट में 12 मज़दूर मारे गये और 6 से ज्यादा घायल हो गए। बेकसूर मज़दूरों की मौत देश के शासक वर्ग के जश्न में कोई ख़लल न डाल सके, इसके लिए मज़दूरों की मौत की इस ख़बर को दबा दिया गया। कुछ दैनिक अख़बारों ने खानापूर्ति के लिए इस घटना की एक कॉलम की छोटी-सी ख़बर दे दी। वह भी न जाने ज़नता के सामने इस घटना को लाने के लिए दी थी, या कारख़ाना मालिक से अपना हिस्सा लेने के लिए।

लक्ष्मीनगर हादसा : पूँजीवादी मशीनरी की बलि चढ़े ग़रीब मज़दूर

मुनाफा! हर हाल में! हर कीमत पर! मानव जीवन की कीमत पर। नैतिकता की कीमत पर। नियमों और कानूनों की कीमत पर। यही मूल मन्त्र है इस मुनाफाख़ोर आदमख़ोर व्यवस्था के जीवित रहने का। इसलिए अपने आपको ज़िन्दा बचाये रखने के लिए यह व्यवस्था रोज़ बेगुनाह लोगों और मासूम बच्चों की बलि चढ़ाती है। इस बार इसने निशाना बनाया पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के ललिता पार्क स्थित उस पाँच मंज़िला इमारत में रहने वाले ग़रीब मज़दूर परिवारों को जो देश के अलग-अलग हिस्सों से काम की तलाश में दिल्ली आये थे।

अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर पूँजी की सत्ता के ख़िलाफ लड़ने का संकल्प लिया मजदूरों ने

गोरखपुर में पिछले वर्ष महीनों चला मजदूर आन्दोलन कोई एकाकी घटना नहीं थी, बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में उठती मजदूर आन्दोलन की नयी लहर की शुरुआत थी। आन्दोलन के खत्म होने के बाद बहुत से मजदूर अलग-अलग कारख़ानों या इलाकों में भले ही बिखर गये हों, मजदूरों के संगठित होने की प्रक्रिया बिखरी नहीं बल्कि दिन-ब-दिन मजबूत होकर आगे बढ़ रही है। इस बार गोरखपुर में अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के आयोजन में भारी पैमाने पर मजदूरों की भागीदारी ने यह संकेत दे दिया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का मजदूर अब अपने जानलेवा शोषण और बर्बर उत्पीड़न के ख़िलाफ जाग रहा है।
यूँ तो विभिन्न संशोधनवादी पार्टियों और यूनियनों की ओर से हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन वह बस एक अनुष्ठान होकर रह गया है। मगर बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में इस बार गोरखपुर में मई दिवस मजदूरों की जुझारू राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।