तराना – फैज़ अहमद फैज़
लाज़िम है के हम भी देखेंगे
वो दिन के जिसका वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिक्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के
कोह-ए-ग़रां
रुई की तरह उड़ जायेंगे
लाज़िम है के हम भी देखेंगे
वो दिन के जिसका वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिक्खा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के
कोह-ए-ग़रां
रुई की तरह उड़ जायेंगे