भट्ठे पर काम करने वाली कई महिलाएँ रतौंधी की शिकार हो गयी हैं और बच्चों को कुपोषण के कारण चमड़ी की बीमारी हो गयी है। गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख़्शा जाता था और उनसे भी काम कराया जाता था। उन्हें धमकी दी जाती थी कि अगर उन्होंने काम नहीं किया तो वे उसके पेट पर लात मारकर बच्चे को मार डालेंगे। इतना कठिन काम करने पर भी कोई मेहनताना उन्हें नहीं मिलता था। उनसे रोज़ 1500 ईंटें बनवायी जाती। मालिक हर 1000 ईंटों पर 5,000 रुपये मुनाफ़ा कमाता था, पर मज़दूरों को भरपूट खाना तक नहीं देता था। ठेकेदार ने इन मज़दूर परिवारों को शुरू में 10,000 से 15,000 रुपये दिये थे, पर उसके बाद उन्हें पूरे साल कुछ नहीं मिला। उनके पास जो पैसे थे, वही नहीं, बल्कि उनके मोबाइल फ़ोन तक रखवा लिये गये। एक मज़दूर औरत ने छिपाकर रखे एक मोबाइल से किसी तरह बाहर ख़बर पहुँचायी तब उन्हें छुड़ाया जा सका।