मज़दूरों की ज़ि‍न्दगी

राजेश, नोएडा

मैं नोएडा की गारमेंट फ़ैक्ट्री में काम करता हूँ। दो साल पहले मैं बिहार से काम की तलाश में आया था। जिस मंजिल पर हमारा कमरा है वहां चार कमरे और हैं। दो में परिवार रहते हैं और दो कमरों में तीन-तीन लड़के मिलकर रहते हैं। कमरे का किराया 1800 रुपया है। छोटे से उस कमरे में सीलन है और रोशनी नहीं आती। मकान मालिक सभी मज़दूरों को बिहारी कहकर बुलाता है, चाहे वे मघ्यप्रदेश के हों, या उत्तर प्रदेश के, या बिहार के। बिहारी जैसे कोई गाली हो।

5800 महीने पर मुझे 12-13 घंटे तक काम करना पड़ता है। मैं काम से नहीं घबराता, लेकिन इतनी मेहनत से काम करने के बाद भी सुपरवाइजर मां-बहन की गाली देता रहता है, ज़रा सी गलती पर गाली-गलौज करने लगता है, और अक्सर हाथ भी उठा देता है। मज़दूर लोग दूर गांव से अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए आए हैं, इसलिए नौकरी से निकाले जाने के डर से वे लोग कुछ नहीं बोलते। शुरू-शुरू में मैंने पलटकर जवाब दिया तो मुझे काम से निकाल दिया गया। यहां मेरा कोई जानने वाला नहीं है, इसलिए मेरे लिए काम करना बहुत ही ज़रूरी है। इसी बात पर मैं भी अब कुछ नहीं बोलता। लेकिन बुरा बहुत लगता है कि सुपरवाइजर ही नहीं, मैनेजर, चौकीदार और खुद मालिक लोग भी हमें जानवर से ज्यादा कुछ नहीं समझते। कारखाने में घुसने के समय और काम खत्म करने के बाद बाहर लौटते समय गेट पर बैठे चौकीदार हम लोगों की तलाशी ऐसे लेते हैं, जैसे हम चोर हों। बस लंच में ही समय मिलता है। उसके अलावा यदि जरूरत हो तो सुपरवाइजर की नाक रगड़नी पड़ती है। स्त्री मज़दूरों के साथ तो और भी बुरा बर्ताव होता है। गाली-गलौज, छेड़छाड़ तो आम बात है, जैसे वे औरत नहीं, उस फैक्ट्री का प्रोडक्ट हों। एक दो औरत मजदूरों ने विरोध किया और पलट कर गाली भी दी, तो उन्हें काम से निकाल दिया गया और खूब बेइज्जती की।

मज़दूर को तो हर जगह बेइज्ज़त किया जाता है। एक दिन किराया देने में देरी होने पर लॉज का मालिक सीधे मां-बहन की गाली देने लगता है, और किराने की दुकान का लाला तो और भी गुंडागर्दी दिखाते हुए उसका पैसा देने में देर हो जाने पर मारपीट तक कर देता है। मज़दूर बिगुल को पढ़ कर लगता है कि मज़दूर लोग बिखरे हुए हैं इसलिए उनके साथ ऐसा होता है। इसलिए मज़दूर लोग को इकट्ठा होना चाहिए। नहीं तो मुझ जैसे सैकड़ों मज़दूर ऐसे ही अकेले घुटते रहेंगे और हमारी लॉज का गुज्जर मालिक तथा कारखाने का मालिक जैसे लोग हम लोगों को ऐसे ही बेइज्ज़त करते रहेंगे।

 

मज़दूर बिगुल, फरवरी 2016


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments