Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

कर्नाटक के गारमेण्ट मज़दूरों का उग्र आन्दोलन और लम्बे संघर्ष की तैयार होती ज़मीन

पूरे गारमेण्ट सेक्टर में कार्यस्थल के हालात अमानवीय हैं। जैसा हिम्मतसिंग गारमेण्ट फ़ैक्टरी में हुआ, वह हर फ़ैक्टरी की कहानी है। मज़दूरों के साथ गाली-गलौज, मारपीट आम बात है। हमने ऊपर बताया है कि पूरे सेक्टर में महिला मज़दूरों की संख्या ज़्यादा है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अध्ययन के मुताबिक़ सात गारमेण्ट मज़दूर परिवारों में से एक परिवार महिला मज़दूर की कमाई पर आश्रित है। उनके साथ तो और भी ज़्यादा बदसलूकी की जाती है। यौन हिंसा, छेड़छाड़ रोज़मर्रा की घटनाएँ हैं। इतना ही नहीं उन्हें ज़बरदस्ती काम करने और ओवरटाइम करने पर भी मज़बूर किया जाता है। उनके दोपहर का खाना खाने, चाय पीने, शौचालय जाने तक के समय में से कटौती की जाती है। वर्कलोड बढ़ा दिया जाता है और उत्पादन तेज़ करने की माँग की जाती है। 1 घण्टे में उन्हें 100 से 150 तक शर्टें तैयार करनी होती हैं। काम पूरा न होने पर अपमान और जिल्लत झेलना पड़ता है। दरअसल मुनाफ़े की रफ़्तार को बढ़ाने के लिए मज़दूरों के आराम करने के समय में कटौती करके काम के घण्टे को बढ़ाया जाता है। फ़ैक्टरियों में खुलेआम श्रम क़ानूनों का उल्लंघन होता है और श्रम विभाग चुपचाप देखता रहता है। अगर इस अपमान और ि‍जल्लत के ख़िलाफ़ मज़दूर आवाज़ उठाते हैं तो उन्हें ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

वज़ीरपुर की एक और फ़ैक्टरी में करण्ट से एक मज़दूर की मौत! फिर भी ख़ामोशी!

इन मौतों के दोषी वज़ीरपुर के मालिक हैं जो अपने मुनाफ़े को बचाने के लिए हमारी सुरक्षा के इन्तज़ाम पर सौ रुपये तक भी ख़र्च नहीं करते हैं। अपने दाँतों से सिक्के दबाकर बैठे इन मालिकों की हवस ने ही हमारे मज़दूर साथी की जान ली है। और साथ ही श्रम विभाग और सरकार भी उतनी ही जि़म्मेदार है क्योंकि बिना इनकी मिलीभगत के ये मालिक ऐसी हरकत नहीं कर सकते और ये इन पर किसी प्रकार की कार्रवाई भी नहीं होती है। इस बात को समझने के लिए हमें श्रम क़ानूनों और उनको लागू करने की प्रक्रिया को देख लेना चाहिए।

भीषण बेरोज़गारी और तबाही झेलती दिल्ली की मज़दूर आबादी

दिल्ली में 29 औद्योगिक क्षेत्र हैं, जिनमें अधिकतर छोटे व मध्यम आकार के कारख़ाने हैं। इन औद्योगिक क्षेत्रों में दिल्ली की कुल 80 लाख मज़दूर आबादी का बड़ा हिस्सा काम करता है। इसके अलावा निर्माण से लेकर लोडिंग, कूड़ा बीनने व अन्य ठेके पर काम हेतु तमाम इलाक़ों में लेबर चौ‍क पर मज़दूर खड़े रहते हैं। परन्तु आज इन सभी इलाक़ों में कामों में सुस्ती छायी हुई है, बल्कि यह मन्दी पिछले तीन सालों से छायी है। देश एक बड़े आर्थिक संकट की आगोश में घिर रहा है और इन इलाक़ों में काम की परिस्थिति और बिगड़ने जा रही है।

हरियाणा के ईंट-भट्ठों में ग़ुलामों की तरह काम करते बिहार के मज़दूर

भट्ठे पर काम करने वाली कई महिलाएँ रतौंधी की शिकार हो गयी हैं और बच्चों को कुपोषण के कारण चमड़ी की बीमारी हो गयी है। गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख़्शा जाता था और उनसे भी काम कराया जाता था। उन्हें धमकी दी जाती थी कि अगर उन्होंने काम नहीं किया तो वे उसके पेट पर लात मारकर बच्चे को मार डालेंगे। इतना कठिन काम करने पर भी कोई मेहनताना उन्हें नहीं मिलता था। उनसे रोज़ 1500 ईंटें बनवायी जाती। मालिक हर 1000 ईंटों पर 5,000 रुपये मुनाफ़ा कमाता था, पर मज़दूरों को भरपूट खाना तक नहीं देता था। ठेकेदार ने इन मज़दूर परिवारों को शुरू में 10,000 से 15,000 रुपये दिये थे, पर उसके बाद उन्हें पूरे साल कुछ नहीं मिला। उनके पास जो पैसे थे, वही नहीं, बल्कि उनके मोबाइल फ़ोन तक रखवा लिये गये। एक मज़दूर औरत ने छिपाकर रखे एक मोबाइल से किसी तरह बाहर ख़बर पहुँचायी तब उन्हें छुड़ाया जा सका।

