Category Archives: मज़दूरों की क़लम से

इधर कुआं उधर खाई

मैं कंट्रोल एंड स्विचगियर कम्पनी (प्लाट नं. ए–7 और 8 से 8, नोएडा –में एक परमानेंट मजदूर हूं। मुझे इस कम्पनी में हड्डियां गलाते हुए 10 साल हो गये। मुझे केवल 2500 रु. मिलते हैं। सरकार की तरफ से जो डी.ए. मिलता था वह भी कम्पनी ने देना बंद कर दिया है। मजदूर कैजुअल हो या परमानेंट यह डी.ए. सभी के लिए होता है पर कम्पनी उसे हमें देती ही नहीं। काम करने की दशा यह है कि हम सुबह 9 बजे यहां घुसते हैं और रात 10–11 बजे घर जाते हैं। सारा दिन प्रोडक्शन का भूत सवार रहता है। अगर एक–दो मिनट थोड़ी थकान दूर करने के लिए सुस्ताने लगें तो फौरन गेट पर खड़ा करने की धमकी मिलती है।

समाज बदल सकता है बशर्ते हम एकजुट हों

बिगुल के माध्यम से हम लोगों को इन दलाल नेताओं से सावधान रहने और एकता बनाने का जो संदेश मिला है उससे हमारी स्थिति में थोड़ा बदलाव भी आया है। हम लोगों ने नौजवान भारत सभा की बैठकें शुरू कर दीं और लोगों को जगाना शुरू किया। इतने से ही हमारी बस्ती में अवैध वसूली रुक गयी है। आज इस बात की जरूरत है कि लोगों को एकजुट होना पड़ेगा। मजदूर भाइयों को शोषण करने वालों के खिलाफ जागना है। अगर सभी लोग जाग जाते हैं तो सुधार हो सकता है, समाज बदल सकता है।

बकलमे–खुद : कहानी – नये साल की छुट्टी / मानस कुमार

फैक्टरी की छत पर मालिक के भाषण का इंतजाम किया जा रहा था। लाइनों में कुर्सियां बिछाईं गईं। इन पर कम्पनी के स्टाफ को बैठना था। दूसरी तरफ टाट व दरी बिछाई गई, जिन पर मजदूरों को बैठना था। सामने गद्दे वाली कुर्सियां, मेज तथा मेज पर फूलों का गुलदस्ता रखा गया। पास में एक छोटी मेज पर दिया जलाने वाला स्टैण्ड रख दिया गया। उसके तीन तरफ कांच की दीवार खड़ी कर दी गयी ताकि जब दीयों को जलाया जाये तो हवा लग कर बुझ न जाये। गद्देवाली कुर्सियों पर उन रेंगते हुए, पिलपिले, तोंदियल, परजीवी कीड़ों (फैक्टरी मालिकों) को बैठना था।