अम्बेडकरनगर के ईंट-भट्ठों में भयंकर शोषण-उत्पीड़न के शिकार मज़दूर

अम्बेडकरनगर ज़िले के थानाक्षेत्र राजेसुल्तानपुर के आस पास सैकड़ों की संख्या में तथा ज़िले में हज़ारों की संख्या में ईंट-भट्ठे के उद्योग हैं। इन ईंट-भट्ठों पर काम करने वाले बहुत से मज़दूर बाहर से छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखण्ड, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के अन्य जि़लों रायबरेली, पीलीभीत से अपने पूरे परिवार सहित काम के लिए आते हैं। आसपास के गाँवों के भी बहुत से लोग इन ईंट-भट्ठों पर काम करते हैं।

चुनाव ख़त्म, मज़दूरों की छँटनी शुरू

“मज़दूर नं. 1” की सरकार दोबारा बनते ही बड़े पैमाने पर मज़दूरों की छँटनी का सिलसिला शुरू हो गया है। अर्थव्यवस्था का संकट जिस क़दर गहरा है, उसे देखते हुए यह तय लग रहा है कि आने वाले समय में छँटनी की तलवार मज़दूरों की और भी बड़ी आबादी पर गिरेगी। मुनाफ़े की गिरती दर के संकट से सारी कम्पनियाँ अपनी लागत घटाने के दबाव में हैं, और ज़ाहिर है कि इसका सबसे आसान तरीक़ा है मज़दूरी पर ख़र्च होने वाली लागत में कटौती करना।

हौज़री के मज़दूरों की ज़िन्दगी की एक झलक

पिछले हफ़्ते बुखार होने के कारण वह बीमार रहा पर फिर भी वेतन घटने के कारण छुट्टी नहीं कर सका। इस स्थिति का मुक़ाबला करने के लिए सबसे पहला असर खाने पर पड़ा है, पहले हफ़्ते में दो-तीन बार अण्डा-मीट बना लिया जाता था पर अब सिर्फ़ एक दिन इतवार को ही बनता है। कपड़े वग़ैरा भी मज़दूरी के वक़्त ही सिलवाये जाते हैं। ज़रूरतें कम करने की कोशिशें की जा रही हैं, पर फिर भी परिवार का गुज़ारा मुश्किल से हो रहा है।

कारख़ाना मज़दूर यूनियन के दूसरे सदस्य सम्मेलन का आयोजन

कारख़ाना मज़दूर यूनियन ने सन् 2008 में अपनी स्थापना से लेकर अब तक मज़दूरों को जागरूक, संगठित करने में लगी हुई है। अनेकों छोटे-बड़े संघर्ष हुए हैं। अन्य मेहनतकश लोगों के जायज़ माँग-मसलों, जनता के जनवादी मुद्दों पर डटकर खड़ी होती रही है। टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन के नेता गुरदीप ने कारख़ाना मज़दूर यूनियन के सम्मेलन के लिए बधाई दी और उम्मीद व्यक्त की कि यूनियन जन-हित में संघर्षरत रहेगी। सम्मेलन का मंच संचालन समर ने किया।

चित्रकूट पहाड़ियों की खदानें बन रही हैं मज़दूरों की क़ब्रगाह

चित्रकूट की पहाड़ियों में स्थित पत्थर खदानें मज़दूरों की क़ब्रगाह बनती जा रही हैं। अभी हाल ही में चित्रकूट के भरतकूप में ग्वाँणा ग्राम से लगी पहाड़ी की खदान में राम औतार नाम के एक मज़दूर की मृत्यु हो गयी। राम औतार खदान की सफ़ाई का काम कर रहा था जिसमें कि मज़दूरों को मिट्टी को हटाकर पत्थर चट्टान निकालनी होती है और इसके बाद उस पत्थर की चट्टान में कम्प्रेसर से होल करके चट्टान को डायनामाइट से उड़ा दिया जाता है।

कम्पनी की लापरवाही से मज़दूर की मौत, सीटू नेताओं ने यहाँ भी की दलाली

बजाज संस लि. में रोज़ाना मज़दूरों के साथ हादसे होते हैं, ख़ासकर पावर प्रेस विभाग में। लेकिन सीटू नेता कभी इसके खि़लाफ़ आवाज़ नहीं उठाते। सीटू नेताओं ने मज़दूरों को पहले यह भी नहीं बताया था कि कुशलता के हिसाब से न्यूनतम वेतन का क्या क़ानूनी अधिकार है और मज़दूरों का कितना-कितना न्यूनतम वेतन बनता है। इन माँगों पर जब ‘बिगुल’ ने मज़दूरों को जगाया और मज़दूरों ने न्यूनतम वेतन और अन्य माँगों के लिए सीटू से अलग होकर संघर्ष शुरू किया तो सीटू नेताओं ने अपना आधार बचाने के लिए मैनेजमेण्ट को कहकर न्यूनतम वेतन लागू करवाया। मैनेजमेण्ट को भी डर था कि अगर मज़दूर जूझारू संघर्ष की राह चल पड़े और सीटू का आधार ख़त्म हो गया तो बहुत गम्भीर स्थिति हो जायेगी। इस तरह सीटू और मैनेजमेण्ट की मिलीभगत का बजाज संस लि. में लम्बा इतिहास है। जीतू की मौत के मामले में भी सीटू नेता दलाली खाने से बाज नहीं आये। बहुत से मज़दूर कहते हैं कि नहीं सोचा था कि सीटू नेता कम्पनी की दलाली करते-करते इतना नीचे गिर जायेंगे।